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रविवार, 13 मार्च 2011

आधुनिक पाठशाला जहां इंसान तय्यार होते हें

गुजरात में सुरत एक व्यापारिक शहर जहां पुराने सूरत  में बोहरा समाज के आदरणीय गुरु डोक्टर सय्यदना बुरहानुद्दीन साहब ने एक ऐसा मदरसा महाद अल ज़ाहरा तय्यार करवाया हे जहां बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ साथ मानवता का पाठ अनुशासीत तरीके से पढाया जाता हे . 
सूरत में पिछले एपिसोड में मेने लिखा था के कोटा के बोहरा समाज के प्रमुख जनाब अब्बास भाई, सफदर भाई , मंसूर भाई, अकबर भाई अब्बास अली के साथ में अख्तर खान अकेला , लियाकत अली ,शहर काजी अनवार अहमद , नायब काजी जुबेर भाई , खलील इंजिनीयर , शेख वकील मोहम्मद और समाज सेवक प्रमुख रक्त दाता जनाब जाकिर अहमद रिज़वी गुजरात में सूरत स्थित एक आधुनिक मदरसे के तोर तरीकों का अध्ययन करने गये और इस दोरान हम बस  इसी मदरसे के होकर रह गये , पहेल एपिसोड में मेने कुरान हिफ्ज़ की आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित पाठशाला का विवरण दिया था हम इस जन्नत के नजारे से बाहर निकल कर दुनियावी शिक्षा केंद्र में गये जहां घुसते ही आधुनिक साज सज्जा और सुख सुविधाओं युक्त इस मदरसे को देख कर खुद बा खुद मुंह से निकल पढ़ा के अगर मदरसा ऐसा होता हे तो फिर विश्व यूनिवर्सिटी केसी होगी , हमें सबसे पहले दुनियावी शिक्षा के इस मकतब के गेस्ट रूम में बताया गया इस गेस्ट रूम की सजावट रख रखाव देखते बनता था फिर वहां मदरसे के प्रभारी प्रोफ़ेसर ने सभी आगंतुकों का शुक्रिया अदा किया थोड़ा सुस्ताने के बाद हम सभी को जन सम्पर्क अधिकारी के साथ मदरसे की इस आधुनिकता का नजारा देखने के लियें भेजा गया बढ़ी बढ़ी आलिशान किलासें , बच्चों को पढाने के लियें आधुनिक हाईटेक तकनीक कम्प्यूटर ,लेबटोब, कमरे , बढ़े स्क्रीन , सुविधायुक्त प्रयोगशालाएं , बच्चों के कार्यों की नुमाइश के लियें प्रदर्शन केंद्र , चार मंजिला लाइब्रेरी किताबों पर सेंसर क्गाये गये हें ताके कम्प्यूटर पर लगते ही किताब का नाम चढ़ जाएगा खुबसुरत लाइब्रेरी होल में इंग्लिश और अरबी की सभी महत्वपूर्ण पुस्तकें आर्ट,कोमर्स .विज्ञानं सहित सभी विषयों का यहाँ प्रमुख अध्ययन केंद्र बनाया गया हे तकनीकी शिक्षा सहित नेतिक और फिजिकल शिक्षा भी यहाँ देने का प्रावधान रखा गया मदरसे में मस्जिद हे जहां सभी एक साथ नमाज़ अदा करते हें जबकि पास में ही डाइनिंग होल हे जहां एक वक्त पर सभी छात्र बैठकर एक साथ बढ़े ख्वान लगा कर मनचाहा बहतरीन खाना खाते हें खाने की रसोई में सभी आधुनिक उपकरण लगे हें खाना सर्व करने के लियें ट्रोलियाँ और दूसरी व्यवस्थाएं हें , मदरसे में एक परीक्षा होल हे जहां परीक्षार्थी की परीक्षा कभी खुद सय्यादना साहब लेते हें उन्हें हिम्मत दिलाते हें इस होल में खाना इ काबा का गिलाफ का एक चोकोर टुकडा फ्रेम कर अदब से लगाया गया हे जो सय्यादना साहब को भेंट में दिया गया था पास ही एक खुबसुरत पत्थर सजाकर क्ल्गाया गया हे यह पत्थर हुसेन अलेह अस्सलाम के मजार का पाक पत्थर बताया गया हे जिसका लोग बोसा लेकर इज्जत बख्शते हें इसी होल में फोटो प्रदर्शनी हे और बहुमंजिली इस इमारत में ८५० बच्चों में ३५० के लगभग छात्राए और बाक़ी छात्र हें जिनमे १५० से भी अधिक विदेशी हे मदरसे में पढने वालों को १२ वर्ष के इस सफर में केसे पढ़ें पढाई का उपयोग केसे करें क्या अच्छा हे क्या बुरा हे बढ़े छोटे का अदब किया होता हे खेल कूद , खाना प्रबन्धन ,जनरल नोलेज क्या होती हे कुल मिलाकर एक अच्छे इंसान की सभी खुबिया इन बाराह साल में हर बच्चे में कूट कूट कर भर दी जाती हे इन १२ साल में  हर बच्चे को दुनिया की हकीकत समझ में आ जाती हे और वोह नोकरी नहीं करने के संकल्प के साथ या तो समाज के इदारों में लग जाता हे या फिर व्यवसाय में लग जाता हे . इस मदरसे में छात्राओं के लियें बेठने पढने रहने की अलग व्यवस्था हें यहाँ उन्हें पर्देदारी और शर्मसारी के सारे आदाब सिखाये जाते हें इन छात्राओं को होम साइंस के नाम पर खाने के सभी व्यंजन बनाना सिखाये जाते हें , इंसानियत की इस पाठशाला में सभी काम बच्चों से करवाया जाता हे उन्हें होस्टल में रहने के लियें नाम नहीं नम्बर दिया आजाता हे और इसी नम्बर से उन्हें पुकारा जाता हे यहाँ स्वीमिंग पुल, कसरत के लियें जिम, खेलकूद के लियें इनडोर आउट डोर खेल के मैदान हें बच्चों को फ़िज़ूल खर्ची से रोकने के लियें एक माह में २०० रूपये से अतिरिक्त खर्च करने की अनुमति नहीं हे इन बच्चों को मदरसे में एक वर्ष पलंग पर एक वर्ष फर्श पर सुलाया जाता हे प्रेस खुद को करना सिखाते हें नाश्ता लडके खुद बनाते हें ताके वोह थोडा बहुत ओपचारिक नाश्ता बनाना सिख लें होस्टल में लाइब्रेरी , स्टडी रूम , डिस्पेंसरी बनी हे जहां अपने सुविधानुसार बच्चे अपना काम करते हें . 
मदरसे में हमें जब इस आलिशान बहुमंजिली इमारत में घुमाया जा रहा था तो हमारे दिमाग में इस सात सितारा व्यवस्था के आगे सब फीके नजर आ रहे थे हमें वहीं बोहरा समाज के अंदाज़ में विभिन्न व्यंजन खिलाये गये मस्जिद में सबने अपनी अपनी नमाज़ अदा की , मदरसे में एक ऑडिटोरियम जो अति आधुनिक स्टाइल में बना हे इस ऑडिटोरियम में पार्टिशन लगे हें जो इसे क्लासों में तब्दील कर देते हें और जब आवश्यकता होती हे तो रिमोट और चकरी चाबी से पार्टीशन पल भर में गायब  कर इस क्लास रूम को एक विशाल ऑडिटोरियम का रूप दे दिया जाता हे , इस मदरसे में ८५० बच्चों को पढ़ने और रख रखाव के लियें १७० लोगों का स्टाफ हे और एक वर्ष में यहाँ ८ से १० करोड़ का बजट स्वीक्रत किया जाता हे .
बीएस जनाब इस मदरसे इस मकतब इस आधुनिक पाठशाला को देख कर यही कहा जा सकता हे के आओ एक ऐसा मदरसा बनाये हें जहां कमाई की मशीन नहीं केवल और केवल इंसान बनाये इस मदरसे को देख कर हमारी स्थिति यह थी के सबक ऐसा पढ़ा दिया तुने जिसे पढकर सब कुछ भुला दिया तूने,  अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 comments:

Dinesh pareek 17 मार्च 2011 को 9:53 am बजे  

आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://vangaydinesh.blogspot.com/

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