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सुनो भई साधो......: न दामन पे कोई छींट , न खंज़र पे कोई दाग

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

इंदिरा गांधी के ज़माने में कलीम आजिज़ का एक शेर काफी चर्चित हुआ था-

"न दामन पे कोई छींट , न खंज़र पे कोई दाग 
तुम क़त्ल करो हो कि करामात करो हो."

                     आज कांग्रेस नेतृत्व उसी करामत को दुहरा रहा है. अन्ना हजारे के आन्दोलन से उमड़े जन सैलाब को शांत करने के लिए उनकी सभी मांगें मान लीं. लोकपाल विधेयक के लिए ज्वाइंट ड्राफ्टिंग कमिटी के गठन और उसमें सिविल सोसाइटी के सदस्यों की बराबर की भागीदारी स्वीकार कर ली. उनकी नियुक्ति भी हो गयी. लेकिन इसके तुरंत बाद 'उसकी कमीज मेरी कमीज से सफ़ेद क्यों' के अंदाज़ में एक-एक कर सिविल सोसाइटी के सदस्यों पर निशाना साधकर उनके गड़े मुर्दे उखाड़े जाने लगे. शुरुआत अन्ना हजारे से ही की गयी कि आन्दोलन का खर्च कहां से आया. इसके बाद कर्णाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े, पूर्व विधि मंत्री शांतिभूषण और उनके पुत्र प्रशांत भूषण पर निशाना साधा गया. शांतिभूषण के खिलाफ एक सीडी पेश किया गया जो 2005 में तैयार की गयी थी. इसे किसने तैयार किया और 6 बर्षों तक उसे दबाये क्यों रखा. उनके ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल होने के बाद उसे क्यों निकला गया यह कुछ प्रश्न हैं जो सीडी बनाने वाले और उसे उजागर करने वाले की  मंशा जाहिर करते हैं. अब कमिटी के अध्यक्ष प्रणव मुखर्जी कहते हैं कि ड्राफ्ट तैयार करने की प्रक्रिया पर प्रभाव डालने वाले किसी विवाद को अनुमति नहीं दी जाएगी. बस हो गया काम..सिविल सोसाइटी के लोगों के मनोबल को भी साइज़ में ला दिया गया और ड्राफ्ट की तैयारी में व्यवधान डालने के आरोप से भी मुक्ति पा ली गयी.क़त्ल भी हो गया और न दामन पे छींट पड़ी न खंज़र पे दाग पड़ा. सिविल सोसाइटी के सदस्यों पर मानसिक दबाव बनाकर केंद्र सरकार कैसा ड्राफ्ट तैयार कराती है यह तो ड्राफ्ट के तैयार होने के बाद कानूनविद ही बेहतर बता पाएंगे लेकिन राजनीति का यह अंदाज़ इस बात की अलामत है कि भ्रष्टाचार    के पोषकों का तंत्र  बहुत ही चतुर, बहुत ही कुटिल और बहुत ही सुगठित है. इससे सीधे उंगली घी निकलना मुश्किल है. अन्ना हजारे एक सीधे-सादे सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं. राजनैतिक चालबाजी और प्रपंच को वे किस हद तक आत्मसात कर पाएंगे और उसका समयानुकूल जवाब कैसे दे पाएंगे कहना मुश्किल है. लोकपाल विधेयक तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई की एक सांकेतिक शुरूआत है. इस बात को सत्ता में बैठे लोग भी जान रहे हैं. इसीलिए तू डाल-डाल तो मैं पात-पात के अंदाज़ में इससे निपटने की कोशिश की. अब इस लड़ाई को आगे बढ़ने के लिए काफी सतर्कता की ज़रुरत पड़ेगी. सीधे उंगली तो कत्तई घी नहीं निकलेगा. 

------देवेंद्र गौतम 


सुनो भई साधो......: न दामन पे कोई छींट , न खंज़र पे कोई दाग

1 comments:

सदा 25 अप्रैल 2011 को 4:17 pm बजे  

आपने रश्मि दी के लिये जो भी लिखा है अक्षरश: सत्‍य आपकी स्‍नेहिल छवि और लेखन के चलते हर दिल अज़ीज हैं आप ...यूं ही ब्‍लॉग जगत एवं साहित्‍य के क्षेत्र में उन्‍नति के शिखर पर सदैव विराजमान रहें ..बस यही शुभकामनाएं हैं ।

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