मध्य-प्रदेश में 05 अक्टूबर से बेटी बचाओ अभियान
शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

(भारत की स्थिति ) वर्ष 1990,1995,2000,2005 तथा 2009 तक
हमेशा बालिकाओं की मृत्यु का आंकड़ा सदैव अधिक ही रहा. ये अलग बात है कि नवजात शिशु मृत्यु की स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन आया है. किंतु बालिका मृत्यु दर सदा ही प्रथम दो वर्षों क्रमश: 90,95 में तीन, 2000 में 2, 2005 में 5, तथा 2009 में पुन: 3 देखी गई. यानी प्रदेश की स्थिति देखें तो सकल शिशु मृत्यु दर 67 मध्य-प्रदेश में तथा 12 प्रति हज़ार केरल में आंकलित की गई. यानी प्रति हजार जीवित जन्मों में से 67 बच्चों का पहला जन्मदिन न मना पाना दु:खद स्थिति है. बालिकाओं के संदर्भ में सोचा जाए तो लगता है कि वास्तव में हम बेटियों के उपरांत उनकी बेहतर देखभाल के लिये अभी भी उत्साहित नही हैं. सरकार ने प्रसव हेतु अब जननी एक्सप्रेस लाड़ली लक्ष्मी योजना, कन्यादान योजना क्रियांवित कर “पालने से पालकी तक” की ज़िम्मेदारी स्वीकार ली है तो फ़िर हम क्यों बालिकाओं के लिये नज़रिया बदलने में विलम्ब कर रहें है.
मध्य-प्रदेश सरकार का "बेटी-बचाओ अभियान" पांच अक्टूबर से प्रारंभ होगा जो हमारे चिंतित मन को चिंतन की राह देगा ये तय है.. बस एक समझदारी की ज़रूरत को दिशा देते इस अभियान में छिपे संदेशों को समझिये और समझाईये उनको जो यह नहीं जानते कि बेटी का होना कोई बोझ नहीं यदि हमारी सोच सकारात्मक है. नर्मदांचल में माएं अपनी बेटियों को ससुराल विदा करते वक़्त उसकी कोख की पूजन करतीं हैं. जो यह साबित करने के लिये पर्याप्त है कि देश की सांस्कृतिक-सामाजिक व्यवस्था बेटी के लिये कदापि नकारात्मक नहीं किंतु काय-विज्ञान और परीक्षण तक़नीकी विकास ने भ्रूण परीक्षण को आकार दिया.और आम आदमी अजन्मी-बेटियों के अंत के लिये सक्षम हो गया. इस पाशविक सोच से मुक्ति का मार्ग है प्रशस्त करेगा "बेटी बचाओ अभियान" .
क्रम | भारत एवम मध्य-प्रदेश | 1991 | 2001 | 2011 |
01 | भारत | 927 | 933 | 940 |
02 | मध्य-प्रदेश | 912 | 920 | 930 |
लिंगानुपात में नकारात्मक्ता प्रदर्शित करने वाले जिलों की स्थिति देखें जहां एक हजार जनसंख्या महिलाओं का आंकड़ा कम है वे जिले हैं भिंड 838, मुरैना 839, ग्वालियर 862, दतिया 875, शिवपुरी 877,छतरपुर 884, सागर 896, विदिशा 897,
इसके कारण में मूल रूप से बेटियों के लिये नकारात्मक सामाजिक-सोच के अलावा कुछ भी नज़र नहीं आता . इसी सोच को बदलने के लिये मध्य-प्रदेश-सरकार ने लाड़ली-लक्ष्मी योजना, और मंगल दिवस कार्यक्रमों का संचालन बालिकाओं के प्रति सामुदायिक सोच में बदलाव लाने के प्रारंभ किया. इतना ही नहीं सरकार की कन्या दान योजना, नि:शुल्क गणवेश और सायकल वितरण,कार्यक्रमों को प्रभावी तरीके से लागू कर दिया.
यानी सरकार की चिंता है आपकी बेटी आप बस चिंतन कीजिये .. खुद से पूछिये कि "बेटियों के बग़ैर आपको आपका घर" कैसा लगता है. कभी सोचा है आपने कि धीरे धीरे कम होती बेटियां देश को किस गर्त में ढकेलने जा रहीं हैं. यदि नहीं तो आज से अभी से सोचना शुरु कीजिये. तय है कि आप ज़ल्द ही इस नतीज़े पर पहुंच जाएंगे कि बेटी बचाना क्यों ज़रूरी है..?
जी सही सोच रहे हैं आप बेटियों के अभाव में विकास का पहिया अपनी धुरी पर घूमता नज़र आएगा आपको. एक सृजनिका को समाप्त होना जिन सामाजिक विकृतियों को आपको सौंपेगा उनमें से एक होगी "मानव-संसाधनों की कमीं" जिसकी भरपाई के लिये कोई सा विज्ञान सक्षम न होगा
मध्य-प्रदेश में यह अभियान उस दिन से ही शुरु माना जाएगा जिस दिन से सरकार ने लाडली लक्ष्मी जैसी जन हितैसी योजना को आकार दिया जिसका आधार ही लिंगानुपात में कमी लाना था. योजना के तहत बालिका को बालिका के लिये ६०००/- के मान पोस्ट-आफ़िस में फ़िक्स बचत लिये जातें हैं इतना ही नहीं अध्ययन सहायता के लिये ६ वीं कक्षा में २००० रूपये, कक्षा ९ वीं में ४००० रूपये, कक्षा १० वीं में ७५०० और ११वीं कक्षा से २०० रूपये प्रतिमाह दो वर्ष तक दिये जाने का प्रावधान भी है। कुल मिला कर बालिकाओं के लिये “पालने से पालकी तक” की चिंता करने वाली मध्य-प्रदेश सरकार नेबेटी बचाओ अभियान के ज़रिये यह संदेश दिया है कि समुदाय यानी हम-आपको “बेटियों के प्रति सोच बदलनी ही होगी ”
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1 comments:
बहुत ज़रूरी है यह अभियान} हर रोज़ चलते रहना चाहिए।
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