बस सोचती रह जाती हूँ !
शनिवार, 19 फ़रवरी 2011
वो नानी वो दादी बन गई हैं ... पदवी बढ़ गई , मूल से प्यारा सूद वाली कहावत चरितार्थ हो गई है ... अब सूद के आगे कुछ कैसे लिखा
जाये ! कलम हाथ में रहेगी नहीं और छन से गिरते शब्द मटकती आँखों के आगे ठिठक जायेंगे और नानी दादी यही कहेंगी ....
शब्द
मेरे संग आंखमिचौली मत खेलो
वो परदे के पीछे छुपी मेरी गुडिया
मेरा गुड्डा
कह रहे हैं - 'मुजे धुन्दो , मे तहां हूँ (मुझे ढूंढो , मैं कहाँ हूँ )
....
ढूँढने के इस खेल में
दौड़ते दौड़ते मेरी कमर दुःख गई
बालों में कंघी करने का वक़्त नहीं
और तुम हसरत से मुझे देखे जा रहे हो !
मैं विवश हूँ
कलम लिया नहीं
कि मेरी गुडिया मेरा गुड्डा
छीन लेंगे
और फिर कहाँ कहाँ रेखाएं बनेंगी
यह तो मत ही पूछो...
मैं सफाई में फंस जाऊँगी !
एक नन्हीं कटोरी में
चार कौर का खाना
दो घंटे में इनको खिलाऊँगी
फिर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए
लोरी गाऊँगी ... गाते गाते मेरी पलकें झपक जाएँगी
और धडाम से कुछ गिरने की आवाज़ पर
मैं फिर दौड़ने लगूंगी ....
कितने किस्से सुनाऊं मेरे प्यारे शब्द
मेरा मन करता तो है
कि तुम्हें उठाऊं
पर कहा न
मूल से प्यारे सूद के आगे
बस सोचती रह जाती हूँ !
15 comments:
रश्मि जी ,
आज तो आपने बिल्कुल मेरे मन की बात इतने सुन्दर शब्दों में कह दी ....एक एक शब्द जैसे मैं जी रही हूँ इस अभिव्यक्ति में :)...आगे के समय का भी खाका खींच दिया है :)
बहुत प्यारी रचना ...आभार
mool aur sud...:)
kya kahne hain...!
rashmi ji kya kahne.sach me ise padhte hue sangeeta swaroop ji ka charcha manch par nutan ji dwara lagaya photo yad aagaya.badhai...
कितने किस्से सुनाऊं मेरे प्यारे शब्द
मेरा मन करता तो है
कि तुम्हें उठाऊं
पर कहा न
मूल से प्यारे सूद के आगे
बस सोचती रह जाती हूँ !
अच्छा लगा !
एक नन्हीं कटोरी में
चार कौर का खाना
दो घंटे में इनको खिलाऊँगी
फिर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए
लोरी गाऊँगी ... गाते गाते मेरी पलकें झपक जाएँगी
और धडाम से कुछ गिरने की आवाज़ पर
मैं फिर दौड़ने लगूंगी ....
किसी शब्द की तारीफ करूं या आपकी इस प्यारी रचना की जिसे आपने रचा है इतने मनोयोग से जिसका एक-एक शब्द निकला है हृदय की गहराईयों से ...मूल से प्यारे सूद के आगे सब बेकार लग रहा है ....बधाई इस अनुपम रचना के लिये ।
बहुत ही सुन्दर है आपकी अभिव्यक्ति, मासूम शब्दों की श्रृंखला पिरोती हुयी, आभार !
प्यारी रचना ...
रश्मि di...
बहुत सुन्दर है आपकी रचना ki अभिव्यक्ति
...आभार
कितने किस्से सुनाऊं मेरे प्यारे शब्द
मेरा मन करता तो है
कि तुम्हें उठाऊं
पर कहा न
मूल से प्यारे सूद के आगे
बस सोचती रह जाती हूँ
apne suksham bhavnaon ko sunderta se ukeraa .sadhuwad .
saadar
कविता पढ़कर ला मनो एक नन्ही सी नाम ऊँगली हथेली के बींच आ गई और एक कच्ची सी सोंधी महक फ़ैल गई
एक औरत के जीवन में ऐसे भी पड़ाव आते हैं ... बहुत सुन्दर !
वाह वाह, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
आभार
कितना भी थ जाओ दादी नानी बनने का सुख फिर भी किसी थकावट से बडा है। सुन्दर रचना। बधाई।
बहुत प्यारी रचना, बधाई रश्मि जी!
बहुत सुन्दर ......मुझे लगा जैसे मैं ही छोटे -छोटे कदमो के पीछे भाग रही हूँ
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