प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ. Blogger द्वारा संचालित.
प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ एक अंतर्राष्ट्रीय मंच है जहां आपके प्रगतिशील विचारों को सामूहिक जनचेतना से सीधे जोड़ने हेतु हम पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं !



अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस !

मंगलवार, 8 मार्च 2011



आज का दिन अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पूरे विश्व में जोर शोर से मनाया जा रहा है लेकिन भारत मेंही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में ये दिन कितने लोगों के लिए महत्वपूर्ण होगा? हम ब्लॉग वाले, मीडिया वाले, पत्रिकाओं और समाचार पत्रों की सुर्ख़ियों में ये दिन आ रहा है। एक निश्चित दायरा है जो इसको जानते हैं लेकिन क्या ये निश्चित दायरा सम्पूर्ण आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है? शायद नहीं - इस दिन को मनाना सही है, कहीं हम किसी महिला की उपलब्धियों पर उसको सम्मानित करते हैं , कहीं हम इस दिवस पर पार्टी मना लेते हैं। हमारे अनुमान से ये कितना बड़ा हिस्सा होगा? इसका कोई हिसाब नहीं है।
हर साल मनाने के बाद भी क्या हम होने वाली नारी उत्पीड़न कि घटनाओं पर नियंत्रण कर पाए हैं? एक दिन एक पेज पर मैंने ४ से ५ तक अधिकतम दुष्कर्म के समाचार पढ़े हैं। दोष ये दिया जाता है कि लड़कियाँ भड़काऊ कपड़े पहनती हैं तो उसका परिणाम है - ये लड़कियाँ इस उम्र की नहीं थी और गाँव में तो उनको अपने घर में शौच तक की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है। खेतों की शरण में जाकर और उनकी उस अवस्था का फायदा उठाते हैं दबंग या फिर उनके चमचे। कुछ इस ओर हमने कभी सोचा है कि हर महिला दिवस पर हम कुछ ही गाँव में सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था ही कर लें। अगर कहने वाले ये कहालाते हैं कि ऐसा कहीं भी नहीं है तो फिर एक दौरा गाँव के खेतों में सुबह जाकर देख लें।
बर्बाद नारी नहीं हो रही है, बर्बाद हो रही है शेष आधी आबादी क्योंकि महिला के साथ होने वाले इन अनैतिक कार्यों में कोई नारी सम्बद्ध नहीं होती है। इन घटनाओं की गिनती भी नहीं होती है क्योंकि कितने मामलों में तो पुलिस पीड़ित को चलता कर देती है और जो सामने आते हैं उनके लिए न्याय पाना आसमान के तारे तोड़ने जैसे होता है। हमें महिला दिवस मनाने का अधिकार तब तक नहीं है - जब तक एक नारी भी किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से पीड़ित है। वह कुछ भी हो सकता है - कन्या भ्रूण हत्या, कन्या त्याग, कन्या के लिए स्त्री का त्याग, बलात्कार की घटनाएँ, दहेज़ उत्पीड़न या घरेलू हिंसा। मैं यह नहीं कहती कि हर पुरुष या हर नारी इसमें संलिप्त है लेकिन जो इससे पीड़ित हैं उनको बचाने के लिए मुहिम छेड़नी होगी वह भी देशव्यापी स्तर पर। मेरी दृष्टि से तो महिला दिवस की सार्थकता इसी में है। ये सच है कि ये स्थिति रातों रात नहीं बदलेगी लेकिन प्रयास करेंगे तो जरुर बदलेगी। एक साल नहीं तो दस साल में लेकिन उसका प्रतिशत तो कम होगा।
फिर सभी भाई और बहने इस दिशा में संकल्प करें कि इस दिन को इनके प्रति न्याय दिलाने और उनकी दशा सुधारने के लिए ही कुछ करेंगे।

3 comments:

सदा 8 मार्च 2011 को 3:36 pm बजे  

बहुत ही सही ...इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

मनोज पाण्डेय 8 मार्च 2011 को 6:02 pm बजे  

बेहतरीन प्रस्तुति,आभार!

एक टिप्पणी भेजें

www.hamarivani.com

About This Blog

भारतीय ब्लॉग्स का संपूर्ण मंच

join india

Blog Mandli
चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी
apna blog

  © Blogger template The Professional Template II by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP