स्मृतियों में रूस : जैसा मैने पाया....
रविवार, 12 फ़रवरी 2012
" स्मृतियों में रूस" मेरे हाथ में है. असल में ये मेरे हाथ में तो 18 जनवरी को ही आ गयी थी, लेकिन यदि मैं समय से समीक्षा कर देती
तो हमेशा व्यस्तता का रोना रोने वाली मेरी इमेज का क्या होता? टूट न जाती? इस पुस्तक की अब तक कई समीक्षाएं आ चुकी हैं. एकबारगी लगा कि अब मैं क्या समीक्षा करुँ? दिग्गज लोग कर चुके, लेकिन शिखा से मैंने समीक्षाकरने का वादा किया था, सो उसे ही पूरा कर रही हूँ. तो अब चर्चा पुस्तक की. कुल 80 पृष्ठ की पुस्तक " स्मृतियों में रूस" हाथ में लेते हुए सबसे पहले ठीक वैसा ही अहसास हुआ, जैसा समीरलाल जी की " देख लूं तो चलूँ" को लेते हुए हुआ था. बहुत अपना सा. ऐसा अहसास, जो अखबार में रहते हुए तमाम किताबों की समीक्षा करते हुए नहीं हुआ. मुझे शिखा कि इस किताब का इंतज़ार इसके प्रकाशन कि घोषणा के साथ से ही था. वजह? शिखा के ये संस्मरण मुझे उसके द्वारा लिखी तमाम रचनाओं में श्रेष्ठ लगते हैं. और मेरा रूस-प्रेम भी, जो शायद शिखा के संस्मरणों में जीवंत हो उठा.
पुस्तक का आरम्भ "अपनी बात" से है. शिखा जिस समय रूस में थीं, वो समय अविभाजित रूस का था. उस रूस का, जब वहां भारत को बहुत ही आदर और स्नेह के साथ याद किया जाता था.पुस्तक के आरम्भ में ही सभी के प्रति आभार भी व्यक्त किया गया है, जैसा कि चलन है. पुस्तक शुरू होती है अपने प्रथम चरण-"दोपहर और नई सुबह" से . बहुत आत्मीय और स्वाभाविक चित्रण है यहाँ शिखा के पारिवारिक माहौल का. पुस्तक धीरे-धीरे आगे बढ़ती है और पूरे बारह चरणों में पाठकों को रूस की सैर कराती है. एक अनजान- अपरिचित देश में सोलह वर्ष की अकेली भारतीय लड़की!
शिखा ने अविभाजित और विभाजित रूस, दोनों की तस्वीर देखी है इसीलिये इनका चित्रण भी बखूबी किया है. रूसियों के शौक, उनका रहन-सहन, खान-पान उनकी पारिवारिक संरचना और स्थितियां, हिन्दुस्तानियों के साथ उनका व्यवहार, आदि का बहुत सजीव चित्रण किया है शिखा ने, लिहाजा इस किताब से हमें रूस को और करीब से जानने का मौका मिलता है.हिंदुस्तान में रुसी साहित्य का अपना अलग महत्त्व रहा है,लेव तोल्स्तोय, फ्योदोर दोस्तोव्स्की, अन्तोन चेखोव, गोर्की, और भी तमाम रूसी साहित्यकार हिन्दुस्तानियों के दिलों पर राज करते रहे हैं. लेकिन इन लोगों के द्वारा वर्णित रूस और किसी हिन्दुस्तानी के द्वारा वर्णित रूस में एक बुनियादी फ़र्क मिलेगा. कोई भी रूसी लेखक वहां की जीवन शैली का वर्णन अलग से नहीं करेगा, लेकिन हिन्दुस्तानी उनकी जीवन शैली को अलग से चिन्हित करेगा, ताकि हम सब उस जीवन शैली को आत्मसात कर सकें. "स्मृतियों में रूस" ने भी यही काम किया है.
"दोपहर और नई सुबह" से शुरू की गयी शिखा की यात्रा ' चाय दे दे माँ, वो कौन थी, टर्निंग प्वाइंट, स्टेशन की बेंच से..., टूटते देश में बनता भविष्य, कुछ मस्ती कुछ तफरीह, मॉस्को हर दिल के करीब , रूस और समोवार, हिंद से दूर हिंदी, कीवास्काया रूस का प्राचीनतम नगर, तोल्स्तोय, गोर्की, और यह नन्हा दिमाग, आदि पड़ावों से होते हुए स्वर्ण अक्षर और सुनहरे अनुभव पर ख़त्म हुई.
पुस्तक के मध्य टुकड़ों में रूस की यादगार तस्वीरें संगृहीत की गयीं हैं, लेकिन मुझे लगता है कि तस्वीरों का पुस्तक के अंत में पूरा परिशिष्ट बनाया जाना चाहिए था. ये तस्वीरें यदि रंगीन होतीं, तो क्या कहने! श्वेत-श्याम होने के कारण बहुत सी तस्वीरें प्रिंटिंग के समय धुंधली हो गयीं हैं. जिन्होंने इन तस्वीरों को शिखा के ब्लॉग पर देखा है, उन्हें ये कमी अखरेगी. एक बात और जिसने मेरा ध्यान तो आकर्षित किया ही, अन्य पाठकों का भी किया होगा, कि पुस्तक-परंपरा के अनुसार शिखा ने इस पुस्तक को किसी को समर्पित नहीं किया है. यकीनन ये केवल लेखक का अधिकार है, लेकिन आम पाठक पठन-पाठन की परंपरा को निभाता ही है. पुस्तक का आवरण पृष्ठ बहुत शानदार है.
कुल मिला के पुस्तक न केवल पठनीय है, बल्कि संग्रहणीय भी है. हम सब ब्लॉग-जगत के साथियों के बुक-शेल्फ में तो इसे होना ही चाहिए.
पुस्तक -- स्मृतियों में रूस
लेखिका - शिखा वार्ष्णेय
प्रकाशक - डायमंड पब्लिकेशन
मूल्य -- 300 /रूपये
यहाँ संपर्क करके किताब प्राप्त की जा सकती है --
Diamond Pocket Books (Pvt.) Ltd.
X-30, Okhla Industrial Area, Phase-II,
New Delhi-110020 , India
Ph. +91-11- 40716600, 41712100, 41712200
Fax.+91-11-41611866
Cell: +91-9810008004
Email: nk@dpb.in,
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4 comments:
सर्वप्रथम शिखा जी,को हार्दिक बधाई किताब के छपने पर | शीघ्र ही उसे प्राप्त करने का प्रयास करूंगी|
वाह
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति..आभार ।
स्नेह संसिक्त समीक्षा .
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