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उत्तर प्रदेश-उपलब्धियों की आशा

बुधवार, 20 अप्रैल 2011


     उत्तर प्रदेश एक ऐसा प्रदेश जहाँ २००७ तक सरकार के स्थायित्व की बात करें तो कोई भी सरकार ऐसी नहीं रही जिसने पांच वर्ष तक का कार्यकाल पूरा किया हो ऐसे प्रदेश में बसपा जनित सरकार वर्ष २०१२ में अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर रही है और जहाँ तक सरकार की कार्य प्रणाली में रुकावटों की बात करें तो एक कमजोर विपक्ष के आलावा यहाँ कोई रूकावट नहीं रही .सरकार एक दल की ही क्या एक व्यक्ति की रही और ऐसे में जिन उपलब्धियों की आशा की जाती है वे नगण्य हैं.
             प्रदेश में बिजली व्यवस्था जो उद्योग धंधों के लिए आवश्यक है लगभग ठप्प पड़ चुकी है .विभिन्न कस्बों में कभी दिन तो कभी रात  में बिजली आपूर्ति होती है और वह भी ८ घंटे से कम.अब ऐसे में उद्योग धंधे चलाने,घरों  आदि के लिए अलग से बिजली व्यवस्था करनी पड़ती है और इसका सारा भर व्यापारी वर्ग व् उपभोक्ता वर्ग पर पड़ता है ऐसे में उद्योग धंधों का भविष्य यहाँ चौपट है साथ ही बाहर के प्रदेशों में रहने वाले यहाँ के नाते रिश्तेदार भी यहाँ नहीं आना चाहते क्योंकि बिन बिजली सब सून की कहावत यहाँ प्रचार में है.

      न्यायिक व्यवस्था की बात करें तो स्थान स्थान पर न्यायालयों की स्थापना की जा रही है किन्तु न्यायालयों में अधिकारियों की नियुक्ति न हो पाने के कारण वकील-मुवक्किल सभी निराश हैं.और न्यायिक व्यवस्था भी ठप्प है.

         शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो प्राइवेट स्कूलों  की भरमार है और सरकारी विद्यालयों में प्रवेश कठिन होने के कारण व् दुसरे यहाँ की शिक्षा की गुणवत्ता जनता की नज़र में उज्जवल भविष्य में सहयोगी न होने के कारण प्राइवेट स्कूल चांदी काट रहे हैं.मनमानी फीस यहाँ वसूली जाती है.सरकारी माध्यम से छात्रो को दी जाने वाली छात्रवृत्ति जो सभी विद्यालयों के विद्यार्थियों को मिलती है घोटाले कर प्रबंधकों के पेट में जा रही है.आप देख सकते हैं कि विद्यार्थी इसके लिए आन्दोलन पर भी उतर आये हैं-
साभार-अमर उजाला,दैनिक हिंदुस्तान
   साथ ही प्राइवेट विद्यालय विद्यालय के मानक पूरे न करते हुए भी विद्यालय की मान्यता प्राप्त कर रहे हैं.

          विद्यार्थियों के भविष्य की बात करें तो वह चौपट है क्योंकि सरकारी नौकरियों के लिए लगभग हर वर्ष हर वर्ग के विद्यार्थी से अच्छी फीस वसूली जा रही है और भ्रष्टाचार इतनी ऊंचाई पर है कि चपरासी तक की नौकरी के लिए लाखों रूपये देकर नौकरी हासिल की जा रही है क्योंकि हर लगने वाला जानता है कि आज एक खर्च कर हम कल को चार कमाएंगे.

     अब यदि सुरक्षा व्यवस्था की बात करें तो बात न ही की जाये तो बेहतर होगा क्योंकि समाचार पत्र ही इसकी पोल अच्छी तरह खोल रहे हैं.रोज दिन दहाड़े डकैती डाली जा रही हैं और अपराधी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं.जनता के दबाव में यदि किसी अपराधी को पकड़ भी लिया जाता है तो वह पहले ही कई अपराधों का वांछित होता है और पहले ही पुलिस की सूची में होता है जिसे जनता के दबाव में अपराध खोलने के नाम पर प्रस्तुत कर दिया जाता है.लोगों को अपना सामान्य कार्य करना कठिन हो गया है.बहुत सी बार किसी कारण वश पूरे परिवार को घर से बाहर रहना या एक दो दिन के लिए जाना होता हैतो कांधला कसबे का ये हाल है कि जिस घर पर ताला लगा हो चाहे एक रात के लिए लगा हो वहां चोरी हो रही है.अभी हाल में ही तीन घरों में चोरी हुई ये तीन घर -एक व्यापारी का था जिसे ब्लड कैंसर के कारन खून बदलवाने जाना पड़ा एक दो रात ही घर से बहार रहा और चोर मकान साफ कर गए,एक प्रवक्ता के घर में जबकि गली में आस-पास भी काफी मकान थे -मोटे बड़े ताले लगे थे कसबे का सुरक्षित स्थल होने पर भी चोरों के हाथ अवसर आ गया,एक प्राइवेट स्कूल की शिक्षिका जो की केवल एक रात शादी में गयी थी चोरी की घटना की शिकार हुई.और ये सब तब जबकि रात को चौकीदार टहलते हैं.और ये घटनाएँ खुलेंगी भी नहीं क्योंकि ये चोरी जिन घरों में हुई हैं उनकी ओर से पुलिस पर कोई दबाव भी नहीं डाला जा सकता.शामली कसबे में आये दिन घरों तक में बैठे महिलाओं की सोने की चेन लुट रही हैं सड़कों का तो कहना ही क्या सारा मुज़फ्फरनगर त्रस्त है.बुढाना कसबे का हाल ये देखिये-
साभार-अमर उजाला 

ये व्यापारी जो चित्र में दिखाई दे रहा है इसका  पुत्र व् उसका परिवार रात को घर बाहर से बंद कर पास के ही मंदिर में कीर्तन में गए ओर चोरों ने इस ८० वर्षीय वृद्ध के साथ मारपीट की ओर इसके यहाँ चोरी की घटना घटित हो गयी.

इस तरह लगभग हर मोर्चे पर विफल उत्तर प्रदेश सरकार को देखकर तो यही लगता है की एक दल की सरकार हो या पञ्च वर्ष तक जमने वाली सरकार राजनीतिक मजबूरी जनता की मजबूरी होती है ओर लोकतंत्र होने पर भी जनता को ही परेशानी झेलनी होती है.

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