ग़ज़लगंगा.dg: हर लम्हा जो करीब था........
गुरुवार, 18 अगस्त 2011
हर लम्हा जो करीब था वो बदगुमां मिला.उजड़ा हुआ ख़ुलूस ही हरसू रवां मिला.
सर पे किसी भी साये की हसरत नहीं रहीमुझपे गिरा है टूट के जो आस्मां मिला.
उडती हुई सी खाक हूं अपना किसे कहूंहर शख्स अपने आप में कोहे-गरां मिला.
बैठे हुए थे डालियों पे बेनवां परिन्द उजड़े हुए से बाग़ में जब आशियां मिला.
वहमों-गुमां की धुंध में खोया हुआ हूं मैंमुझको किसी यकीन का सूरज कहाँ मिला.
गौतम उसे सुकून की दौलत नसीब हो जिसके करम से मुज्महिल तर्ज़े-बयां मिला.
---देवेंद्र गौतम








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