गुरुवार, 8 दिसंबर 2011
मेरे हाइकू--1- उड़ती तुम, चिढाती बागंवा को, आजाद मै हूं-2- पेड़ो का वस्त्र, जब तक हरा था, सूखा धरा का। 3-- मै पर्वत हूं, द्रढता ले लो मेरी , गिरो, खड़े हो। 4 मै फूल हूं, इच्छा है मेरी चढूं, वीरों की अर्थी ।
यानी प्रब्लेस, जहां न क्षेत्र की बंदिशें, न जाति और धर्म की....केवल एक बिरादरी प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ की, आईए खुलकर कीजिए बात जैसे अपने घर में करते हैं !
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1 comments:
बहुत सुंदर पोस्ट,...बधाई
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