अरे भई साधो......: मसखरे हीरो नहीं बन सकते
बुधवार, 17 अगस्त 2011
मसखरे हीरो नहीं बन सकते
यह एक ध्रुव सत्य है कि हीरो मसखरी कर सकता है लेकिन मसखरे हीरो नहीं बन सकते. ठीक उसी तरह जिन्हें राजनीति की समझ नहीं हो, जो स्थितियों को सही आकलन नहीं कर सकते वे तानाशाह नहीं बन सकते. अन्ना के आंदोलन के साथ मनमोहन सरकार ने इंदिरा गांधी के अंदाज में निपटने का प्रयास किया और अपनी भद पिटा ली. अन्ना को गिरफ़्तारी और जेल का भय दिखने की कोशिश की. उनकी टीम के लोगों को तिहाड़ जेल भेज कर उनके आंदोलन को नेत्रित्वविहीन करने की कोशिश की लेकिन देश भर में ऐसा जन सैलाब उमड़ा की सरकार के पसीने छूट गए. सात दिन की न्यायिक हिरासत की व्यवस्था की और शाम होते-होते उनको जेल से बाहर आने के लिए मिन्नतें करने लगे. एक-एक कर उनकी तमाम शर्तें स्वीकार करनी पड़ी. प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह तक अपरिपक्व बयान जारी कर आलोचना के पात्र बने. गृह मंत्री को अपनी यू टर्न लेना पड़ा. कांग्रेस के मुताबिक उसका विरोध उसकी शर्तों के आधार पर करना चाहिए. इसकी अनुमति लेकर. कांग्रेस की इस पीढ़ी को यह बात समझ में नहीं आती कि विरोध अनुमति लेकर नहीं किया जाता. अन्ना गांधीवादी और अहिंसक तथा शांतिपूर्ण आंदोलन के पक्षधर हैं इसलिए अनशन के लिए जगह देने की गुजारिश की वरना क्या माओवादियों ने कभी सरकार के पास आवेदन दिया कि वे रेल की पटरी उड़ना चाहते हैं कृपया इसकी अनुमति प्रदान की जाये. या वे पुलिस वाहन को लैंडमाइन विस्फोट कर उड़ना चाहते हैं इसकी अनुमति दी जाये. कानून के दायरे में रहकर यदि कोई शांतिपूर्ण विरोध करना चाहता है तो उसपर दमनचक्र चलाना या उसपर शर्तें लादना यह बतलाता है कि सरकार गांधी की भाषा सुनने को तैयार नहीं माओ की भाषा में बोलो तो कोई समस्या नहीं. जेपी आंदोलन के बाद बोध गया महंथ के विरुद्ध संघर्ष वाहिनी के अहिंसक वर्ग संघर्ष को भी इसी तरह कुचला गया था जिसका नतीजा बाद के वर्षों में हिंसक आंदोलनों में अप्रत्याशित वृद्धि के रूप में सामने आया और देश आजतक माओवादी और आतंकवादी हिंसा के रूप में झेल रहा है. मनमोहन सिंह जी की पूरी मंडली इस बात को नहीं समझ रही है कि इस मुद्दे को यदि अन्ना की जगह किसी हिंसक संगठन ने लपक लिया और उसे ऐसा जन समर्थन मिल गया तो क्या होगा. क्या दिल्ली पुलिस या भारतीय पुलिस उसे संभल सकेगी. दुर्भाग्य है कि देश की ऐसे अपरिपक्व और नासमझ लोगों के हाथ में है और अगले चुनाव तक इसे झेलना जनता की मजबूरी है. आज देश का बच्चा समझ रहा है कि किसके विदेशी बैंक खाते को बचाने के लिए देश की प्रतिष्ठा और एक एक गौरवपूर्ण पृष्ठभूमि वाली पार्टी की गरिमा को दावं पर लगाया जा रहा है. कहीं यह व्यक्तिगत निष्ठां पूरे संगठन की ताबूत में आखिरी कील न बन जाये. इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए.
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