चाँद उतर आएगा...
शुक्रवार, 16 सितंबर 2011
सर्फ़ का घोल लेके वो बच्चा हवा में बुलबुले उड़ा रहा था
कुछ उनमें से फूट जाते थे खुद-ब-खुद
कुछ को वो फोड़ देता था उँगलियाँ चुभाकर
और कुछ उड़कर चले जाते थे
उसकी पहुँच से बहुत दूर
ऐसा ही एक बुलबुला
जाकर चस्प हो गया था आसमान पर
चाँद की शक्ल में
हर रात छत पर जाके मैं तकता रहता हूँ आकाश को
लगता है उफनता हुआ चाँद भी शायद
बुलबुले सा
लहराता हुआ उतर आएगा मेरी छत पर |
3 comments:
बहुत बारीक-सी कहन...मन को छूने वाली...
achchhi rachana
sundar si kalpna...
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