दस्तूर...
रविवार, 4 सितंबर 2011
यूँ कट- कटकर लकीरों का मिलना कसूर हो गया,
मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया II
ज़िंदा रहने को कर दी खर्च साँसें तो मैने,
जिंदगी जीने को उनका होना पर ज़रूर हो गया II
तेरी आँखों ने बातें चंद मेरी आँखों से जो कर ली,
पिए बिन ही मेरी साँसों को सुरूर हो गया II
ज़रा- ज़रा सा है दिखता तू मेरे महबूब के जैसा,
कहा मैने ये चंदा से तो वो मगरूर हो गया II
चला गया जो तू जल्द उठने की ख्वाहिश मे,
तेरे जाते ही मेरा ख्वाब वो बेनूर हो गया II
मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया II
ज़िंदा रहने को कर दी खर्च साँसें तो मैने,
जिंदगी जीने को उनका होना पर ज़रूर हो गया II
तेरी आँखों ने बातें चंद मेरी आँखों से जो कर ली,
पिए बिन ही मेरी साँसों को सुरूर हो गया II
ज़रा- ज़रा सा है दिखता तू मेरे महबूब के जैसा,
कहा मैने ये चंदा से तो वो मगरूर हो गया II
चला गया जो तू जल्द उठने की ख्वाहिश मे,
तेरे जाते ही मेरा ख्वाब वो बेनूर हो गया II
1 comments:
यूँ कट- कटकर लकीरों का मिलना कसूर हो गया,
मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया II
ज़िंदा रहने को कर दी खर्च साँसें तो मैने,
जिंदगी जीने को उनका होना पर ज़रूर हो गया II
वाह बहुत ही सुन्दर ख्यालात्।
एक टिप्पणी भेजें