पर ............ !!!
गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011
कल रात वह बोलता गया
और पेड़ से पत्ते गिरते रहे
पत्तों के गिरने की कोई आवाज़ ना थी
ना उन शब्दों की
जो मेरे दिल पे गिरते गए ...
धीमी हवाएँ पत्तों का सर सहला रही थीं
और मैं उसका सर सहला रही थी !
किसी खिलौने के टूटने सी उसकी बौखलाहट
मेरी मिट्टी के आँगन से मन में
रेखाएं खींचती गईं - कुछ कल की
कुछ आज की
और नम होती गईं
मैं खामोश आँगन की मिट्टी पर
हाथ फिराती रही ....
अनकहे ज़ज्बात
किस कदर चंद अल्फाजों में
दर्द बनकर सीने में घुमड़ते हैं
अंदेशा होता है -
मुझे कुछ हो तो नहीं रहा
आँखों की कोरों से ख़ामोशी टप टप गिरती है
न चाहते हुए भी कई भयानक दृश्य
जीवंत हो
कानों में गर्म शीशे की तरह पिघलते हैं
चाहो न चाहो सब आत्मसात कर
बारिश के बाद की खिली धूप सा होना पड़ता है
पर ............ !!!
.......
10 comments:
चाहो न चाहो सब आत्मसात कर
बारिश के बाद की खिली धूप सा होना पड़ता है
पर ............ !!!
बहुत ही गहन भाव छिपे हैं इन पंक्तियों में दर्द को छिपाने की कोशिश करते शब्द ...।
आज तो दर्द का बहुत मार्मिक चित्रण कर दिया………कुछ बिम्ब बहुत ही सुन्दर बने हैं………दिल को छू गयी रचना।
किसी खिलौने के टूटने सी उसकी बौखलाहट
मेरी मिट्टी के आँगन से मन में
रेखाएं खींचती गईं - कुछ कल की
hmmmmmm.....
आँखों की कोरों से ख़ामोशी टप टप गिरती है
न चाहते हुए भी कई भयानक दृश्य
जीवंत हो - दर्द सचित्र चित्रण
बेहद मर्मस्पर्शी कविता.
सादर
बहुत सही लिखा आपने।
मार्मिक रचना ,शब्द नहीं हैं कहने के लिए
मार्मिक प्रस्तुति...
आज तो आपने आँखें नम कर दिन ...बहुत मार्मिक और मन को छू लेने वाली रचना
नहीं चाहे तो भी बारिश के बाद खिली धूप- सा होना पड़ता है ...
दर्द का एहसास दर्द से ज्यादा होता है , कभी कभी ऐसा लगता है ...
मार्मिक !
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