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क्या पत्रकारिता ऐसी ही होती है ....

मंगलवार, 31 मई 2011

क्या पत्रकारिता ऐसी ही होती है ....

क्या पत्रकारिता ऐसी ही होती है ....जी हाँ आज की पत्रकारिता को देख कर तो यही सब सवाल मेरे और शायद आपके भी मन में खड़े हो जाते हैं ..........कल ३० मई पत्रकारिता दिवस था सोचा के देश के समाचार पत्रों और मीडिया ,,इलेक्ट्रोनिक मिडिया में पत्रकारिता आर बहुत कुछ सिखने और पढने को मिलेगा लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया को तो फुर्सत ही नहीं थी .मेने सोचा अपन ही पत्रकारिता के हाल चाल देखें यकीन मानिये मेने मेरी वक्त की पत्रकारिता और आज की चाटुकार पत्रकारिता के हालात जब देखे तो मेरा सर शर्म से झुक गया ..हर अख़बार हर चेनल दुनिया का सबसे तेज़ अख़बार तेज़ चेनल है जो खबरें अख़बार और टी वी को देना चाहिए उसके अलावा चापलूसी भडवागिरी की खबरें आम नज़र आ रही थी ..सरकार करोड़ों करोड़ रूपये के बेकार से विज्ञापन जो अनावश्यक थे इसलियें दे रही है के उसे चेनल और अख़बार में अपनी भ्रस्ताचार सम्बन्धित खबरों को रोकना है ...पार्टियां क्या कर रही हैं ..जनता के साथ केसे विश्वासघात है इससे अख़बारों और मिडिया को क्या लेना देना ..जो पत्रकार कुछ लिखना चाहते हैं कुछ दिखाना चाहते हैं मालिक वर्ग विज्ञापन के आगे ऐसी खबरों को खत्म कर रहे हैं ..हर व्यापारी कहता है के भाई अच्छे व्यापार और सुरक्षित व्यापार का एक तरीका है के एक रुपया कमाओ तो पच्चीस पेसे अख़बार और मीडिया को दो खुद भी सुरक्षित और मीडिया पेरों में कुत्ते की तरह से लोटता नज़र आयेगा जनता लुट की खबर अगर छपवाना भी चाहे तो नहीं छपेगी एक पान वाले की खबर होगी तो बढ़ा चढा कर होगी और एक बढ़े संस्थान की खबर होगी तो उसका नाम गायब होगा केवल एक संस्थान पर आयकर विभाग का छपा पढ़ा खबर प्रकाशित की जायेगी ..बहतरीन सम्पादक और पत्रकार अख़बारों के मेले और ठेले में नमक और दुसरे सामन बेचते नज़र आते हैं पत्रकारिता की संस्थाएं इस पत्रकारिता दिवस पर कोई कार्यक्रम रख कर पत्रकारिता के जमीर को जगाना नहीं चाहती अब भाई ऐसी लूटपाट और चाटुकारिता पत्रकारिता में अगर यह  सब है तो में पत्रकारिता छोड़ कर अगर दलाली शुरू कर दूँ तो क्या बुराई है इसलिए विश्व पत्रकारिता दिवस कल आया और चला गया किसी को क्या लेना देना ....देश में सुचना प्रसारण मंत्रालय है ..राज्यों में जनसम्पर्क मंत्री हैं पत्रकारिता के जिला.राज्य और केंद्र स्तर पर निदेशालय हैं अरबों रूपये का बजट है लेकिन सरकार और प्रेस कोंसिल भी इस तरफ ध्यान नहीं देती है तो हम और आप इस बारे में सोच कर क्यूँ किसी के बुरे बने यार ........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 

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