ग़ज़लगंगा.dg: ख्वाहिशों के जिस्मो-जां की.....
शनिवार, 3 दिसंबर 2011
ख्वाहिशों के जिस्मो-जां की बेलिबासी देख ले.
काश! वो आकर कभी मेरी उदासी देख ले.
कल मेरे अहसास की जिंदादिली भी देखना
आज तो मेरे जुनूं की बदहवासी देख ले.
हर तरफ फैला हुआ है गर्मपोशी का हिसार
वक़्त के ठिठुरे बदन की कमलिबासी देख ले.
आस्मां से बादलों के काफिले रुखसत हुए
फिर ज़मीं पे रह गयी हर चीज़ प्यासी देख ले.
और क्या इस शहर में है देखने के वास्ते
जा-ब-जा बिखरे हुए मंज़र सियासी देख ले.
वहशतों की खाक है चारो तरफ फैली हुई
आदमी अबतक है जंगल का निवासी देख ले.
एक नई तहजीब उभरेगी इसी माहौल से
लोग कहते हैं कि गौतम सन उनासी देख ले.
4 comments:
बेहद गहन भावो का समावेश
वाह!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आप पोस्ट लिखते है तब हम जैसो की दुकान चलती है इस लिए आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सिर्फ़ सरकार ही नहीं लतीफे हम भी सुनाते है - ब्लॉग बुलेटिन
भावपूर्ण रचना अति सुंदर..
मेरे नई पोस्ट में स्वागत है
एक टिप्पणी भेजें