ग़ज़लगंगा.dg: मेरी बर्बादियों का गम न करना
रविवार, 29 अप्रैल 2012
मेरी बर्बादियों का गम न करना.
तुम अपनी आंख हरगिज़ नम न करना.
हमेशा एक हो फितरत तुम्हारी
कभी शोला कभी शबनम न करना.
कई तूफ़ान रस्ते में मिलेंगे
तुम अपने हौसले मद्धम न करना.
जो आया है उसे जाना ही होगा
किसी की मौत का मातम न करना.
ये मेला है फकत दो चार दिन का
यहां रिश्ता कोई कायम न करना.
हरेक जर्रे में एक सूरज है गौतम
किसी का कद कभी भी कम न करना.
ग़ज़लगंगा.dg: मेरी बर्बादियों का गम न करना:
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2 comments:
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.. हालांकि आपकी नसीहतें बड़ी मुश्किल हैं - यहां रिश्ता कोई कायम न करना, किसी की मौत का मातम न करना - मगर अध्यात्म भी यही कहता है।
अच्छी रचना...
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