जिनकी मुझे तलाश है आखिर कहां गए.?
शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011
कुछ रोज आसपास रहे.....
कुछ रोज आसपास रहे, फिर कहां गए.
खुशरंग जिंदगी के मनाज़िर कहां गए.
बातिन में भी नहीं हैं बज़ाहिर कहां गए.
जिनकी मुझे तलाश है आखिर कहां गए.
महरूमियों के दर पे खड़े सोचते हैं हम
वो हौसले हयात के आखिर कहां गए.
हर गाम पूछने लगीं सदरंग मंजिलें
बेकैफ रास्तों के मुसाफिर कहां गए.
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1 comments:
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.
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