ग़ज़लगंगा.dg: खुदी के हाथ से निकला........
रविवार, 24 जुलाई 2011
खुदी के हाथ से निकला तो फिर हलाक हुआ.कफे-गुरूर में हर शख्स जेरे-खाक हुआ.हरेक तर्ह की आबो-हवा से गुजरा हूंये और बात तेरी रहगुजर में खाक हुआ.वो रातो-रात चमकने लगा सितारों सा उसे तराशने वाला भी ताबनाक हुआ.
ये कच्चे धागों का बंधन है या तमाशा है
अभी-अभी हुई शादी अभी तलाक हुआ.मैं उससे अपनी तबाही का सबब पूछुंगाअगर कभी मुझे मिलने का इत्तिफाक हुआ.
तलब की आखिरी मंजिल अजीब मंजिल है
की इस मुकाम पर जो पहुंचा वो हलाक हुआ.मुहब्बतें मिलीं मुझको न नफरतें गौतमअजीब रंग में दामन जुनू का चाक हुआ.-----देवेंद्र गौतम
1 comments:
सुंदर रचना के लिए धन्यवाद.
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