आज की बात
मंगलवार, 2 सितंबर 2025
ओमान में परिकल्पना का हिन्दी उत्सव
मंगलवार, 12 अगस्त 2025
(ओमान), (सांस्कृतिक संवाददाता)। दिनांक 10 अगस्त को मस्कट ओमान में लखनऊ एवं दिल्ली की परिकल्पना संस्था द्वारा आयोजित विश्व हिन्दी उत्सव में अनेकानेक हिन्दी के विद्वानों, साहित्यकारों एवं चिट्ठाकारों की उपस्थिति रही। इस अवसर पर परिकल्पना संस्था द्वारा विभिन्न साहित्यकारों एवं चिट्ठाकारों के साथ साथ प्रयागराज से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ बाल कृष्ण पांडेय, कुशीनगर से वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रामाकांत कुशवाहा कुशाग्र एवं ऋषिकेश से डॉ धीरेन्द्र रांगढ़ को धनराशि 11500/- रुपए के साथ अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह, मानपत्र आदि देकर सम्मानित किया गया।
डॉ धीरेन्द्र रांगढ़ ने इस अवसर पर "रासायनिक और जैविक हथियारों के प्रयोग से मानवता पर होने वाला दुष्प्रभाव" विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि"गला घोंटने वाले एजेंट गैस के बादलों के रूप में लक्षित क्षेत्र में पहुँचाए जाते हैं, जहाँ वाष्प के साँस लेने से व्यक्ति हताहत हो जाते हैं। यह विषैला एजेंट प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय कर देता है , जिससे फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा हो जाता है, जो फेफड़ों को गंभीर क्षति होने पर दम घुटने या ऑक्सीजन की कमी से मृत्यु का कारण बन सकता है। एक बार जब कोई व्यक्ति वाष्प के संपर्क में आता है, तो रासायनिक एजेंट का प्रभाव तुरंत हो सकता है या तीन घंटे तक लग सकते हैं। एक अच्छा सुरक्षात्मक गैस मास्क गला घोंटने वाले एजेंटों से सबसे अच्छा बचाव है।"
परिकल्पना समय के प्रधान संपादक डॉ रवीन्द्र प्रभात ने कहा कि "एक बार साँस लेने या निगलने के बाद, वे जल्दी से एसिटाइलकोलाइन को सिनैप्टिक क्लीफ़्ट में जमा होने देते हैं, जिससे मांसपेशियों में लगातार संकुचन होता है और संबंधित प्रभाव जैसे कि पुतली का सिकुड़ना, मरोड़, ऐंठन और सांस लेने में असमर्थता होती है। पीड़ित अप्रत्याशित रूप से मर जाते हैं, किसी ऐसी चीज़ से दम घुटने से जिसे वे देख नहीं सकते।"
डॉ बाल कृष्ण पांडेय ने कहा कि" जैविक और रासायनिक हथियार से हमें बचने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि यह मानवता के लिए खतरा है।" अपने अध्यक्षीय भाषण में परिकल्पना संस्था की अध्यक्ष श्रीमती माला चौबे ने कहा कि "सैनिकों या नागरिकों को घायल करने या मारने के लिए रसायनों, जीवाणुओं, विषाणुओं, विषैले पदार्थों या ज़हरों के सैन्य प्रयोग को रासायनिक और जैविक युद्ध कहा जाता है।"
इस अवसर पर मुम्बई से आई टैरो कार्ड रीडर सुश्री रोशनी और पत्थर विशेषज्ञ श्री रवि मस्तराम ने ज्योतिष की बारीकियों को समझाया और इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर डॉ रामाकांत कुशवाहा कुशाग्र की पुस्तक "प्रिय लौट आओ" (गीत संग्रह) का लोकार्पण हुआ। अनेक वक्ताओं ने इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाले।
भुवनेश्वर के विस्मय राउत, मुम्बई के निखिल शर्मा और मोईन खान ने अपनी सुमधुर कविताओं से सबका मन मोह लिया। प्रयागराज की कुसुम पाण्डेय ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
Read more...भारतीयों के D.N.A. में Africa और Iran...
सोमवार, 25 मार्च 2024
*भारत पर हो रहे सांस्कृतिक आक्रमणों का सामना करने के लिये हमें तथाकथित विद्वानों के झूठ का सतत विरोध करना ही होगा अन्यथा उनका झूठ ही भारत में सत्य की तरह स्थापित हो जायेगा और हमारी अगली पीढ़ियाँ अपने आपको एवं अपनी प्राचीनता को पूरी तरह भूल जायेंगे।* - मोतीहारी वाले मिसिर जी।
गिरिजेश वशिष्ठ
ने रहस्योद्घाटन किया है कि भारतीयों के गुणसूत्रों में अफ़्रीका और ईरान के लोगों के
गुणसूत्र पाये गये हैं । अपने एक वीडियो में वे बताते हैं कि भारतीयों की मौलिकता पर
"पहली बार वैज्ञानिक पड़ताल” की गयी है।
आर्यों और भारतीयों
को लेकर इतिहासकारों, वैदिक साहित्य और तथाकथित वैज्ञानिकों के बीच चल रहे बौद्धिक संघर्ष
से हम सब परिचित हैं। पत्रकार गिरिजेश मानते हैं कि कुछ लोग तो अपना (भारतीयों का)
लाखों-करोड़ों वर्ष प्राचीन इतिहास बताते रहते हैं पर उसका उनके पास कोई वैज्ञानिक आधार
नहीं होता। वे इस संघर्ष पर विराम लगाते हुये कहते हैं –“सच क्या है
हमारा, हिन्दुस्तान के लोगों के डी.एन.ए. की पहली बार जाँच की गयी है।
दुनिया भर की प्रजातियों के डी.एन.ए. से भारत के 2700 लोगों के डी.एन.ए. का मिलान
किया गया है (जिससे आर्यों को विदेशी सिद्ध किया जा सके? किसी अमेरिकी, यूरोपीय या
अफ्रीकी को यह आवश्यकता क्यों नहीं होती कि उनके गुणसूत्रों में कोई मिलावट तो नहीं? यह आवश्यकता
हम भारतीयों को ही क्यों होती है?)।
डार्विन के
विकासवाद के अमान्य हो चुके सिद्धांत से अप्रभावित गिरिजेश को लगता है कि वैज्ञानिक
अवधारणाओं के अतिरिक्त और कुछ सत्य हो ही नहीं सकता। ‘इट सीम्स’, ‘मे बी’, ‘प्रोबेबिलिटी’ और ‘हाइपोथीसिस’ जैसे शब्दों
के साथ आगे बढ़ता आज का विज्ञान कितना वैज्ञानिक है इसका पता तो कोरोनाकाल में एक बार
फिर पूरी दुनिया को पता चल चुका है। दूसरी ओर भारतीय गणित, खगोल विद्या, शिल्प, स्थापत्यविज्ञान, शब्दभेदी बाण, युद्ध विज्ञान, हस्तिवेद, वृक्षायुर्वेद, शल्यचिकित्सा, आयुर्वेद और
विमान आदि उपलब्धियों को अवैज्ञानिक और पूरी तरह काल्पनिक मानने वाले अतिविद्वानों
की भारत में कमी नहीं है।
अयोध्या में
श्रीराम मंदिर के प्राचीन अस्तित्व जैसे विषयों पर संतों के ऐतिहासिक वक्तव्यों और
सर्वोच्च न्यायालय में दिये गये गणितीय एवं पुरातात्विक साक्ष्यों का एक तरह से परिहास
करने वाले पत्रकार जी मानते हैं कि विज्ञान सम्पूर्ण और अंतिम है। उन्होंने Bio-Skive प्रयोगशाला में कार्यरत प्रिया मूर्जानी के एक शोध, जो कि फ़ॉसिल्स
के डी.एन.ए. विश्लेषण पर आधारित है, का उल्लेख करते
हुये बताया कि दक्षिण एशिया में सर्वाधिक विभिन्नताओं वाले लोग रहते हैं। उनके अनुसार
2700 भारतीयों के गुणसूत्र नमूनों में तीन समूहों के गुणसूत्र मिलने की हुयी पुष्टि
से यह प्रमाणित होता है कि भारतीय आदिवासी अफ़्रीका से आये थे, भारतीय आर्य
ईरान से आये थे और शेष भारतीय अज़रवेजान एवं कज़ाख़िस्तान से आकर भारत में बस गये थे (अर्थात्
भारत एक निर्जन क्षेत्र था जहाँ विदेशी लोग आकर बसते रहे हैं, यदि नहीं तो
मूल भारतीय कौन हैं, कहाँ हैं?)।
प्रिया मूर्जानी
के शोधों के आधार पर गिरिजेश जी ने बताया कि भारतीयों में "यूरेशियन स्टेम परिवार", "प्राचीन ईरानी किसान" और "हण्टर गेदर" के गुणसूत्र
मिले हुये हैं।
विदेशी आगमन
की एक धारा में यूरेशियन स्टेम परिवार के लोग अज़रबेजान एवं कज़ाख़िस्तान से ईसापूर्व
दस हजार साल पहले भारत आकर बस गये थे, वे खेती और
शिकार करते थे, भारतीयों में यह सभ्यता उसी समय की है। विदेशी
आगमन की दूसरी धारा में अफ़्रीका से आये हण्टर गेदर लोग थे जो आज के भारतीय आदिवासी
हैं और ईसापूर्व दस हजार से लेकर पाँच हजार साल पहले
भारत आकर बस गये थे। विदेशी आगमन की तीसरी धारा में चार हजार सात सौ से लेकर तीन हजार
वर्ष ईसापूर्व बड़ी संख्या में ईरानी लोग भारत आकर बस गये। ये लोग प्राचीन किसान थे।
गिरिजेश जी
के अनुसार –
1.
यह जाँच वैज्ञानिक तरीके से की गयी है। जो वैज्ञानिक तरीके से
साबित हो जाय मैं उसे ही मानता हूँ जबकि भारतीय ग्रंथों की रचना कल्पनाओं और
संभावनाओं पर आधारित है, जिस समय ग्रंथ लिखे गये तब इंटरनेट नहीं था । अमेरिका, योरोप या
चीन से कोई जानकारी लेनी हो तो तब के भारतीय लोग इंटरनेट के अभाव में नहीं ले सकते
थे वे केवल उन देशों से आने वाले यात्रियों पर ही (ज्ञान के लिये) निर्भर थे (अर्थात अमेरिका, योरोप और
चीन से भारत आने वाले यात्री वैज्ञानिक हुआ करते थे?) हमारे
यहाँ से बाहर जाने वालों का कोई उल्लेख मिलता नहीं (अर्थात् हमारे यहाँ कोई वैज्ञानिक
था ही नहीं)।
2.
यह रिपोर्ट विज्ञान और धर्म के बीच मील का पत्थर सिद्ध होगी।
3.
समय-समय पर विदेशी लोग भारत आकर बसते रहे हैं जिसमें सूफ़ीसंत भी
हैं जिन्होंने भारत आकर यहाँ के लोगों को इस्लाम की बहुत सी अच्छाइयाँ बतायीं।
इस प्रकरण पर
मोतीहारी वाले मिसिर जी की प्रतिक्रिया -
"...यह
सत्य से परे जाकर अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करने का युग है। हर कोई एन-केन-प्रकारेण
अपनी प्राचीनता सिद्ध करने और अपने समुदाय की उपलब्धियों को महिमामण्डित करने का प्रयास
कर रहा है। इस विश्वसमुदाय में केवल भारतीय
ही ऐसे अपवाद हैं जो अपनी सभ्यता को बाहर से आयातित और सर्वाधिक नवीन सिद्ध करने के प्रयास में
प्राणपण से जुटे हुये हैं। हमें सावधान रहना होगा रोमिला थापर जैसे इतिहास गढ़ने वाले
स्वयंभू रचनाकारों से; गिरिजेश वशिष्ठ, रविश कुमार
और पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसे पत्रकारों से; दिव्या द्विवेदी
और शुति पांडेय जैसे प्रोफेसर्स से; अरुंधती राय
जैसी लेखिकाओं से और साक्षी जैसी एंकर्स से । ये वे लोग हैं जो भारत पर सांस्कृतिक
आक्रमण करने और भारतीयों के मन में हीन भावना उत्पन्न करने में ही गौरव का अनुभव करते
हैं। दुर्भाग्य से ऐसे लोगों में उस ब्राह्मण वर्ग के लोगों की अधिकता है जिन्हें भारतीय
समाज में ज्ञान-विज्ञान और धर्म का पथप्रदर्शक मानकर सम्मानित किया जाता रहा है। प्रिया
मूर्जानी के शोध फ़ॉसिल्स पर आधारित हैं। जहाँ दुनिया भर के लोग आक्रमण करने आते रहे
हों ऐसे देश में दो हजार सात सौ लोगों के सेम्पल की जाँच करके यह पता
कर लिया गया कि वे सब विदेशीगुणसूत्र मिश्रित भारतीय ही हैं, उनमें से कोई
भी युद्ध में मारा गया विदेशी सैनिक या भारत भ्रमण करने आया विदेशी पर्यटक या कारवाँ
वाले युग में भारत में व्यापार करने के लिए आने वाले हजारों व्यापारियों में से विभिन्न
कारणों से मरने वाला या उनमें से भारत में ही बस गया कोई भी विदेशी नहीं था; न ही हमारी
स्त्रियों से यौनदुराचार करने वाले विदेशी सैनिकों की संतानों में से कोई था।
हमें ऐसे अवैज्ञानिक विज्ञानवेत्ताओं के मिथ्या दुष्प्रचार से सावधान ही नहीं रहना होगा बल्कि उसका पूरी दृढ़ता और तथ्यों के साथ खण्डन भी करते रहना होगा अन्यथा उनका सतत दुष्प्रचार ही सच बनकर स्थापित हो जायेगा। हमने रोमिला थापर जैसे स्वयंभू और कूट इतिहासकारों के झूठ का कभी विरोध नहीं किया जिसके कारण हमारी अभी तक की पीढ़ियों को भारत और विश्व का मिथ्या इतिहास पढ़ाया जाता रहा है।"
गिरिजेश वशिष्ठ का संक्षिप्त परिचय – गिरिजेश जी एक वरिष्ठ पत्रकार
हैं जो इंडिया टुडे, जी न्यूज़ और दैनिक भास्कर आदि समूहों में कार्य कर चुके हैं। विज्ञान
और वैज्ञानिक शोधों पर ही पूर्ण विश्वास करने वाले गिरिजेश की शिक्षा के बारे में इंटरनेट
पर जानकारी मुझे नहीं मिल सकी। यूँ, मेरा अनुभव
है कि विज्ञान के अंधभक्त लोगों में सबसे बड़ी संख्या उन लोगों की है जिन्हें विज्ञान
के बारे में कुछ पता नहीं होता। ऐसे लोग भारत, हिंदुत्व, वैदिक ग्रंथ, धर्म, आर्यन इन्वेज़न
और ‘भारतीयों की मौलिकता की वैज्ञानिकता’ जैसे विषयों
पर पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना पक्ष रखते हुये देखे जाते हैं। यू-ट्यूब पर अपने चैनल
knockingnews.com के संस्थापक गिरिजेश वशिष्ठ भारतीयों को विदेशी, अवैज्ञानिक और मूर्ख सिद्ध करने
के प्रयासों के प्रति पूरी निष्ठा के साथ समर्पित रहते हैं।
भारतीयों को
विदेशी सिद्ध करने वाले गिरिजेश जी का यह वीडियो प्रिया मूर्जानी के शोध पर आधारित
है। भारतीय मूल की प्रिया मूर्जानी यूनीवर्सिटी ऑफ़ कैलीफ़ोर्निया की बर्क्ले रिसर्च
इंस्टीट्यूट के मोलीकुलर एण्ड सेल बायोलॉजी विभाग में सहायक प्रोफ़ेसर हैं और ह्यूमन
पापुलेशन ज़ेनेटिक्स और इवोल्यूशनरी बायोलॉजी पर केंद्रित विषयों पर शोध करती हैं। म्यूटेशन
और रीकॉम्बीनेशन जैसे विषयों पर मूर्जानी के शोध जेनॉमिक डाटा एनालिसिस पद्धति पर आधारित
होते हैं। उनका पता है – Priya Moorjani,
University of California, Berkeley Stanley Hall, Rm 308C
परिकल्पना की रजत जयंती यात्रा के सम्मान में विशेष आयोजन
शुक्रवार, 22 मार्च 2024
बाकू (अजरबैजान) में परिकल्पना की रजत जयंती यात्रा के सम्मान में एक विशेष आयोजन किया गया, जिसमें परिकल्पना से जुड़े सम्मानित सदस्यों को विशेष सम्मान प्रदान किए गए। इस अवसर पर परिकल्पना परिवार के 17 सदस्यों को रजत पदक प्रदान किया गया।
परिवार के आठ सदस्यों क्रमश: श्री निर्भय नारायण गुप्ता, डॉ सत्या सिंह, श्री मती निशा मिश्रा, डॉ प्रतिमा वर्मा, डॉ बालकृष्ण पांडेय, श्री मती नम्रता मिश्रा, डॉ प्रमिला उपाध्याय और श्री मती सरोज सिंह को अंगवस्त्र, रजत पदक, मोमेंटो एवं मानपत्र के साथ परिकल्पना रजत जयंती सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पच्चीस हजार नकद सम्मान राशि एवं अंगवस्त्र, रजत पदक, मोमेंटो एवं मानपत्र के साथ परिकल्पना सम्मान प्रदान किया गया।
साथ हीं हिंदी पत्रिका रेवांत की ओर से परिकल्पना परिवार को विशेष रूप से इस उपलब्धि के लिए प्रशंसित किया गया।
वैदिक ग्रंथ और मनुवाद
बुधवार, 13 मई 2020
प्रकृति विषय पर आधारित हाइगा कार्यशाला संपन्न
मंगलवार, 12 मई 2020
कश्मीर के ध्वस्त होते सामाजिक तानेबाने पर आई है एक नई पुस्तक
शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019


,,अल्लाह करे वोह कामयाब हो ,चाँद पर गए यान से टूटे सम्पर्क फिर से स्थापित हों ,हमारे देश के वेज्ञानिकों की मेहनत रंग लाये ,कामयाब हो
रविवार, 8 सितंबर 2019
हमने जिन्हें पुस्तक प्रदान की है और उसे वैसे पढ़ते हैं, जैसे पढ़ना चाहिये,
﴾ 122 ﴿ हे बनी इस्राईल! मेरे उस पुरस्कार को याद करो, जो मैंने तुमपर किया है और ये कि तुम्हें (अपने युग के) संसार-वसियों पर प्रधानता दी थी।
﴾ 123 ﴿ तथा उस दिन से डरो, जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के कुछ काम नहीं आयेगा और न उससे कोई अर्थदण्ड स्वीकार किया जायेगा और न उसे कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश) लाभ पहुँचायेगी और न उनकी कोई सहायता की जायेगी।
﴾ 124 ﴿ और (याद करो) जब इब्राहीम की उसके पालनहार ने कुछ बातों से परीक्षा ली और वह उसमें पूरा उतरा, तो उसने कहा कि मैं तुम्हें सब इन्सानों का इमाम (धर्मगुरु) बनाने वाला हूँ। (इब्राहीम ने) कहाः तथा मेरी संतान से भी। (अल्लाह ने कहाः) मेरा वचन उनके लिए नहीं, जो अत्याचारी[1] हैं।
1. आयत में अत्याचार से अभिप्रेत केवल मानव पर अत्याचार नहीं, बल्कि सत्य को नकारना तथा शिर्क करना भी अत्याचार में सम्मिलित है।
﴾ 125 ﴿ और (याद करो) जब हमने इस घर (अर्थातःकाबा) को लोगों के लिए बार-बार आने का केंद्र तथा शांति स्थल निर्धारित कर दिया तथा ये आदेश दे दिया कि ‘मक़ामे इब्राहीम’ को नमाज़ का स्थान[1] बना लो तथा इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) तथा एतिकाफ़[2] करने वालों और सज्दा तथा रुकू करने वालों के लिए पवित्र रखो।
1. “मक़ामे इब्राहीम” से तात्पर्य वह पत्थर है, जिस पर खड़े हो कर उन्हों ने काबा का निर्माण किया। जिस पर उन के पदचिन्ह आज भी सुरक्षित हैं। तथा तवाफ़ के पश्चात् वहाँ दो रकअत नमाज़ पढ़नी सुन्नत है। 2. “एतिकाफ़” का अर्थ किसी मस्जिद में एकांत में हो कर अल्लाह की इबादत करना है।
﴾ 126 ﴿ और (याद करो) जब इब्राहीम ने अपने पालनहार से प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! इस छेत्र को शांति का नगर बना दे तथा इसके वासियों को, जो उनमें से अल्लाह और अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखे, विभिन्न प्रकार की उपज (फलों) से आजीविका प्रदान कर। (अल्लाह ने) कहाः तथा जो काफ़िर है, उसे भी मैं थोड़ा लाभ दूंगा, फिर उसे नरक की यातना की ओर बाध्य कर दूँगा और वह बहुत बुरा स्थान है।
﴾ 127 ﴿ और (याद करो) जब इब्राहीम और इस्माईल इस घर की नींव ऊँची कर रहे थे तथा प्रार्थना कर रहे थेः हे हमारे पालनहार! हमसे ये सेवा स्वीकार कर ले। तू ही सब कुछ सुनता और जानता है।
﴾ 128 ﴿ हे हमारे पालनहार! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना तथा हमारी संतान से एक ऐसा समुदाय बना दे, जो तेरा आज्ञाकारी हो और हमें हमारे (हज्ज की) विधियाँ बता दे तथा हमें क्षमा कर। वास्तव में, तू अति क्षमी, दयावान् है।
﴾ 129 ﴿ हे हमारे पालनहार! उनके बीच उन्हीं में से एक रसूल भेज, जो उन्हें तेरी आयतें सुनाये और उन्हें पुस्तक (क़ुर्आन) तथा ह़िक्मत (सुन्नत) की शिक्षा दे और उन्हें शुध्द तथा आज्ञाकारी बना दे। वास्तव में, तू ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ[1] है।
1. यह इब्राहीम तथा इस्माईल अलैहिमस्सलाम की प्रार्थना का अंत है। एकरसूल से अभिप्रेत मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। क्यों कि इस्माईल अलैहिस्सलाम की संतान में आप के सिवा कोई दूसरा रसूल नहीं हुआ। ह़दीस में है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः मैं अपने पिता इब्राहीम की प्रार्थना, ईसा की शुभ सूचना, तथा अपनी माता का स्वप्न हूँ। आप की माता आमिना ने गर्भ अवस्था में एक स्वप्न देखा कि मुझ से एक प्रकाश निकला, जिस से शाम (देश) के भवन प्रकाशमान हो गये। (देखियेः ह़ाकिमः2600) इस को उन्हों ने सह़ीह़ कहा है। और इमान ज़हबी ने इस की पुष्टि की है।
﴾ 130 ﴿ तथा कौन होगा, जो ईब्राहीम के धर्म से विमुख हो जाये, परन्तु वही जो स्वयं को मूर्ख बना ले? जबकि हमने उसे संसार में चुन[1] लिया तथा आख़िरत (परलोक) में उसकी गणना सदाचारियों में होगी।
1. अर्थात मार्गदर्शन देने तथा नबी बनाने के लिये निर्वाचित कर लिया।