tag:blogger.com,1999:blog-5213820224673627834.post2854541905160144647..comments2023-10-08T21:57:54.252+05:30Comments on प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ: रोज़ सुलगने से अच्छा है धूं धूं कर जल जाने दो ....शायद यह मेरी पहली और आखरी विवादित पोस्ट होप्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघhttp://www.blogger.com/profile/18399101354438844595noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-5213820224673627834.post-65599368456192308562011-05-03T02:44:46.183+05:302011-05-03T02:44:46.183+05:30अख्तर जी,
अच्छे बुरे हर कौम हर धर्म में होते है, ...अख्तर जी,<br /><br />अच्छे बुरे हर कौम हर धर्म में होते है, न होते तो महापुरूष भी किनकी बुराईयों के खिलाफ लडते?<br /><br />अच्छाईया हो न हो, बुराईयां तो शाश्वत है। और बदी से नफरत और अच्छाई से प्यार करना भी जरूरी है।<br />आपके पूरे लेख का भाव यह है कि बुराई कहां नहीं है अतः सभी को एक होकर रहना चाहिए। तो एकता का आधार क्या होगा?<br />राष्ट्रप्रेम तो सभी के लिये समान है, और जो भी किसी भी रूप में राष्ट्रद्रोह करे निंदनीय ही है आप और हम सभी उन राष्ट्रद्रोहीयों की निंदा करते है। वे चाहे मेरे धर्म का ही नहीं मेरा अपना ही क्यों न हो उसे राष्ट्र का नमक खाने तक का अधिकार नहीं।<br /><br />लेकिन अपनी अपनी विचारधारा के अनुरूप एकमंच होने का सभी को अधिकार है। एक समान मान्यता वाले इकत्रित होते है, और अपने विचारों का आदान प्रदान करते है तो क्या बुरा है। सभी को अपने विचार रखने का अधिकार है। और लोग अपनी अपनी विचारधाराओं के मंच बनाए हुए भी है।<br /><br />वे अपनी गलतियों कमजोरियों पर आपस में ही चर्चा करके कोई सार्थक परिणाम लाने का प्रयास करते है तो हमें क्यों अखरना चाहिए।<br /><br />और वे यह समूह, धर्म के आधार पर भी तय करते हैं तो यह उनकी आवश्यकता,उपयोगिता और उनका अपना निर्णय है। उनके निर्णयों को प्रभावित करने वाले हम होते कौन है।<br /><br />राष्ट्रीय एकता के लिये,पूरा एक सामुहिक राष्ट्रिय ब्लॉग तो वैसे भी बननें वाला नहीं है। कि सभी ब्लॉगर एक जगह ही लिखेंसुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5213820224673627834.post-22997029548555201072011-05-03T01:48:35.061+05:302011-05-03T01:48:35.061+05:30अख्तर खाँ अकेला जी ! हम आपके ज़ज्बातों की कद्र करत...अख्तर खाँ अकेला जी ! हम आपके ज़ज्बातों की कद्र करते हैं...लगता है हल्ला बोल से आपको कुछ शिकायतें हैं. नया ब्लॉग है ......हर कोई अपनी भड़ास निकालना चाहता है.पर यकीन मानिए हम चाहते हैं की वहाँ सार्थक चर्चा ही हो ...और ऐसा ही होगा भी. विचारों में यदि गंभीरता और परिपक्वता नहीं होगी तो ऐसा लेखन स्वतः ही किनारे लग जाएगा. आप वहाँ बने रहिये और अपनी सार्थक टिप्पणियों से अपनी अलख जगाते रहिये. आज हमने फौजिया जी की एक नज़्म वहाँ चस्पा की है.<br /> देवेन्द्र गौतम जी ! जिसे आप अमूर्त चिंतन कह रहे हैं उसी अमूर्त चिंतन के अभाव ने देश को पतन के गर्त में ला फेंका है. यदि आप इस अमूर्त के बारे में कुछ जानने की जिज्ञासा रखते हों तो मेरे ब्लॉग पर आमंत्रित हैं.(सामान्यतः मैं लोगों को अपने ब्लॉग पर आमंत्रित नहीं करता....ऐसा आमंत्रण मेरे स्वाभिमान के विरुद्ध है....तथापि परिस्थिति विशेष में मुझे अपने सिद्धांत को शिथिल करना पड़ रहा है ) इसके बाद यदि आप चाहेंगे तो इसी अमूर्त चिंतन पर विमर्श किया जा सकेगा. अभी इतना बता दूँ की जिस अमूर्त चिंतन से विरोध है आपको उसके अभाव में किसी समस्या का समाधान संभव नहीं है. साम्यवादी विचारधारा धरातल पर आते ही धराशायी हो चुकी है....यह पूरा विश्व देख चुका है.बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5213820224673627834.post-68018835803085613742011-05-02T22:05:16.974+05:302011-05-02T22:05:16.974+05:30क्या धर्म को सिर्फ व्यक्तिगत आस्था का विषय नहीं मा...क्या धर्म को सिर्फ व्यक्तिगत आस्था का विषय नहीं माना जा सकता ? वैमनस्य फैलाना ही धर्म है? आज हमारे चारो तरफ इतनी समस्याएं, इतने मुद्दे हैं कि लिखने बैठें तो की- बोर्ड घिस जाये. ऐसे में जो उन्हें छोड़कर अमूर्त विषयों पर चिंतन करने की फुर्सत निकाल लेना, अनावश्यक खटास पैदा करना आमजन से जुडाव की असलियत दर्शाता है. <br />-----देवेंद्र गौतमdevendra gautamhttps://www.blogger.com/profile/09034065399383315729noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5213820224673627834.post-88767676911702120112011-05-02T19:48:08.807+05:302011-05-02T19:48:08.807+05:30अरे यारों कुछ नहीं धरा है मारकाट नफरत में आगे बढो ...अरे यारों कुछ नहीं धरा है मारकाट नफरत में आगे बढो एक दुसरे गले मिल जाओ खुशहाली लाओ!<br />--<br />पिछले कई दिनों से कहीं कमेंट भी नहीं कर पाया क्योंकि 3 दिन तो दिल्ली ही खा गई हमारे ब्लॉगिंग के!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.com