हास-परिहास: सामूहिक ब्लाग की बागुड़ लांघते सांड़ !!
शनिवार, 19 फ़रवरी 2011
मुहल्ले-मुहल्ले,नुक्कड़-नुक्कड़, एसोसिएशन बनने की आहट मिल रही है. ब्लाग विरोधी ताक़तें कह रहीं हैं - कि एक घर के चार लोग चार एसोसिएशन बना लेंगे तब देखना मज़ा आएगा.
कोई कदम उठाएंगे वो कदम क्या होगा ये कील कुमार बताएंगे जिनके कई ब्लाग परित्यक्ता की ज़िंदगी काट रहें हैं कुछ बेचारे ब्लागर (अपने ब्लाग पर पाठकों के अभाव में) खद्योतित प्रकाश बांट रहे हैं. वैसे. एक ब्लागर जी के ब्लाग रूपी नुक्कड़ में सांड़ घुस गया पता चला कि हुजूर खुद ने बछड़े को पाला पोसा बड़ा सांड़ बनाया और उसके साउथ-एवेन्यू-माल पे त्रिशूल गुदवा दिया था. उसी बछड़े ने सींग उठाए तो अपने ब्लागर भाई बैल्ट कस के कानी-हाउस में बेड़ आए उसे . इस घटना से प्रभावित कई लोगों ने स्वातंत्र्य गीत गायन अभ्यास शुरु कर दिया.ताकि उनके मालिकाना हक़ वाले सामूहिक ब्लाग को बचाया हा सके. सो भाइयो कल ही सूत जी से भैंट हुई थी वे शौनकादि ऋषियों को समझा रहे थे:-"ऋषियो, सब कुछ करो पर सांड़ों और सांपों पे कड़ी नज़र रखो. सांप को आस्तीन से बाहर न जाने दो. बछडों को सांड़ मत बनने दो खेती कराओ बस खेती. "
सुना तो यहां तक गया है कि- "सामूहिक-ब्लॉग पे आने के लिए जो पीले चावल भेजे जा रहे हैं उसकी वज़ह से खाने के लिए चावलों की कीमत में बढ सकतीं हैं. प्याज ने सरकार की ऑंखें गीली की थीं अब चावल लाइ न लुटवा दें इस भय से निपटने मनमोहन जी मैडम से मिल ने जाएंगे खबर पक्की है. !!"
इधर अपने धान के देश पर कड़ी नज़र रखी जा रही है. सूत्र बताते हैं कि आमंत्रण हेतु प्रयोग में आने वाले चावलों की आपूर्ती उधर से ही हो रही है.मित्रो इस घड़ी में जब हिंदी ब्लाग चहुं ओर महत्व साबित करने में लगे हैं तब सांड़ों का आतंक विचारणीय है. गुरु परसाई की क़सम वे होते तो अकल ठिकाने लगा देते. खैर जो भी हो सब पढ़े लिखे बुद्धिवान हैं तो इस पशु वृत्ति से नि:वृत्ति के साधन खुद खोजने होंगे. इस होली के पहले.ताकि सदभावना कायम रहे
कोई कदम उठाएंगे वो कदम क्या होगा ये कील कुमार बताएंगे जिनके कई ब्लाग परित्यक्ता की ज़िंदगी काट रहें हैं कुछ बेचारे ब्लागर (अपने ब्लाग पर पाठकों के अभाव में) खद्योतित प्रकाश बांट रहे हैं. वैसे. एक ब्लागर जी के ब्लाग रूपी नुक्कड़ में सांड़ घुस गया पता चला कि हुजूर खुद ने बछड़े को पाला पोसा बड़ा सांड़ बनाया और उसके साउथ-एवेन्यू-माल पे त्रिशूल गुदवा दिया था. उसी बछड़े ने सींग उठाए तो अपने ब्लागर भाई बैल्ट कस के कानी-हाउस में बेड़ आए उसे . इस घटना से प्रभावित कई लोगों ने स्वातंत्र्य गीत गायन अभ्यास शुरु कर दिया.ताकि उनके मालिकाना हक़ वाले सामूहिक ब्लाग को बचाया हा सके. सो भाइयो कल ही सूत जी से भैंट हुई थी वे शौनकादि ऋषियों को समझा रहे थे:-"ऋषियो, सब कुछ करो पर सांड़ों और सांपों पे कड़ी नज़र रखो. सांप को आस्तीन से बाहर न जाने दो. बछडों को सांड़ मत बनने दो खेती कराओ बस खेती. "
साभार : टेढ़ी-मेढ़ी बातें |
इधर अपने धान के देश पर कड़ी नज़र रखी जा रही है. सूत्र बताते हैं कि आमंत्रण हेतु प्रयोग में आने वाले चावलों की आपूर्ती उधर से ही हो रही है.मित्रो इस घड़ी में जब हिंदी ब्लाग चहुं ओर महत्व साबित करने में लगे हैं तब सांड़ों का आतंक विचारणीय है. गुरु परसाई की क़सम वे होते तो अकल ठिकाने लगा देते. खैर जो भी हो सब पढ़े लिखे बुद्धिवान हैं तो इस पशु वृत्ति से नि:वृत्ति के साधन खुद खोजने होंगे. इस होली के पहले.ताकि सदभावना कायम रहे
23 comments:
हा हा हा गिरीश भाई, साझा ब्लॉग-साझी संस्कृति पर एक वेहतर व्यंग्य हेतु बधाईयाँ !
यही सच है !
स्वस्थ-सुन्दर और सार्थक व्यंग्य है आपका, अच्छा लगा !
nice
सच की साहसिक अभिव्यक्ति को सलाम। पर आप भीतर की खबर कहां से निकाल लाए। खैर ...
badhiyaa
गिरीश दादा वार्ताकार है ... किसी ना किसी से वार्ता कर अन्दर की बात ले आये !
जय हो दादा की !
इलाज़ के पहले एक्सरे का कमाल है
व्यंग्य बढ़िया है , अच्छा लगा पढ़कर !
बेहतरीन प्रस्तुति ।
Ha Ha Ha Ha
बढ़िया व्यंग किया है । सद्भावना बनी रहनी चाहिए।
मैं तो भाई अपने जौनपुर ब्लॉगर असोसिएसन पर किसी को चावल नहीं भेजता. जौनपुर की मीठी इमरती ले के आना होता है खुद, वोह भी बेनेराम की दूकान वाली.
इस फोटो में कौन से दो ब्लागर भई शक्ति परीक्षण कर रहे हैं, कृपया यह रहस्योदघाटन भी करने का कष्ट करें।
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
बहुत बढ़िया ढंग से आपने नूराकुश्ती को जमाया है!
बुरा न मानो होली है!
बढिया है।
सटीक!
जय हो
हे राम यह सांड भी ना...
बहुत खूब ये भी न हो तो जीवन में उमंग कहाँ ?
सही व्यंग |
आप मजाक बना लीजिए, अभी पता लगेगा। क्योंकि गायब नहीं हुए हैं सुशील कुमार सर, अपना कविता संग्रह लेकर आ रहे हैं तुम्हारे शब्दों से अलग। तब सब के मुंह और कलम दोनों बंद हो जाएंगे। मैं उनकी कविताओं की फैन हूं!
सच की साहसिक अभिव्यक्ति |
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