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वैदिक ग्रंथ और मनुवाद

बुधवार, 13 मई 2020


वेदानुराग हो या वेदविद्वेष कुछ भी बलात् उत्पन्न नहीं किया जा सकता । आज कठोपनिषद् पढ़ते समय याद हो आया कि कुछ समूह वैदिकादि आर्ष ग्रंथों को मनुवाद रचित षड्यंत्र मानते हैं । मुझे आश्चर्य है कि वैदिक ग्रंथों के अध्ययन-मनन के बाद कोई समूह इतना वेदविद्वेषी कैसे हो सकता है जबकि वैदिक संदेश उनके हित में कहीं अधिक हैं । किंतु यदि अध्ययन किए बिना ही वे इतने बड़े निश्चय तक पहुँचे हैं तो उन्हें आर्षग्रंथों का अध्ययन कर लेना चाइए ।  

अपनी वाम विचारधारा को परिमार्जित करने के लिए वामपंथियों को भी वेदाध्ययन करना चाहिए, कम से कम वामपंथियों के गुरु शोपेन हॉर का तो यही मानना है । शोपेन हॉर की प्रस्तावित सूची में मैं मनुस्मृति को भी जोड़ना चाहूँगा, यह सब उनके लिए प्रस्तावित है जो वेद और मनु के प्रति घोर विद्वेषभाव रखने वाले हैं । मेरा विश्वास है कि अध्ययन के बाद वे लोग भी इन ग्रंथों के प्रशंसक तो हो ही जायेंगे, बहुत अच्छे वामपंथी भी हो जायेंगे ।  
  
वैदिक ग्रंथ तो परम्परा से समृद्ध होते रहे ज्ञान के परिणाम हैं । ज्ञान को एक झटके में ख़ारिज़ नहीं किया जा सकता । जानने योग्य ज्ञान को विद्या कहते हैं, वेद विद्या के आदिभण्डार हैं । सूचना को हम ज्ञान नहीं कह सकते, ज्ञान के साथ सर्व कल्याणकारी भाव भी जुड़ा हुआ है । बम बनाने या भ्रष्टाचरण में निपुणता जानकारी है ज्ञान नहीं और इसीलिए वह सर्वकल्याणकारी नहीं है । कृषि आदि की जानकारी सर्वकल्याणकारी है जबकि तत्वज्ञान आत्मकल्याणकारी ।

उपनिषद् पढ़ते समय कुछ बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए –
1-  प्राच्य साहित्य तत्कालीन समाज की अच्छाइयों-बुराइयों और विसंगतियों के चित्रण से मुक्त नहीं है । इसका अर्थ यह नहीं है कि वेद और उपनिषद् आदि बुराइयों और विसंगतियों का उपदेश देते हैं बल्कि यह है कि बुराइयों और विसंगतियों से जूझते हुये जीवन को किस तरह उत्कृष्ट बनाया जाय । चिकित्सक के लिए आवश्यक है कि उसे शरीर की नॉर्मल और एबनॉर्मल दोनों ही स्थितियों का अच्छी तरह ज्ञान हो । किसी भी एक स्थिति का ज्ञान होने से न तो निदान सम्भव है और न चिकित्सा । भारत का प्राच्य साहित्य एक चिकित्सक और उपदेशक की भूमिका में है जिसका उद्देश्य समाज को स्वस्थ बनाए रखना तो है ही रुग्ण होने पर उसकी चिकित्सा करना भी है ।  
2-  चतुर्युगों की अवधारणा तत्कालीन समाज के गुणों-अवगुणों के आनुपातिक प्रतिनिधित्व को ज्ञापित करती है, यहाँ कोई शार्प डिमार्केशन नहीं है ।
3-  हर युग के चार प्रमुख गुणात्मक स्तम्भ होते हैं, जिनका निरंतर क्षरण होता रहता है । निरंतर क्षरित होते रहने वाले गुणों-अवगुणों का स्थान दूसरे गुणों-अवगुणों से पूरित होता रहता है । जब किसी युग के चारों गुणात्मक स्तम्भों का पूरी तरह क्षरण हो जाता है तब एक नया युग अपने पूर्ण बालस्वरूप के साथ प्रकट होता है । इसका अर्थ यह हुआ कि सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलि युगों के गुण आनुपातिक प्रवर्द्धता के साथ सभी युगों में वर्तमान रहते हैं ।
4-  चतुर्युगीन अवधारणा प्रकृति की एक जटिल व्यवस्था को समझने में सहयोग करती है, ठीक उस बॉडी-फ़्ल्युड की तरह जिसमें सीरम-प्लाज़्मा-ब्लडसेल्स और माइक्रोन्यूट्रींट्स आदि निरंतर परिवर्तनशील स्थिति में होते हैं । जब तक हम बॉडी फ़्ल्युड के कण्टेन का एक निश्चित् थ्रेश-होल्ड तक सम्मान करते हैं, तब तक हम स्वस्थ रहते हैं, थ्रेश-होल्ड का अपमान एक ऐसी पैथोलॉज़िकल प्रोसेज़ को उत्पन्न करता है जिससे हम रुग्ण हो जाते हैं । शरीर की नॉर्मल फ़िज़ियोलॉज़िकल प्रोसेज़ हो या पैथोलॉज़िकल प्रोसेज़, सब कुछ आनुपातिक होती है ।
5-  गुणांतर क्षरण प्रकृति की अपरिहार्य व्यवस्था है, जन्म लेने के क्षण से ही हम मृत्यु की ओर चल पड़ते हैं, यानी जन्म की यात्रा मृत्यु की ओर ही होती है, सृजन की यात्रा क्षरण की ओर ही होती है । यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही एक जटिल आनुपातिक व्यवस्था का परिणाम है ।           

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प्रकृति विषय पर आधारित हाइगा कार्यशाला संपन्न

मंगलवार, 12 मई 2020

भारत ऋतुओं का देश है, जहां प्रकृति का वैविध्यपूर्ण सौंदर्य बिखरा पड़ा है। यही कारण है, कि फूलों का देश जापान को छोड़कर आने की दु: खद स्मृति हाइकु काव्य को कभी अक्रांत नहीं कर पाई। वह इस देश को भी  अपने घर की मानिंद महसूस करती रही। यही कारण है कि हिन्दी साहित्य जगत के समस्त हाइकु प्रेमी और हाइकु सेवी यही शुभेच्छा करते हैं कि हाइकु काव्य को प्रकृति के क्रीड़ांगन में खेलने -  फलने - फूलने का पूरा पूरा अवसर मिलता रहे। डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने भारत में इस हाइकु काव्य को एक क्रांति की प्रस्तावना के रूप में देखा है और इस काव्य को एक अभियान के माध्यम से गति प्रदान की है। डॉ. मिथिलेश जी ने हाइकु गंगा पटल के माध्यम से नए व पुराने सृजन धर्मियों का एक ऐसा मंच तैयार किया है जो हिन्दी पट्टी में हाइकु काव्य हेतु एक वृहद वातावरण तैयार करने का काम कर रहा है, जो अपने आप में अविस्मरणीय है और स्तुत्य भी।
हाइकु का मूलाधार प्रकृति होने के कारण कुछ विद्वानों ने इसे "प्रकृति काव्य" कहा, किन्तु हाइकु में प्रकृति का पर्यवेक्षण उसके गतिमान रूप पर केंद्रित रहता है। हाइकु कवि जीवन की क्षण - भंगुरता को प्रकृति के गतिमान, निरंतर परिवर्तनशील रूप में देखता है।
हाइगा हाइकु का हीं एक अलग रूप है, जिसमें चित्र को केंद्र में रखकर हाइकु काव्य का सृजन किया जाता है। इस काव्य को सबसे ज्यादा प्रश्रय देने का महत्वपूर्ण कार्य किया है सरस्वती की परम साधिका डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने। प्रकृति के प्रति अपना आंतरिक सहज लगाव प्रमाणित करते हुए उन्होंने हाईकु गंगा पटल पर हाइगा की कई कार्यशालाओं का आयोजन कर इस काव्य शैली को हिन्दी के पटल पर प्रतिष्ठापित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है, जो उनकी इस काव्य शैली के प्रति आकर्षण को दर्शाता है।  इस पटल से कई दिग्गज व नए सृजन धर्मी जुड़े हैं जो हाइकु जगत के परिदृश्य को बदल कर रखने की पूरी क्षमता रखते हैं। यही इस पटल की बड़ी विशेषता है।
दिनांक 10. 05. 2020 को सुबह आठ बजे हाइकु गंगा पटल पर धरती के सौंदर्य के विविध रूप और प्रकृति के अनुपम सौंदर्य की ऑन लाइन कव्यमय प्रस्तुति से पूरा वातावरण प्रकंपित हो गया। अर्थवान, गुण समृद्ध हाइगा कार्यशाला तृतीय की शुरुआत आकाशवाणी बरेली की निर्देशिका सुश्री मीनू खरे जी के उद्बोधन, सरस्वती वंदना और खूबसूरत हाइगा की बेहतरीन प्रस्तुति से हुई। सबसे सारगर्भित बात तो यह रही कि उनकी सरस्वती बंदना भी कतिपय हाइकु श्रृखंला की मोतियों से सुसज्जित थीं।
भारत एक ऐसा देश है, जहां प्रकृति के विविध रूपों की पूजा होती है। उगते हुए सूर्य के साथ डूबते हुए सूर्य की भी पूजा होती है। इसे छठ पूजा कहा जाता है यह भारत का सबसे बड़ा लोक पर्व भी है, जिसे रुपायित करते हुए मीनू खरे जी ने बहुत ही सारगर्भित हाइगा प्रस्तुत किया है, जैसे "सूर्य को अर्घ्य/आस्था के कलश की/अटूट धार"
डॉ. मधु चतुर्वेदी जी की पंक्तियां "ऊर्जा के तार/प्रकृति समन्वित/शक्ति संचार"  प्रकृति की उपयोगिता और शक्ति समन्वय का एक अनोखा अनुभव है। वहीं प्रकृति के अनिवर्चनीय सौंदर्य को रेखांकित करते हुए लवलेश दत्त जी*कहते हैं कि " यादों के गांव/खेत, नहर, बाग/ठंडी सी छांव।"
यह मेरी भी खुशकिस्मती थी कि इस  हाइगा कार्यशाला में प्रकृति पर आधारित कुछ हाइगा मुझे भी प्रस्तुत करने का सुअवसर प्राप्त हुआ, जिसके लिए मैं मंच की अध्यक्षा के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करता हूं।
निवेदिता श्री जी की पंक्तियां "बहती नदी/कल कल करती/बदली सदी" और पुष्पा सिंघी जी की पंक्तियां "बिखरी पांखे/सूखती महानदी/ भीगती आंखें" हाईगा के सुखद भविष्य के प्रति आश्वस्त करती है।
विष्णुकांता के ताजे फूलों की तरह, कुंद सी सुगंधित कुछ बेहतरीन पंक्तियां प्रस्तुत करने में सफल रहीं डॉ. सुरांगमा यादव जी की "विज्ञप्ति लेके/आया है पतझड़/ नई भर्ती की।" , सरस दरवारी जी की पंक्तियां "नन्हा दीपक/डूबते सूरज का/ संवल बने।", अंजु निगम जी की पंक्तियां " उगला धुआं/प्रदूषित है हवा/ मौत का कुआं।" और डॉ सुभाषिनी शर्मा जी की पंक्तियां  "धूप ने खोली/ कोहरे की गिरह/फैला उजाला ।" आदि।
ऐसी बात नहीं है, कि हाइकु या हाइगा की निंदा नहीं हो रही है या इसका विरोध नहीं हो रहा है। खूब हो रहा है। मेरे पास विरोध तथा भर्त्सना के बहुत सारे लिखित परिपत्र है। किन्तु विरोध से कोई सत्य कभी रुक नहीं जाता, बल्कि दुगुने वेग से आगे बढ़ता है। हाइकु या हाइगा का सत्य वैसे हीं एक ओजस्वी, तेजस्वी दुर्निवार वाग्धारा है। इसी वाग्धारा की एक कड़ी है सत्या सिंह जी  कीपंक्तियां "फूलों के झूले/मस्त पवन संग/आसमां छूले।"
इस पटल पर तीन ऐसे रचनाकारों का मैं विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा जिन्होंने अपने कुछ टटके हाइगा चित्रों से हाइकु जगत को श्री वृद्धि किया है। प्रकृति के प्रति अपना आंतरिक सहज लगाव प्रमाणित करते हुए मनोरम छवि चित्र उकेरे है। पहला नाम है कल्पना दुबे जी का जिनकी पंक्तियां "अमृत रस/झरते झर झर/शान्त निर्झर।", डॉ आनंद प्रकाश शाक्य जी का जिनकी पंक्तियां "वन संपदा/ जीवन मूल स्त्रोत/ हो संरक्षित" और इंदिरा किसलय जी जिनकी पंक्तियां "अहा जिंदगी/ चट्टानों से जूझती/ पहाड़ी नदी ।" मन मुग्ध कर गई।
इस पटल पर कुछ रचनाकार हाइकु काव्य की शालीनता व गरिमा बनाए रखने की दिशा में कृत संकल्प दिखे, जिनमें प्रमुखता के साथ  डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' जी के  हाइगा को स्थान दिया जा सकता है। जैसे -"जब बचेंगे/जंगल जलाशय/ बचेंगे हम।" वस्तु एवं शिल्प दोनों दृष्टि से उनके हाइगा प्रस्तुत हुए। इस पटल पर पेंडों से छनकर आती धूप का स्पर्शविंब साफ दिखाई देता है, जो इस कार्यशाला की उपादेयता को प्रदर्शित करता है।
वर्षाअग्रवाल जी की पंक्तियां यहां विशेष रूप से उल्लिखित करना चाहूंगा, जिसमें उन्होंने अपनी पंक्तियों "मलिन नित्य/संजीवनी व्यक्ति/ मनुज कृत्य।" गहरे भाव छोड़ने में सफल रही।
इस अवसर पर डॉ. सुषमा सिंह जी और डॉ सुकेश शर्मा जी के हा इगा को भी काफी पसंद किया गया। डॉ सुषमा सिंह जी ने अपनी पंक्तियों में कहा कि  "नव कोंपले/ बुलाती पंछियों को/कलरव को"  तथा  डॉ सुकेश शर्मा जी अपनी पंक्तियों में कहा कि "वसुंधरा मां/देती शष्य संपदा/आशीष सम।" में प्रकृति के कोमल छवि को स्पर्श किया है।"
प्रकृति मानव की चिर सहचरी है जो ऋतुओं के द्वारा उसका पालन, अनुरंजन और प्रसाधन करती है। परस्पर एकनिष्ठ रहते हुए दोनों अपने अपने क्रिया - कलाप से एक - दूसरे को प्रभावित करते हैं। उनका यह भाव इस पटल पर परिलक्षित होना स्वाभाविक ही है, क्योंकि साहित्य समाज से पृथक नहीं। इस कार्यशाला में प्रकृति के अद्भुत रूप को आयामित किया गया है कार्यशाला की अध्यक्षा डॉ मिथिलेश दीक्षित जी के द्वारा, जिन्होंने अपनी पंक्तियों क्रमश: "तुलसी चौरा/जलाती दिया - बाती/ मां याद आती।" और "धूप बीनती/ मृदुल फूल पर/बिखरे मोती।" के माध्यम से प्रकृति के कोमल सौंदर्य को रेखांकित किया है।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है, कि यह कार्यशाला अपने आप में अनुपम व अद्वितीय है। कहा गया है, कि प्रकृति के दृश्य हाइगा की पहचान है और ये कुदरत के नजारों को देखने का झरोखा भी माना जाता है। ऐसे लगता है जैसे अम्बर, तारे, चांद, सूर्य, वृक्ष, फूल, टहनियां, घास, ओस की बूंदें, वर्षा तथा हवाओं ने इस पटल पर कोई जादू भरा राग छेड़ रखा हो। 
प्रस्तुति: रवीन्द्र प्रभात

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कश्मीर के ध्वस्त होते सामाजिक तानेबाने पर आई है एक नई पुस्तक

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019


यह मेरा पाँचवाँ उपन्यास है, जो कश्मीर के सामाजिक तानेबाने को समय के साथ ध्वस्त होने की कहानी बयान करता है। साथ ही कश्मीर के शर्मनाक और दहशतनाक ऐतिहासिक पहलूओं की गहन पड़ताल भी करता है। किस्सागोई शैली में लिखा गया यह उपन्यास आम पाठक के लिए काफी रोचक और पठनीय है। कश्मीर जैसे ज्वलंत विषय पर बिना किसी पूर्वाग्रह और बोझिल विश्लेषण से बचते हुए  मैंने पुस्तक की जानकारियों को स्वाभाविक अंदाज में संप्रेषित किया है। 

कश्मीर पर आधारित यह उपन्यास ऐसे समय में आया है जब भारत सरकार ने ऐतिहासिक फैसला करते हुए कश्मीर से धारा 370 को समाप्त कर जम्मू कश्मीर को दो भागों में बाँट दिया है और इसको लेकर भारत पाकिस्तान के बीच एक बार फिर संवादहीनता की स्थिति बनी है। सत्य घटनाओं पर आधारित यह उपन्यास इंसानी जूझारूपन की एक ऐसी कहानी है जो हर भारतीय के दिल में शांति इंसानियत और न्याय के सहअस्तित्व के प्रति विश्वास को बल प्रदान करता है, वहीं कश्मीरी हिन्दुओं की व्यथा को औपन्यासिक कलेवर में बांधकर प्रस्तुत भी करता है। कश्मीर के मसले को देखने–समझने वाली एक पीढी जब लगभग समाप्त हो चुकी है तब नई पीढी के लिए इस वक्त में इस उपन्यास का आना काफी प्रासंगिक है ।

इन वेबसाइटों पर जाकर इस उपन्यास को खरीदा जा सकता है- 
प्रकाशक की वेबसाईट- https://notionpress.com/read/kashmir-370-kilometer
फ्लिपकार्ट पर-
https://www.flipkart.com/kashmir-370-kilometer/p/itm66fd24029a1e3?pid=9781647609320&affid=editornoti

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,,अल्लाह करे वोह कामयाब हो ,चाँद पर गए यान से टूटे सम्पर्क फिर से स्थापित हों ,हमारे देश के वेज्ञानिकों की मेहनत रंग लाये ,कामयाब हो

रविवार, 8 सितंबर 2019

जो भी आस्तिक है ,सभी जानते है ,अल्लाह की मर्ज़ी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता ,,ईश्वर को ,भगवान को ,जीसस को जो मानते है ,वोह भी जानते है ,के ईश्वरीय शक्ति के बगैर ,एक पत्ता भी नहीं हिल सकता ,,लेकिन अगर कोई गुरुर करे ,तकब्बुर करे ,में ही इसे,,, सब कुछ कर रहा हूँ ,में ही ऐसा करूँगा ,,का उसे गुरुर हो ,,तो टूटकर बिखरता ज़रूर है ,,दोस्तों में इसरो वैज्ञानिको की गुणवत्ता पर गर्व करता हूँ ,उनकी पीठ थपथाता हूँ , अल्लाह के करम से ,भगवान की मर्ज़ी से ,इन वैज्ञानिकों ने देश में ,एक ऐसे यान को बनाकर ,चाँद पर भेजने की कामयाब कोशिश की जिसे देश ने ही नहीं ,,,विश्व ने भी देखा है ,लेकिन दोस्तों,, आखरी में अचानक ,हमारे वैज्ञानिको की इन कोशिशों पर ब्रेक लग गया ,अल्लाह से ,भगवान से दुआ है , के हमारे देश के स्वाभिमान ,अभिमान बने इन इसरो वैज्ञानिकों की कोशिश ,,हौसला असफल न हो , वोह जल्दी कामयाब हों ,अल्लाह ,भगवान ,,इस अभियान में हमे कामयाब करे ,इस अभियान में ही नहीं,, हर अभियान में ,,हमे कामयाब करे ,,,दोस्तों छोटा मुंह बढ़ी बात ,जिस देश में आस्थाओं के नाम पर वाद विवाद हो ,जिस देश में सबकी अपनी अपनी आस्थाये हो ,जिस देश के लोग ईश्वरीय शक्ति ,अल्लाह ,भगवान ,जीसस ,,वाहेगुरु की शक्ति से ही सभी कुछ अच्छा बुरा होना स्वीकार करते है ,पूजते है ,,पाठ पढ़ते है ,,नमाज़ पढ़ते है ,उस देश में इतने बढे अभियान में ,,मीडिया ने जो गुरुर ,,जो तकब्बुर दिखाया ,,मीडिया ने जो में ,,में,, करके ,ईश्वरीय शक्ति का अपमान किया ,भगवान की मर्ज़ी से ,ईश्वर की मर्ज़ी से ,,अल्लाह की मर्ज़ी से इंशाअल्लाह चाँद पर हमारी फतह होगी ,इन अल्फ़ाज़ों को हमारे मिडिया ने गायब कर ,,एक गुरुर ,एक तकब्बुर ,एक रावण सोच ,एक फिरओन की सोच ,,बताने की कोशिश की , मुझे पता नहीं इसरो के वैज्ञानिकों की तकनीक में क्या कमी रही ,,अल्लाह करे वोह कामयाब हो ,चाँद पर गए यान से टूटे सम्पर्क फिर से स्थापित हों ,हमारे देश के वेज्ञानिकों की मेहनत रंग लाये ,कामयाब हो ,,, हम विश्व के वैज्ञानिक गुरु बने ,,हमारे देश में जितनी भी आस्थाये है , इबादत घर है ,वहां दुआएं होना चाहिए मस्जिदों में इस कामयाबी के थोड़ी दूर नाकामयाब हो जाने को फिर से कमयाबी की दुआओं के साथ ,,मस्जिदों में इबादत हो ,, मंदिरों में विशिष्ठ पूजा हो ,,गिरजाघरों में जीसस से दुआ हो ,वाहे गुरु से दुआओं की दरख्वास्त हो ,पीर ,,फ़क़ीर ,क़ाज़ी ,,मुफ्ती ,,साधु ,संत ,पुजारी ,पादरी ,,गुरुग्रंथ साहिब जो भी हो सभी इस देश की कामयाबी के लिए गुरुर को ,अहंकार को एक तरफ रखकर दिल से दुआएं करे ,मीडिया के अहंकार ,,में में ,जो अललाह ,ईश्वर को हमेशा बुरा लगा है ,इस अहंकार ,इस में में ,,रावण जैसा महाज्ञानी ,,फिरओन जैसा बादशाह खत्म हो गया ,उनका अहंकार खत्म हो गया ,तो फिर मिडिया ने कैसे सोच लिया के ईश्वर ,,अल्लाह जो देश की ही नहीं विश्व की आस्थाओं की ऐसी ताक़त यही , जहाँ यह मानयता है ,ईश्वर ,अल्लाह की मर्ज़ी के बगैर कुछ भी सम्भवं नहीं तो फिर ,यह सब में में ,में में के अहंकार से कैसे सम्भव हो सकता था , जो होता है , ईश्वर , अल्लाह की मर्ज़ी से होता है ,हम लोग तो सिर्फ एक माध्यम है , अल्लाह ,ईश्वर के फैसलों को लागू करने वाले तो फिर जनाब ,यह कैसे सोच लिया के अल्लाह ईश्वर के फरमान का तिरस्कार करके हम यह कामयाबी हांसिल कर लेंगे ,लेकिन इंशा अल्लाह ,, अल्लाह के हुक्म से ,भगवान की मर्ज़ी से हम इबादत करे ,,कोशिश करे ,,दुआ करे ,, हम जहाँ भटके है ,वहीँ से फिर कामयाब होंगे ,जल्दी ही अल्लाह ,भगवान हमे अच्छी खबर देगा ऐसी दुआए ,ऐसी उम्मीद हमे रखना ही होगी ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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हमने जिन्हें पुस्तक प्रदान की है और उसे वैसे पढ़ते हैं, जैसे पढ़ना चाहिये,

121 ﴿ और हमने जिन्हें पुस्तक प्रदान की है और उसे वैसे पढ़ते हैं, जैसे पढ़ना चाहिये, वही उसपर ईमान रखते हैं और जो उसे नकारते हैं, वही क्षतिग्रस्तों में से हैं।
122 ﴿ हे बनी इस्राईल! मेरे उस पुरस्कार को याद करो, जो मैंने तुमपर किया है और ये कि तुम्हें (अपने युग के) संसार-वसियों पर प्रधानता दी थी।
123 ﴿ तथा उस दिन से डरो, जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के कुछ काम नहीं आयेगा और न उससे कोई अर्थदण्ड स्वीकार किया जायेगा और न उसे कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश) लाभ पहुँचायेगी और न उनकी कोई सहायता की जायेगी।
124 ﴿ और (याद करो) जब इब्राहीम की उसके पालनहार ने कुछ बातों से परीक्षा ली और वह उसमें पूरा उतरा, तो उसने कहा कि मैं तुम्हें सब इन्सानों का इमाम (धर्मगुरु) बनाने वाला हूँ। (इब्राहीम ने) कहाः तथा मेरी संतान से भी। (अल्लाह ने कहाः) मेरा वचन उनके लिए नहीं, जो अत्याचारी[1] हैं।
1. आयत में अत्याचार से अभिप्रेत केवल मानव पर अत्याचार नहीं, बल्कि सत्य को नकारना तथा शिर्क करना भी अत्याचार में सम्मिलित है।
125 ﴿ और (याद करो) जब हमने इस घर (अर्थातःकाबा) को लोगों के लिए बार-बार आने का केंद्र तथा शांति स्थल निर्धारित कर दिया तथा ये आदेश दे दिया कि ‘मक़ामे इब्राहीम’ को नमाज़ का स्थान[1] बना लो तथा इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) तथा एतिकाफ़[2] करने वालों और सज्दा तथा रुकू करने वालों के लिए पवित्र रखो।
1. “मक़ामे इब्राहीम” से तात्पर्य वह पत्थर है, जिस पर खड़े हो कर उन्हों ने काबा का निर्माण किया। जिस पर उन के पदचिन्ह आज भी सुरक्षित हैं। तथा तवाफ़ के पश्चात् वहाँ दो रकअत नमाज़ पढ़नी सुन्नत है। 2. “एतिकाफ़” का अर्थ किसी मस्जिद में एकांत में हो कर अल्लाह की इबादत करना है।
126 ﴿ और (याद करो) जब इब्राहीम ने अपने पालनहार से प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! इस छेत्र को शांति का नगर बना दे तथा इसके वासियों को, जो उनमें से अल्लाह और अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखे, विभिन्न प्रकार की उपज (फलों) से आजीविका प्रदान कर। (अल्लाह ने) कहाः तथा जो काफ़िर है, उसे भी मैं थोड़ा लाभ दूंगा, फिर उसे नरक की यातना की ओर बाध्य कर दूँगा और वह बहुत बुरा स्थान है।
127 ﴿ और (याद करो) जब इब्राहीम और इस्माईल इस घर की नींव ऊँची कर रहे थे तथा प्रार्थना कर रहे थेः हे हमारे पालनहार! हमसे ये सेवा स्वीकार कर ले। तू ही सब कुछ सुनता और जानता है।
128 ﴿ हे हमारे पालनहार! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना तथा हमारी संतान से एक ऐसा समुदाय बना दे, जो तेरा आज्ञाकारी हो और हमें हमारे (हज्ज की) विधियाँ बता दे तथा हमें क्षमा कर। वास्तव में, तू अति क्षमी, दयावान् है।
129 ﴿ हे हमारे पालनहार! उनके बीच उन्हीं में से एक रसूल भेज, जो उन्हें तेरी आयतें सुनाये और उन्हें पुस्तक (क़ुर्आन) तथा ह़िक्मत (सुन्नत) की शिक्षा दे और उन्हें शुध्द तथा आज्ञाकारी बना दे। वास्तव में, तू ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ[1] है।
1. यह इब्राहीम तथा इस्माईल अलैहिमस्सलाम की प्रार्थना का अंत है। एकरसूल से अभिप्रेत मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। क्यों कि इस्माईल अलैहिस्सलाम की संतान में आप के सिवा कोई दूसरा रसूल नहीं हुआ। ह़दीस में है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः मैं अपने पिता इब्राहीम की प्रार्थना, ईसा की शुभ सूचना, तथा अपनी माता का स्वप्न हूँ। आप की माता आमिना ने गर्भ अवस्था में एक स्वप्न देखा कि मुझ से एक प्रकाश निकला, जिस से शाम (देश) के भवन प्रकाशमान हो गये। (देखियेः ह़ाकिमः2600) इस को उन्हों ने सह़ीह़ कहा है। और इमान ज़हबी ने इस की पुष्टि की है।
130 ﴿ तथा कौन होगा, जो ईब्राहीम के धर्म से विमुख हो जाये, परन्तु वही जो स्वयं को मूर्ख बना ले? जबकि हमने उसे संसार में चुन[1] लिया तथा आख़िरत (परलोक) में उसकी गणना सदाचारियों में होगी।
1. अर्थात मार्गदर्शन देने तथा नबी बनाने के लिये निर्वाचित कर लिया।

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कार्टून :- राजनीति‍ का पकड़ौआ सि‍द्धांत


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तबाही को आमंत्रित करती सभ्यता

शनिवार, 7 सितंबर 2019




दिनांक 060919

यह सभ्यता उन गलतियों की वज़ह से तबाह हो रही है जो हम जानबूझकर करते हैं...
तारीख़ बदल गयी है लेकिन मंजर वही है... अँधेरी रात और घनघोर वर्षा में डूबता जगदलपुर शहर । रात के दो बज रहे हैं अचानक कुछ गिरने की आवाज़ से नींद खुली तो देखा कमरे में पानी भरा हुआ है।
हमारा घर जगदलपुर के पॉश इलाके में है जहाँ एन.एम.डी.सी. के अधिकारियों से लेकर आई.जी. और कमिश्नर जैसे बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारी भी रहते हैं। इसी साल जुलाई में भी यह शहर इसी तरह पानी में डूबा था किंतु सबक नहीं लिए जाने की परम्परा को निभाते हुए कोई सबक नहीं लिया गया । इस बार स्थिति ज़्यादा ही गम्भीर है।
विज्ञान एक ऐसा दैत्य है जिसे सम्हालना बहुत मुश्किल है । तबाही के दिन हमारी कोई भी उन्नत तकनीक किसी को भी बचा नहीं सकेगी ।  वह एक ऐसी घड़ी होगी जब कुछ भी हमारे पक्ष में नहीं होगा - न पद ...न पैसा

डायल 112...
पानी घरों के अंदर घुस चुका है, सारा सामान भीग रहा है। रात के ढाई बजे मैंने डायल 112 को फ़ोन करके सहायता की याचना करनी चाही। उधर से कहा गया कि आवाज़ नहीं सुनाई दे रही है, बी.एस.एन.एल की सेवा से हम बहुत अच्छी तरह परिचित हैं। हमने दोबारा और तिबारा फोन लगाया ...उधर से वही आवाज़...”आपकी आवाज़ स्पष्ट नहीं है, कृपया दोबारा लगाएँ” । इस बार हमने दूसरे मोबाइल से सम्पर्क किया, बात हुयी, उधर से कहा गया “शीघ्र ही आपसे सम्पर्क किया जाएगा”। पिछले बार भी यही कहा गया था, वह सम्पर्क आज तक नहीं हुआ। यूँ, वारिश के अलावा अन्य मामलों में डायल 112 की सेवा तुरन्त मिल जाया करती है जिसके लिए हम छत्तीसगढ़ शासन और डायल 112 की टीम के ऋणी हैं।
डायल 112 के बाद हमने कुछ और लोगों को फ़ोन करके उन्हें इत्तला दी कि आपके घर में पानी घुस चुका है कृपया अपने ज़रूरी सामान को बचाने का प्रयास करें । जिन्हें फ़ोन किया गया उनमें तीसरे नम्बर पर एक बंदा ऐसा भी है जो पिछले पाँच साल से मेरे साथ शत्रुवत व्यवहार करता आ रहा है । कहीं पढ़ा था, आपत्तिकाल में शत्रु और मित्र का भेद समाप्त हो जाना चाहिए ।
दरअसल यह हमें भी पता है कि जब सड़क पर जाघों तक पानी बह रहा हो तो ऐसे में डायल 112 की सेवा भी क्या कर सकेगी। हमने उन्हें सुझाव दिया कि जे.सी.बी. भेज कर बाउण्ड्रीवाल के कुछ हिस्से को तोड़ दिया जाय तो पानी घरों से बाहर निकलना शुरू हो जाएगा । पिछली बार की वारिश में हमारे पड़ोसी गुड्डू ख़ान ने अपनी जे.सी.बी. मँगवाकर कुछ मलबा हटाकर सफ़ाई की थी तो पानी घरों से बाहर निकलने लगा था। इस बार गुड्डू ख़ान हैदराबाद में हैं और डायल 112 वाले जे.सी.बी. की सेवा उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं।
फ़िलहाल अब घर-घर में डल झील का आनंद प्राप्त करना हो गया आसान । बस, एक कमरे से दूसरे कमरे में जाने के लिए हमें एक शिकारा बनवाना पड़ेगा । इसके बाद तो सब कश्मीर ही कश्मीर हो जायेगा ।

वरुण देवता हमसे बेहद ख़फ़ा हैं क्योंकि हमने प्रकृति के साथ बेहद बदसलूकी की है...
जगदलपुर शहर में इधर कुछ वर्षों में तेजी से कंक्रीट के जंगल खड़े किए जाते रहे हैं किंतु पानी के निकास की कहीं कोई व्यवस्था नहीं की गयी । कुछ कॉलौनीज़ तो ऐसी भी हैं जिनके चारों ओर बाउण्ड्रीवाल बनाकर किलेबंदी भी कर दी गई जिससे वारिश का पानी बाहर नहीं निकल पाता । यदि इन दीवालों को तोड़ दिया जाय तो कम से कम घरों को पानी में डूबने से बचाया जा सकता है किंतु इन बाउण्ड्रीवाल को तोड़ने में किसी अधिकारी की कोई दिलचस्पी नहीं है ।

पॉलीथिन बैग्स का अंधाधुंध दुरुपयोग और बेवकूफ़ाना ढंग से बनाये गये घर अब घरवालों के लिए मुसीबत बन चुके हैं । ऐसे ही हालातों में किसी दिन यह सभ्यता नष्ट हो जायेगी । लेकिन यह सब जानते हुये भी सुधार के बारे में कभी कोई नहीं सोचेगा । विकास और आधुनिकता का सभ्यताओं और प्रकृति के साथ यही तो तकाज़ा है ।

कामायनी...
“हिम गिरि के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँह...एक व्यक्ति भीगे नयनों से देख रहा था प्रबल प्रवाह” – कामायनी लिखने से पहले क्या जयशंकर प्रसाद के भी घर में घुसकर गुस्साये पानी ने कभी ऐसी ही मनमानी की होगी! 

भोर के पाँच बज रहे हैं, रात भर हुयी घनघोर वारिश कुछ कम ज़रूर हुई किंतु बंद अभी भी नहीं हुयी। हम अपनी श्रीमती जी के साथ रात भर कमरों से पानी उलीचते रहे और ज़रूरी सामान को बचाने की कोशिश करते रहे। लगातार तीन घंटे की मशक्कत के बाद हम दोनों ने घर का सारा पानी उलीच कर निकाल दिया। पानी के साथ कमरों में आकर ठहर गये गंदे कीचड़ को हमारी प्रतीक्षा है । बाहर आँगन में अभी भी जलस्तर ऊँचा है । घर के बाहर की सड़क पर पानी जाँघों तक है । पानी अब रुक-रुक कर बरस रहा है ।

नागलोक...  
पौ फटने लगी है। श्रीमती जी ने दरवाजा खोला तो देखता हूँ कि पानी में तैरता हुआ एक ज़हरीला नाग घर के अंदर घुसने की कोशिश कर रहा है। श्रीमती जी ने झट से दरवाज़ा बंद कर दिया। नाग देवता को शरण के लिए अब कहीं और जाना होगा। मैं कुछ क्षणों के लिए नाग बनकर पानी में तैरता हुआ किसी आदमी के घर में शरण पाने की उम्मीद में घुसने की कोशिश करता हूँ। घर की मालिकिन मुझे देखते ही दरवाज़ा बंद कर लेती है.. मुझे बुरा लगता है और मैं निराश हो जाता हूँ। आज मुझे कोई भी अपने घर में नहीं घुसने देगा... सनसिटी के लोग ऐसे ही हैं। कम से कम प्राकृतिक आपदा के समय तो सहयोग करना चाहिये। मैं ज़हरीला हूँ तो इसमें मेरी क्या गलती है? पिछले महीने अमेज़ॉन के जंगल में आग धधकती रही, हमारे कितने भाई-बहन और रिश्तेदार आग में ज़िंदा जलकर ख़ाक हो गए! उफ़्फ़! ये आदमी लोग ख़ुद भी तबाह होते हैं और हमें भी तबाह करते हैं।
मैं एक बार फिर दरवाज़ा खोलता हूँ ...यह देखने के लिए कि नाग देवता अभी हैं या कहीं और चले गए। हाँ! वे जा चुके हैं । भोर का उजाला थोड़ा और बढ़ गया है । काश! लोगों के दिमाग़ों तक भी यह उजाला पहुँच पाता।

बदहवास सी एक नन्हीं चिड़िया मुंडेर पर आकर इधर-उधर देख रही है । पंछियों का कलरव आज सुनायी नहीं दे रहा है । वे सब परेशान हैं और शायद मन ही मन आदमी प्रजाति को कोस रहे हैं। चिड़िया उड़ गयी, श्रीमती जी ने दरवाज़ा खुला देखा तो चीख पड़ीं ...”ज़ल्दी बंद करो बाहर पानी में साँप हैं घर में घुस जायेंगे”। मैं दरवाज़ा खुला रखना चाहता हूँ ...किंतु चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकूँगा । मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया है । छत्तीसगढ़ का यह हिस्सा नागलोक है । कभी यहाँ नागवंशी राजा हुआ करते थे। अब राजा तो नहीं रहे किंतु नाग यहाँ आज भी बहुतातायत से मिलते हैं ।

असली साम्यवाद...
नौ बजे तक सड़क का जलस्तर काफ़ी कम हो चुका था और अब हॉस्पिटल जाया जा सकता था । रास्ते में कई जगह सड़क पानी के प्रवाह से कटी हुई मिली । कल तक जो सड़क ठीक-ठाक थी आज वहाँ एक से ढाई फ़िट गहरे गड्ढे बन चुके थे और उनमें पानी भरा हुआ था । हम जैसे-तैसे हॉस्पिटल पहुँचे तो प्रवेश द्वार क्षतिग्रस्त मिला । पूरे हॉस्पिटल में गाद वाले कीचड़ का आलम था । दवाइयों वाले स्टोर रूम में कीचड़ ही कीचड़ था। ज़मीन पर रखे सारे भीगे कार्टून कीचड़ में सने हुए थे । डॉ. क्रांति मण्डावी सारे कर्मचारियों के साथ स्वयं भी सफाई अभियान में लगी हुयी थीं । वे इस समय एक मेहनतकश स्वीपर की भूमिका में थीं और ओ.पी.डी. में भर गये पानी और कीचड़ को निकाल-निकाल कर फेंक रही थीं, फ़ार्मासिस्ट लोग झाड़ू और पानी का पाइप लेकर फ़र्श साफ़ कर रहे थे । जाते ही हमने भी एक झाड़ू थाम ली । हमने अपने जीवन में यह पहला ऐसा हॉस्पिटल देखा जहाँ आवश्यकता पड़ने पर डॉक्टर से लेकर स्वीपर तक सभी लोग मिलजुल कर बिना किसी अहं के किसी भी तरह के काम में जुट जाया करते हैं । ख़ासतौर पर सफ़ाई के समय हमने किसी भी अधिकारी या कर्मचारी में पद के अहंकार का लेश भी नहीं देखा । डॉक्टर्स की भागीदारी केवल दिखावे के लिए नहीं होती बल्कि वे भी कंधे से कंधा मिलाकर पसीना बहाते हैं । यह एक गौरवशाली परम्परा है जिसमें साम्यवाद के सिद्धांत का वास्तविकता के धरातल पर सही अनुवाद देखा जा सकता है ।

बी.एस.एन.एल. सेवाओं में स्पंदन की तलाश...

वारिश ने बी.एस.एन.एल. सेवाओं को स्पंदनहीन कर दिया । फ़िलहाल हमारा लैण्ड लाइन बिना कोई धारा समाप्त किये ही कश्मीर हो गया है, ब्रॉड बैण्ड कनेक्शन भी मृत हो चुका है। दुनिया से कटकर हम सत्तर के दशक के चाइना बन चुके हैं ...दुनिया से अलग एक अज़ूबी दुनिया के वाशिंदे ।  कहा नहीं जा सकता कि हमारी बी.एस.एन.एल. सेवायें कब तक कश्मीर या चाइना बनी रहेंगी । ज़रूरी नहीं कि सरकार ही कर्फ़्यू लगाएपवन देव, वरुण देव और अग्नि देव क्रुद्ध होने पर कभी भी कर्फ़्यू लगा सकते हैं । उनका लगाया कर्फ़्यू कोई तोड़ कर दिखाये तो भला!  

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पूरी दुनिया में हिन्दी को नयी ऊंचाई देने में सफल रही है परिकल्पना

सोमवार, 26 अगस्त 2019

लखनऊ (25 अगस्त) :  हिन्दी भाषा की विविधता, सौन्दर्य, डिजिटल और अंतराष्ट्रीय स्वरुप को विगत 14 वर्षों से वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठापित करती आ रही लखनऊ की संस्था परिकल्पना के 13वीं वार्षिक महासभा में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे लखनऊ परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव ने अपने उद्वोधन में कहा कि ‘‘परिकल्पना एक ऐसी संस्था है, जो गैर हिन्दी प्रदेशों के साथ-साथ विदेशों में हिन्दी के प्रचार प्रसार में प्रतिबद्ध है। यह संस्था हिन्दी को वैश्विकता प्रदान करने में पिछले कई वर्षों से लगातार सक्रिय है। सामाजिक संस्थाओं की उपयोगिता और आवश्यकता हर जमाने में रही है, लेकिन कुछ ही संस्थाएं अपने लक्ष्य, अपने मिशन में कामयाब हो पाती है। मुझे खुशी है कि हमारे शहर की यह संस्था वैश्विक पहचान बनाने में कामयाब रही है। मुझे यह कहते हुये गर्व का अनुभव हो रहा है कि यह संस्था हिन्दी भाषा को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप देने की दिशा में बड़ा काम कर रही है। यह संस्था हिन्दी भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा हेतु विगत कई वर्षों से संघर्षरत है। यह संस्था पूरी दुनिया में हिन्दी को नयी ऊंचाई देने में सफल रही है।‘‘ 
विशिष्ट अतिथि महाराष्ट्र विश्व विद्यालय जलगांव के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ सुनील कुलकर्णी ने कहा कि ‘‘मैं हिन्दी के प्रचार, राष्ट्रभाषा के प्रचार को राष्ट्रीयता का मुख्य अंग मानता हूँ। मैंने भारत की बहुत सारी संस्थाओं को करीब से देखा है जो हिन्दी के प्रचार-प्रसार में प्रतिबद्ध है, लेकिन हमारी परिकल्पना सही मायानों में हिन्दी के उत्थान कि दिशा में अनुकरणीय भूमिका निभा रही है।‘‘ 
इस एक दिवसीय संगोष्ठी में आगत अतिथियों का स्वागत कराते हुये अवधि के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ राम बहादुर मिश्र ने कहा कि ‘‘जहां हिन्दी है, वहीं परिकल्पना है और जहां परिकल्पना है वहीं हिन्दी है। परिकल्पना संस्था नहीं एक वैश्विक परिवार है जो वसुधईव कुटुंबकम कि भावना को चरितार्थ करती है।‘‘ 
अपने उद्वोधन में अभिदेशक पत्रिका के संपादक डॉ ओंकार नाथ द्विवेदी ने कहा कि ‘‘परिकल्पना ने हिन्दी को पूरी दुनिया में जिस प्रकार से फैलाने का कार्य किया है वह अविस्मरणीय है। यह परिवार हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने कि दिशा में पूरी दृढ़ता के साथ सक्रिय है। यह बहुत बड़ा काम है जिसे अपने सार्थक कदमों से साधने का काम कर रहा है यह परिवार।‘‘ 
परिकल्पना समय के प्रधान संपादक डॉ रवीन्द्र प्रभात ने कहा कि ‘‘परिकल्पना संस्था अबतक विश्व के 11 देशों में क्रमशः ‘‘ब्लोगोत्सव‘‘ और ‘‘अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव‘‘ का आयोजन कर चुकी है। पिछला अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी उत्सव 26 मई 2019 को भारतीय महावाणिज्य दूतावास वियतनाम, वियतनाम स्थित भारतीय बीजनेस चेम्बर ऑफ कोमर्स के सहयोग से वियतनाम की आर्थिक राजधानी हो ची मिनह में मनाया गया था। भारतीय भाषाओँ के विकास और उनके वैश्विक प्रारूप को समृद्ध बनाने के लिए प्रतिबद्ध है परिकल्पना।‘‘ 
सभाध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मिथिलेश दीक्षित ने कहा कि ‘‘परिकल्पना जिन पवित्र उद्देश्यों को लेकर काम कर रही है वह बहुत बड़ा काम है। परिकल्पना की सदस्य होने के नाते यदि मैं कहूँ कि परिकल्पना मुझमें बसती है और मैं परिकल्पना में तो शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।‘‘ 
भारतीय भाषाओँ के विकास और उनके वैश्विक प्रारूप को समृद्ध बनाने के लिए प्रतिबद्ध संस्था परिकल्पना की अध्यक्ष माला चैबे ने कहा, ‘‘यह संस्था हिन्दी भाषा और साहित्य की तकनीकी प्रगति को समर्पित है। यह संस्था एक वैश्विक परिवार है जिससे जुड़कर आप अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकते हैं और राष्ट्र निर्माण में अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित कर सकते हैं। यह वह मंच है जहां तुलसी के पत्ते की तरह सबको समान अवसर और सबको समान सम्मान प्रदान करती है।‘‘
इस अवसर पर परिकल्पना परिवार के संस्थापकों मे से एक स्वर्गीय अविनाश वाचस्पति की स्मृति मे श्रीमती कुसुम वर्मा को परिकल्पना के द्वारा 11 हजार रुपये नकद के साथ अविनाश वाचस्पति सम्मान प्रदान किया गया। साथ ही परिकल्पना की नयी कार्यकारिणी का गठन हुआ और नए उत्तरदायित्व ग्रहण करने वाले सदस्यों को पद और गोपनियता की शपथ दिलाई गयी। 
इस अवसर पर लखनऊ के वरिष्ठ अधिवक्ता और लोकसंघर्ष पत्रिका के सलाहाकार मोहम्मद शुएब ने कहा कि "परिकल्पना से मैं भावनात्मक रूप से जुड़ा हूँ, आज मैं परिवार के बीच हूँ यह मेरे लिए गौरव की बात है। "
इसके पश्चात परिकल्पना के जानकीपुरम, लखनऊ स्थित नए परिसर का लोकार्पण भी सुनिश्चित हुआ।
संस्था के नव नियुक्त पदाधिकारियों में प्रमुख रहीं गाजियावाद से पधारीं डॉ मीनाक्षी सक्सेना कहकशां जिन्हें महिला प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी प्रदान की गयी। इसके अलावा लखनऊ की डॉ मिथिलेश दीक्षित को मानद अध्यक्ष, प्रमुख समाजसेवी सत्या सिंह को उपाध्यक्ष (सामाजिक गतिविधियां), आगरा की डॉ सुषमा सिंह को उपाध्यक्ष (वैश्विक प्रसार), बाराबंकी के एडवोकेट रणधीर सिंह सुमन को उपाध्यक्ष (मीडिया सह विधिक प्रभारी), वाराणसी के श्री शचिंद्रनाथ मिश्र को उपाध्यक्ष (युवा प्रकोष्ठ), लखनऊ की श्रीमती शीला पाण्डेय को सचिव (कार्यक्रम संयोजन), लखनऊ के श्री राजीव प्रकाश को सचिव (सेंट्रल उत्तर प्रदेश प्रभारी), मधेपुरा बिहार के डॉ अमोल रॉय को सचिव (बिहार प्रभारी), नयी दिल्ली के श्री गगन शर्मा को सचिव (दिल्ली प्रभारी), गाजियाबाद के डॉ अरुण कुमार शास्त्री को सचिव (पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रभारी), लखनऊ की श्रीमती नीता जोशी को सचिव (महिला प्रकोष्ठ), लखनऊ कि श्रीमती कनक लता गुप्ता को सचिव (सामाजिक गतिविधियां), लखनऊ कि श्रीमती कुसुम वर्मा को सचिव (सांस्कृतिक गतिविधियां), लखनऊ के डॉ उदय प्रताप सिंह को सचिव (मीडिया प्रभारी), लखनऊ की श्रीमती आकांक्षा यादव को सह सचिव (महिला प्रकोष्ठ) और लखनऊ की श्रीमती आभा प्रकाश को सह सचिव (सांस्कृतिक गतिविधियां) का दायित्व प्रदान किया गया।
इसके अलावा श्री नकुल दुबे, डॉ सुनील कुलकर्णी, डॉ राम बहादुर मिश्र, डॉ चम्पा श्रीवास्तवतथा डॉ प्रभा गुप्ता को संस्था का संरक्षक और श्री शिव सागर शर्मा, डॉ ओंकारनाथ द्विवेदी,डॉ ओम प्रकाश शुक्ल अमिय,श्री कृष्ण कुमार यादव, डॉ अनीता श्रीवास्तव और डॉ बालकृष्ण  पाण्डेय को मार्गदर्शक मण्डल में शामिल किया गया।
तत्पश्चात आगरा से पधारे कवि शिवसागर ने अपने सुमधुर आवाज़ मे कविता प्रस्तुत कर उपस्थित श्रोताओं के बीच खूब बहबही बटोरी।   मंच संचालन लोक गायिका कुसुम वर्मा ने किया।
(मीडिया रिपोर्ट: डॉ उदय प्रताप सिंह)

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आप सभी को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं।

बुधवार, 18 अक्तूबर 2017


मन के अंधियारे को दूर भगाएं
चलो प्रेम का दीप  जलाएं

साथ चले न कोई जो तेरे
खुद को मन का साथी बना ले
असफलता से डर मत पगले
प्रयास के पथ को गले लगा ले

कोशिश की हार नही होती है
हर दिल मे ये विश्वास जगाएं
मन की अँधियारे को दूर भगाएँ
चलो प्रेम का दीप जलाएं

क्या तेरा है क्या मेरा है
ये जग दो दिन का बसेरा है
सद्कर्म किये जा पगले
हंस कर तू मिल सब से गले

मन का गुलाब सदा  ही रहे खिला
संघर्ष कांटे है उनका भी संग निभाएँ
मन के अंधियारे को दूर भगाएँ
चलो प्रेम का दीप जलाएं

बिना भाव  के मन पाषाण है
सबके कल्याण में तेरा भी कल्याण है
जहाँ भी प्रेम से मन सिंचित हो गया
धीर विश्वास भी वहीं पल्लिवत हो गया

रूठें न  कभी  भी जीवन मे अपने
भौतिक दौलत  भले ही कम हो जाये।
मन के अंधियारे को दूर भगाएँ
चलो प्रेम का दीप जलाएं



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शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

माननीय उच्चतम न्यायालय फैसला:


माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया वह आने वाले समय में भारतीय समाज के लिए दूरदर्शी परिणाम लाएगा।कानून तो पहले भी था। परंतु अब स्पष्ट हो चुका। है , कि 18 साल से कम उम्र की बालिका से यौन सम्बन्ध बनाना उसके पति  के लिए भी अपराध होगा ।
  माननीय अदालत ने इसे धर्म और मजहब के बंधन में नही बांधा है , यह निर्णय देश में समान रूप से लागू होगा तथा देश में महिलाओं  के स्वतन्त्रता सम्बन्धी अधिकारों को सुरक्षित करने में  एक नई इबारत लिखेगा। इसके फायदे  बिभिन्न क्षेत्रों में होंगे जैसे स्वास्थ के क्षेत्र जहाँ कम उम्र में अनीमिया से महिला प्रसव के दौरान मर जाती है वही  शिशु मृत्यु दर में भी कमी आएगी।  हमारे देश व समाज मे बालविवाह  के रूप में जो सामाजिक बुराई   व्याप्त है , जिसके कारण आज भी भारत  के कई प्रान्तों में अशिक्षा के कारण गांवों में कम उम्र में ही लड़कियों की शादी उनकी मर्जी  के खिलाफ कर दी जाती है । जबकि वह आगे भी पढ़ना चाहती है। इस फैंसले से गांव हो या शहर  समाज मे एक बदलाव आने की सम्भावना है।  शिक्षा के क्षेत्र मे भी धीरे धीरे ही सही परन्तु बदलाव जरूर होगा।  छोटी लड़कियों को अपनी पढ़ाई बचपन में ही छोड़ने के लिए बाध्य नही होना पड़ेगा।सुप्रीमकोर्ट के दिशा निर्देश का पालन शासन भी करेगा । अदालती फैसले के कारण समाज मे अब शादी के वक्त बहू लाते वक्त परिवार उसकी उम्र जरूर पूछेगा। आशा है यह फैसला आने वाले समय में महिलाओं के लिए ही नही हमारे पूरे समाज के लिये वरदान साबित होगा।

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