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ग़ज़लगंगा.dg: मेरी बर्बादियों का गम न करना

रविवार, 29 अप्रैल 2012

मेरी बर्बादियों का गम न करना.
तुम अपनी आंख हरगिज़ नम न करना.

हमेशा एक हो फितरत तुम्हारी
कभी शोला कभी शबनम न करना.

कई तूफ़ान रस्ते में मिलेंगे
तुम अपने हौसले मद्धम न करना.

जो आया है उसे जाना ही होगा
किसी की मौत का मातम न करना.

ये मेला है फकत दो चार दिन का
यहां रिश्ता कोई कायम न करना.

हरेक जर्रे में एक सूरज है गौतम
किसी का कद कभी भी कम न करना.

----देवेंद्र गौतम

ग़ज़लगंगा.dg: मेरी बर्बादियों का गम न करना:

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2 comments:

दीपिका रानी 29 अप्रैल 2012 को 5:33 pm बजे  

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल.. हालांकि आपकी नसीहतें बड़ी मुश्किल हैं - यहां रिश्ता कोई कायम न करना, किसी की मौत का मातम न करना - मगर अध्यात्म भी यही कहता है।

Rahul 1 मई 2012 को 12:05 pm बजे  

अच्छी रचना...

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