ये देश विरोधी लोग!
शनिवार, 13 सितंबर 2025
आपकी बात
ये देशविरोधी लोग!
गिरीश पंकज
कहीं पढ़ रहा था किसी का बयान जिसमें वह कह रहे थे कि "बांग्लादेश देश के युवाओं ने क्रांति की, नेपाल के युवकों ने भी ऐसा किया। भारत के युवा कब जागेंगे।" ऐसे मिलते-जुलते बयान सोशल मीडिया में देखने को मिले। यह बयान देश में अराजकता का वातावरण बनाने की कोशिश की घटिया पहल कही जा सकती है। यह विशुद्ध रूप से देशविरोधी बयान कहा जाएगा। बांग्लादेश और नेपाल के युवकों ने जो कुछ किया, वह क्रांति नहीं, पूरी तरह से भ्रान्ति थी। अपने ही देश को नष्ट करना, संस्थानों को जलाना, लोगों को मारना पीटना, ज़िंदा जलाने की कोशिश करना अगर क्रांति है, तो दुर्भाग्य है उस देश के युवाओं की सोच का। भारत में रह कर अपने ही देश के प्रति सम्मान का भाव ने रखने वाले पापी ही चाहेंगे कि भारत भी हिंसा की आग में जले। मुंबई के एक कवि रमेश शर्मा ने बिल्कुल ठीक दोहा कहा है कि "दूजों के सिर क्यों मढ़ें, नाहक ही इल्जाम/अपने ही जब कर रहे, गद्दारी का काम"। सौभाग्य से इस देश में अराजक लोगों के मंशा पूरी नहीं हो पाएगी। क्योंकि यहां के लोगों के संस्कार ऐसे नहीं हैं। हाँ, कुछ विपक्षी भड़का कर कुछ प्रयास कर सकते हैं, पर वे इस देश को नेपाल नहीं बना सकेंगे। हमारे देश में तो यह नारा शुरू से लगाया जाता है ''सरकारी संपत्ति आपकी अपनी है।" अपनी संपत्ति को भला कौन नुकसान पहुंचाएगा। कोई बुद्धिहीन ही ऐसा काम करेगा। लेकिन दुर्भाग्यवश बांग्लादेश और नेपाल में युवकों ने अपने ही देश को जलाकर राख कर डाला। यह कैसी क्रांति है कि युवा तोड़फोड़ कर रहे हैं और कीमती चीजों को उठाकर अपने घर ले जा रहे हैं? यह क्रांति नहीं, लूटपाट है! क्रांति के लिए आत्म बलिदान करना पड़ता है। दूसरों को क्षति पहुंचाने की बजाय अपने आप को क्षति पहुंचानी पड़ती है। अनशन, आमरण अनशन, धरना प्रदर्शन ही एक रास्ता है। लोकतांत्रिक तरीका यही है। हिंसक क्रांति नहीं, वैचारिक क्रांति होनी चाहिए। गांधी ने यही सिखाया है। मुझे गयाप्रसाद शुक्ल सनेही जी की कविता याद आ रही है, जिसमें वह कहते हैं, "जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं/ वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।" दुःख की बात है कि इस देश में देश विरोधी ताकतें तेजी से बढ़ रही।तभी तो युवकों को भड़काने की कोशिशें हो रही हैं। विपक्ष बौखला गया है। वह चाहता है कि किसी तरह वर्तमान सत्ता जाए और वे सत्ता में काबिज हों। यह कितने शर्म की बात है कि भरे मंच से प्रधानमंत्री को माँ की गाली दी गई, पर किसी भी बड़े नेता ने इस कुकृत्य के लिए माफ़ी नहीं मांगी। अंत में कहना यही है कि युवकों को संस्कार देने की बात करें। देश से प्यार करने के लिए प्रेरित करें। शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन के लिए समझाएँ। नेपाल के युवकों ने जो किया वह देशविरोधी कदम कहा जाएगा। इस प्रवृत्ति की निंदा होनी चाहिए। वाह-वाही नहीं। गुंडागर्दी, लूटपाट, हिंसा अगर क्रांति है, तो इस क्रांति से पूरे विश्व को तौबा करनी चाहिए।
1 comments:
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