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ये देश विरोधी लोग!

शनिवार, 13 सितंबर 2025

आपकी बात 

ये देशविरोधी लोग!

गिरीश पंकज 

कहीं पढ़ रहा था किसी का बयान जिसमें वह कह रहे थे कि "बांग्लादेश देश के युवाओं ने क्रांति की, नेपाल के युवकों ने भी ऐसा किया। भारत के युवा कब जागेंगे।" ऐसे मिलते-जुलते बयान सोशल मीडिया में देखने को मिले। यह बयान देश में अराजकता का वातावरण बनाने की कोशिश की घटिया पहल कही जा सकती है। यह विशुद्ध रूप से देशविरोधी बयान कहा जाएगा। बांग्लादेश और नेपाल के युवकों ने जो कुछ किया, वह क्रांति नहीं, पूरी तरह से भ्रान्ति थी। अपने ही देश को नष्ट करना, संस्थानों को जलाना, लोगों को मारना पीटना, ज़िंदा जलाने की कोशिश करना अगर क्रांति है, तो दुर्भाग्य है उस देश के युवाओं की सोच का। भारत में रह कर अपने ही देश के प्रति सम्मान का भाव ने रखने वाले पापी ही चाहेंगे कि भारत भी हिंसा की आग में जले। मुंबई के एक कवि रमेश शर्मा ने बिल्कुल ठीक दोहा कहा है कि "दूजों के सिर क्यों मढ़ें, नाहक ही इल्जाम/अपने ही जब कर रहे, गद्दारी का काम"। सौभाग्य से इस देश में अराजक लोगों के मंशा पूरी नहीं हो पाएगी। क्योंकि यहां के लोगों के संस्कार ऐसे नहीं हैं।  हाँ, कुछ विपक्षी भड़का कर कुछ प्रयास कर सकते हैं, पर वे इस देश को नेपाल नहीं बना सकेंगे। हमारे देश में तो यह नारा शुरू से लगाया जाता है ''सरकारी संपत्ति आपकी अपनी  है।" अपनी संपत्ति को भला कौन नुकसान पहुंचाएगा। कोई बुद्धिहीन ही ऐसा काम करेगा। लेकिन दुर्भाग्यवश बांग्लादेश और नेपाल में युवकों ने अपने ही देश को जलाकर राख कर डाला। यह कैसी क्रांति है कि युवा तोड़फोड़ कर रहे हैं और कीमती चीजों को उठाकर अपने घर ले जा रहे हैं? यह क्रांति नहीं, लूटपाट है! क्रांति के लिए आत्म बलिदान करना पड़ता है। दूसरों को क्षति पहुंचाने की बजाय अपने आप को क्षति पहुंचानी पड़ती है। अनशन, आमरण अनशन, धरना प्रदर्शन ही एक रास्ता है। लोकतांत्रिक तरीका यही है। हिंसक क्रांति नहीं, वैचारिक क्रांति  होनी चाहिए।  गांधी ने यही सिखाया है। मुझे गयाप्रसाद शुक्ल सनेही जी की कविता याद आ रही है, जिसमें वह कहते हैं,  "जो भरा नहीं है भावों से, जिसमें बहती रसधार नहीं/ वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।" दुःख की बात है कि इस देश में देश विरोधी ताकतें तेजी से बढ़ रही।तभी तो युवकों को भड़काने की कोशिशें हो रही हैं।  विपक्ष बौखला गया है। वह चाहता है कि किसी तरह वर्तमान सत्ता जाए और वे सत्ता में काबिज हों। यह कितने शर्म की बात है कि भरे मंच से प्रधानमंत्री को माँ की  गाली दी गई, पर किसी भी बड़े नेता ने इस कुकृत्य के लिए माफ़ी नहीं मांगी। अंत में कहना यही है कि  युवकों को संस्कार देने की बात करें। देश से प्यार करने के लिए प्रेरित करें। शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन के लिए समझाएँ। नेपाल के युवकों ने जो किया वह देशविरोधी कदम कहा जाएगा। इस प्रवृत्ति की निंदा होनी चाहिए। वाह-वाही नहीं। गुंडागर्दी, लूटपाट, हिंसा अगर क्रांति है, तो  इस क्रांति से पूरे विश्व को तौबा करनी चाहिए।

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आज की बात

मंगलवार, 2 सितंबर 2025



'कलयुग' के कवि!

गिरीश पंकज

इस बार व्यंग्य के माध्यम से कुछ कहूँगा।  उस दिन स्वर्गलोक में बैठकर अनेक महान कवि आपस में चर्चा कर रहे थे। अचानक लोचनप्रसाद पांडेय ने एक प्रश्न उछाल दिया, "सुना है समय भारत देश में इक्का-दुक्का अंतरराष्ट्रीय-राष्ट्रकवि-युग-कवि पैदा हो गए हैं। यह क्या बला? इस देश में एक-से-एक बड़े कवि हुए।  पुराने समय से लेकर वर्तमान समय तक। किसी को युगकवि नहीं कहा गया।"  पाण्डेय जी की बात सुनकर 'सरस्वती' जैसी पत्रिका के तीन बार संपादक रह चुके मास्टरजी उर्फ़ पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने मुस्कुराते हुए कहा, "आजकल कलयुग चल रहा है न! तो कलयुग में जो न हो, वह थोड़ा है।  कलयुग आज का युग है। तो इस युग का कवि कोई भी हो सकता है।  जो अपने आप को युगकवि, राष्ट्रकवि, अंतरराष्ट्रीय कहे, वह कलयुग का ही कवि हो सकता है। सतयुग का नहीं।" उन सब की बातें सुनते हुए गंभीर कविता के कवि के रूप में चर्चित रहे कबीर ने कहा, "भाइयो! इन सब बातों की चर्चा करके समय नष्ट करने का कोई मतलब नहीं है। यह आत्ममुग्धता का दौर है। यहां हर कवि को आजादी है कि वह अपने साथ चाहे जो कुछ भी विशेषण लगा ले। इस समय अपने देश में तरह-तरह के विशेषणधारी बनाम इच्छाधारी कवि पाए जाते हैं। कोई 'राष्ट्रीय' कवि है, कोई 'अंतरराष्ट्रीय' कवि है,कोई 'महाकवि' है। कोई 'राजकीय' कवि भी। जिसका जो मन हो, वह लगा सकता है। ऐसा करने से उसकी आत्मा को तृप्ति मिलती है, तो करने में कोई बुराई नहीं।  लेकिन ऐसा करने से उसकी आलोचना तो होती है।" पीछे बैठे शरद जोशी और हरिशंकर परसाई वार्तालाप सुनकर मुस्करा रहे थे। शरद जोशी बोल पड़े, "अब आलोचना की परवाह कौन करता है? आलोचना को लोग 'आलू-चना' समझने लगे हैं। सामने आते ही उसे हजम कर जाते हैं। किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।" इतना सुनना था कि पंडित मुकुटधर पांडेय बोल पड़े, "लेकिन हमें तो फर्क पड़ता है कि आखिर यह क्या हो रहा है। हमने भी कविताएँ की हैं। हमने एक दौर की कविताओं को 'छायावाद' का नाम दिया। हमने कभी इस बात की परवाह नहीं की लोग हमें युगकवि कहें। लेकिन अब तो कमाल हो रहा है। यह कैसा दौर है?"  बख्शी जी ने कहा, "यह घोर कलजुग है भाई! गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है न कलयुग केवल नाम अधारा। मैं कहूंगा, कलयुग केवल विशेषण और जुगाड़ अधारा। यहां आपको हिट होना है, तो सिर्फ प्रतिभा से काम नहीं चलेगा। जोड़-तोड़ भी करनी होगी। मंत्रियों से सेटिंग करनी होगी। अफसरों को पटाना होगा। जो भी बोलने की कला के साथ इस कला में माहिर हो जाएगा, वही इस दौर का महान कवि होगा।" इस बात से सभी सहमत दिखाई दिए। बातचीत चल रही थी कि दूर से कालिदास,कबीर, तुलसी,रहीम, रसखान टहलते हुए दिखाई दिए, तो पांडेय ने कहा, "देखो, इन कवियों को। इन्होंने भी कभी अपने को युगकवि, महाकवि नहीं कहा। समाज ने इन्हें महान कवि कहा। महानता यह होती है। कोई भी अच्छा कवि अपने साथ ऐसा कोई भी विशेषण नहीं लगाता, जिससे लोग उसका मजाक उडाने लगे। न राष्ट्र का, न युग का, लेकिन क्या करें, कलयुग है न, सब चलता है।" तब तक  मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी और दिनकर भी पहुँच गए।  उन्होंने पूछा, "लगता है आप लोग किसी गंभीर चर्चा में व्यस्त हैं?" इस पर बख्शी जी ने मुस्कुरा कर कहा, "धरती पर जो कुछ हो रहा है, उसको लेकर हम लोग वार्तालाप कर रहे हैं। हम सब केवल बातचीत ही कर सकते हैं। गलत को सुधारने अब वापस तो नहीं जा सकते।" इतनी बातचीत हुई थी, तभी अचानक बादल गरजने लगे। और... और मेरी नींद खुल गई। मैं मुस्करा पड़ा, ''ओह! तो मैं सपना देख रहा था?"

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ओमान में परिकल्पना का हिन्दी उत्सव

मंगलवार, 12 अगस्त 2025

 


(ओमान), (सांस्कृतिक संवाददाता)। दिनांक 10 अगस्त को मस्कट ओमान में लखनऊ एवं दिल्ली की परिकल्पना संस्था द्वारा आयोजित विश्व हिन्दी उत्सव में अनेकानेक हिन्दी के विद्वानों, साहित्यकारों एवं चिट्ठाकारों की उपस्थिति रही। इस अवसर पर परिकल्पना संस्था द्वारा विभिन्न साहित्यकारों एवं चिट्ठाकारों के साथ साथ प्रयागराज से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ बाल कृष्ण पांडेय, कुशीनगर से वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रामाकांत कुशवाहा कुशाग्र एवं ऋषिकेश से डॉ धीरेन्द्र रांगढ़ को धनराशि 11500/- रुपए के साथ अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह, मानपत्र आदि देकर सम्मानित किया गया। 


डॉ धीरेन्द्र रांगढ़ ने इस अवसर पर "रासायनिक और जैविक हथियारों के प्रयोग से मानवता पर होने वाला दुष्प्रभाव"  विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि"गला घोंटने वाले एजेंट गैस के बादलों के रूप में लक्षित क्षेत्र में पहुँचाए जाते हैं, जहाँ वाष्प के साँस लेने से व्यक्ति हताहत हो जाते हैं। यह विषैला एजेंट प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय कर देता है , जिससे फेफड़ों में तरल पदार्थ जमा हो जाता है, जो फेफड़ों को गंभीर क्षति होने पर दम घुटने या ऑक्सीजन की कमी से मृत्यु का कारण बन सकता है। एक बार जब कोई व्यक्ति वाष्प के संपर्क में आता है, तो रासायनिक एजेंट का प्रभाव तुरंत हो सकता है या तीन घंटे तक लग सकते हैं। एक अच्छा सुरक्षात्मक गैस मास्क गला घोंटने वाले एजेंटों से सबसे अच्छा बचाव है।" 

परिकल्पना समय के प्रधान संपादक डॉ रवीन्द्र प्रभात ने कहा कि "एक बार साँस लेने या निगलने के बाद, वे जल्दी से एसिटाइलकोलाइन को सिनैप्टिक क्लीफ़्ट में जमा होने देते हैं, जिससे मांसपेशियों में लगातार संकुचन होता है और संबंधित प्रभाव जैसे कि पुतली का सिकुड़ना, मरोड़, ऐंठन और सांस लेने में असमर्थता होती है। पीड़ित अप्रत्याशित रूप से मर जाते हैं, किसी ऐसी चीज़ से दम घुटने से जिसे वे देख नहीं सकते।" 


डॉ बाल कृष्ण पांडेय ने कहा कि" जैविक और रासायनिक हथियार से हमें बचने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि यह मानवता के लिए खतरा है।" अपने अध्यक्षीय भाषण में परिकल्पना संस्था की अध्यक्ष श्रीमती माला चौबे ने कहा कि "सैनिकों या नागरिकों को घायल करने या मारने के लिए रसायनों, जीवाणुओं, विषाणुओं, विषैले पदार्थों या ज़हरों के सैन्य प्रयोग को रासायनिक और जैविक युद्ध कहा जाता है।" 

इस अवसर पर मुम्बई से आई टैरो कार्ड रीडर सुश्री रोशनी और पत्थर विशेषज्ञ श्री रवि मस्तराम ने ज्योतिष की बारीकियों को समझाया और इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला। 

इस अवसर पर डॉ रामाकांत कुशवाहा कुशाग्र की पुस्तक "प्रिय लौट आओ" (गीत संग्रह) का लोकार्पण हुआ। अनेक वक्ताओं ने इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाले। 

भुवनेश्वर के विस्मय राउत, मुम्बई के निखिल शर्मा और मोईन खान ने अपनी सुमधुर कविताओं से सबका मन मोह लिया। प्रयागराज की कुसुम पाण्डेय ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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भारतीयों के D.N.A. में Africa और Iran...

सोमवार, 25 मार्च 2024

*भारत पर हो रहे सांस्कृतिक आक्रमणों का सामना करने के लिये हमें तथाकथित विद्वानों के झूठ का सतत विरोध करना ही होगा अन्यथा उनका झूठ ही भारत में सत्य की तरह स्थापित हो जायेगा और हमारी अगली पीढ़ियाँ अपने आपको एवं अपनी प्राचीनता को पूरी तरह भूल जायेंगे।* - मोतीहारी वाले मिसिर जी। 

गिरिजेश वशिष्ठ ने रहस्योद्घाटन किया है कि भारतीयों के गुणसूत्रों में अफ़्रीका और ईरान के लोगों के गुणसूत्र पाये गये हैं । अपने एक वीडियो में वे बताते हैं कि भारतीयों की मौलिकता पर "पहली बार वैज्ञानिक पड़ताल” की गयी है।

आर्यों और भारतीयों को लेकर इतिहासकारों, वैदिक साहित्य और तथाकथित वैज्ञानिकों के बीच चल रहे बौद्धिक संघर्ष से हम सब परिचित हैं। पत्रकार गिरिजेश मानते हैं कि कुछ लोग तो अपना (भारतीयों का) लाखों-करोड़ों वर्ष प्राचीन इतिहास बताते रहते हैं पर उसका उनके पास कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता। वे इस संघर्ष पर विराम लगाते हुये कहते हैं –“सच क्या है हमारा, हिन्दुस्तान के लोगों के डी.एन.ए. की पहली बार जाँच की गयी है। दुनिया भर की प्रजातियों के डी.एन.ए. से भारत के 2700 लोगों के डी.एन.ए. का मिलान किया गया है (जिससे आर्यों को विदेशी सिद्ध किया जा सके? किसी अमेरिकी, यूरोपीय या अफ्रीकी को यह आवश्यकता क्यों नहीं होती कि उनके गुणसूत्रों में कोई मिलावट तो नहीं? यह आवश्यकता हम भारतीयों को ही क्यों होती है?)।

डार्विन के विकासवाद के अमान्य हो चुके सिद्धांत से अप्रभावित गिरिजेश को लगता है कि वैज्ञानिक अवधारणाओं के अतिरिक्त और कुछ सत्य हो ही नहीं सकता। इट सीम्स’, ‘मे बी’, ‘प्रोबेबिलिटी और हाइपोथीसिस जैसे शब्दों के साथ आगे बढ़ता आज का विज्ञान कितना वैज्ञानिक है इसका पता तो कोरोनाकाल में एक बार फिर पूरी दुनिया को पता चल चुका है। दूसरी ओर भारतीय गणित, खगोल विद्या, शिल्प, स्थापत्यविज्ञान, शब्दभेदी बाण, युद्ध विज्ञान, हस्तिवेद, वृक्षायुर्वेद, शल्यचिकित्सा, आयुर्वेद और विमान आदि उपलब्धियों को अवैज्ञानिक और पूरी तरह काल्पनिक मानने वाले अतिविद्वानों की भारत में कमी नहीं है।   

अयोध्या में श्रीराम मंदिर के प्राचीन अस्तित्व जैसे विषयों पर संतों के ऐतिहासिक वक्तव्यों और सर्वोच्च न्यायालय में दिये गये गणितीय एवं पुरातात्विक साक्ष्यों का एक तरह से परिहास करने वाले पत्रकार जी मानते हैं कि विज्ञान सम्पूर्ण और अंतिम है। उन्होंने Bio-Skive प्रयोगशाला में कार्यरत प्रिया मूर्जानी के एक शोध, जो कि फ़ॉसिल्स के डी.एन.ए. विश्लेषण पर आधारित है, का उल्लेख करते हुये बताया कि दक्षिण एशिया में सर्वाधिक विभिन्नताओं वाले लोग रहते हैं। उनके अनुसार 2700 भारतीयों के गुणसूत्र नमूनों में तीन समूहों के गुणसूत्र मिलने की हुयी पुष्टि से यह प्रमाणित होता है कि भारतीय आदिवासी अफ़्रीका से आये थे, भारतीय आर्य ईरान से आये थे और शेष भारतीय अज़रवेजान एवं कज़ाख़िस्तान से आकर भारत में बस गये थे (अर्थात् भारत एक निर्जन क्षेत्र था जहाँ विदेशी लोग आकर बसते रहे हैं, यदि नहीं तो मूल भारतीय कौन हैं, कहाँ हैं?)

प्रिया मूर्जानी के शोधों के आधार पर गिरिजेश जी ने बताया कि भारतीयों में "यूरेशियन स्टेम परिवार", "प्राचीन ईरानी किसान" और "हण्टर गेदर" के गुणसूत्र मिले हुये हैं।

विदेशी आगमन की एक धारा में यूरेशियन स्टेम परिवार के लोग अज़रबेजान एवं कज़ाख़िस्तान से ईसापूर्व दस हजार साल पहले भारत आकर बस गये थे, वे खेती और शिकार करते थे, भारतीयों में यह सभ्यता उसी समय की है। विदेशी आगमन की दूसरी धारा में अफ़्रीका से आये हण्टर गेदर लोग थे जो आज के भारतीय आदिवासी हैं और ईसापूर्व दस हजार से लेकर पाँच हजार साल पहले भारत आकर बस गये थे। विदेशी आगमन की तीसरी धारा में चार हजार सात सौ से लेकर तीन हजार वर्ष ईसापूर्व बड़ी संख्या में ईरानी लोग भारत आकर बस गये। ये लोग प्राचीन किसान थे।

गिरिजेश जी के अनुसार –

1.                  यह जाँच वैज्ञानिक तरीके से की गयी है। जो वैज्ञानिक तरीके से साबित हो जाय मैं उसे ही मानता हूँ जबकि भारतीय ग्रंथों की रचना कल्पनाओं और संभावनाओं पर आधारित है, जिस समय ग्रंथ लिखे गये तब इंटरनेट नहीं था । अमेरिका, योरोप या चीन से कोई जानकारी लेनी हो तो तब के भारतीय लोग इंटरनेट के अभाव में नहीं ले सकते थे वे केवल उन देशों से आने वाले यात्रियों पर ही (ज्ञान के लिये) निर्भर थे (अर्थात अमेरिका, योरोप और चीन से भारत आने वाले यात्री वैज्ञानिक हुआ करते थे?) हमारे यहाँ से बाहर जाने वालों का कोई उल्लेख मिलता नहीं (अर्थात् हमारे यहाँ कोई वैज्ञानिक था ही नहीं)।

2.                  यह रिपोर्ट विज्ञान और धर्म के बीच मील का पत्थर सिद्ध होगी।

3.                  समय-समय पर विदेशी लोग भारत आकर बसते रहे हैं जिसमें सूफ़ीसंत भी हैं जिन्होंने भारत आकर यहाँ के लोगों को इस्लाम की बहुत सी अच्छाइयाँ बतायीं।

 

इस प्रकरण पर मोतीहारी वाले मिसिर जी की प्रतिक्रिया -

"...यह सत्य से परे जाकर अपना-अपना वर्चस्व स्थापित करने का युग है। हर कोई एन-केन-प्रकारेण अपनी प्राचीनता सिद्ध करने और अपने समुदाय की उपलब्धियों को महिमामण्डित करने का प्रयास कर रहा है। इस विश्वसमुदाय में केवल भारतीय ही ऐसे अपवाद हैं जो अपनी सभ्यता को बाहर से आयातित और सर्वाधिक नवीन सिद्ध करने के प्रयास में प्राणपण से जुटे हुये हैं। हमें सावधान रहना होगा रोमिला थापर जैसे इतिहास गढ़ने वाले स्वयंभू रचनाकारों से; गिरिजेश वशिष्ठ, रविश कुमार और पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसे पत्रकारों से; दिव्या द्विवेदी और शुति पांडेय जैसे प्रोफेसर्स से; अरुंधती राय जैसी लेखिकाओं से और साक्षी जैसी एंकर्स से । ये वे लोग हैं जो भारत पर सांस्कृतिक आक्रमण करने और भारतीयों के मन में हीन भावना उत्पन्न करने में ही गौरव का अनुभव करते हैं। दुर्भाग्य से ऐसे लोगों में उस ब्राह्मण वर्ग के लोगों की अधिकता है जिन्हें भारतीय समाज में ज्ञान-विज्ञान और धर्म का पथप्रदर्शक मानकर सम्मानित किया जाता रहा है। प्रिया मूर्जानी के शोध फ़ॉसिल्स पर आधारित हैं। जहाँ दुनिया भर के लोग आक्रमण करने आते रहे हों ऐसे देश में दो हजार सात सौ लोगों के सेम्पल की जाँच करके यह पता कर लिया गया कि वे सब विदेशीगुणसूत्र मिश्रित भारतीय ही हैं, उनमें से कोई भी युद्ध में मारा गया विदेशी सैनिक या भारत भ्रमण करने आया विदेशी पर्यटक या कारवाँ वाले युग में भारत में व्यापार करने के लिए आने वाले हजारों व्यापारियों में से विभिन्न कारणों से मरने वाला या उनमें से भारत में ही बस गया कोई भी विदेशी नहीं था; न ही हमारी स्त्रियों से यौनदुराचार करने वाले विदेशी सैनिकों की संतानों में से कोई था।

हमें ऐसे अवैज्ञानिक विज्ञानवेत्ताओं के मिथ्या दुष्प्रचार से सावधान ही नहीं रहना होगा बल्कि उसका पूरी दृढ़ता और तथ्यों के साथ खण्डन भी करते रहना होगा अन्यथा उनका सतत दुष्प्रचार ही सच बनकर स्थापित हो जायेगा। हमने रोमिला थापर जैसे स्वयंभू और कूट इतिहासकारों के झूठ का कभी विरोध नहीं किया जिसके कारण हमारी अभी तक की पीढ़ियों को भारत और विश्व का मिथ्या इतिहास पढ़ाया जाता रहा है।"

गिरिजेश वशिष्ठ का संक्षिप्त परिचय – गिरिजेश जी एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो इंडिया टुडे, जी न्यूज़ और दैनिक भास्कर आदि समूहों में कार्य कर चुके हैं। विज्ञान और वैज्ञानिक शोधों पर ही पूर्ण विश्वास करने वाले गिरिजेश की शिक्षा के बारे में इंटरनेट पर जानकारी मुझे नहीं मिल सकी। यूँ, मेरा अनुभव है कि विज्ञान के अंधभक्त लोगों में सबसे बड़ी संख्या उन लोगों की है जिन्हें विज्ञान के बारे में कुछ पता नहीं होता। ऐसे लोग भारत, हिंदुत्व, वैदिक ग्रंथ, धर्म, आर्यन इन्वेज़न और भारतीयों की मौलिकता की वैज्ञानिकता जैसे विषयों पर पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना पक्ष रखते हुये देखे जाते हैं। यू-ट्यूब पर अपने चैनल knockingnews.com के संस्थापक गिरिजेश वशिष्ठ भारतीयों को विदेशी, अवैज्ञानिक और मूर्ख सिद्ध करने के प्रयासों के प्रति पूरी निष्ठा के साथ समर्पित रहते हैं।  

भारतीयों को विदेशी सिद्ध करने वाले गिरिजेश जी का यह वीडियो प्रिया मूर्जानी के शोध पर आधारित है। भारतीय मूल की प्रिया मूर्जानी यूनीवर्सिटी ऑफ़ कैलीफ़ोर्निया की बर्क्ले रिसर्च इंस्टीट्यूट के मोलीकुलर एण्ड सेल बायोलॉजी विभाग में सहायक प्रोफ़ेसर हैं और ह्यूमन पापुलेशन ज़ेनेटिक्स और इवोल्यूशनरी बायोलॉजी पर केंद्रित विषयों पर शोध करती हैं। म्यूटेशन और रीकॉम्बीनेशन जैसे विषयों पर मूर्जानी के शोध जेनॉमिक डाटा एनालिसिस पद्धति पर आधारित होते हैं। उनका पता है – Priya Moorjani, University of California, Berkeley Stanley Hall, Rm 308C

 

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परिकल्पना की रजत जयंती यात्रा के सम्मान में विशेष आयोजन

शुक्रवार, 22 मार्च 2024


बाकू (अजरबैजान) में परिकल्पना की रजत जयंती यात्रा के सम्मान में एक विशेष आयोजन किया गया, जिसमें परिकल्पना से जुड़े सम्मानित सदस्यों को विशेष सम्मान प्रदान किए गए। इस अवसर पर परिकल्पना परिवार के 17 सदस्यों को रजत पदक प्रदान किया गया। 


परिवार के आठ सदस्यों क्रमश: श्री निर्भय नारायण गुप्ता, डॉ सत्या सिंह, श्री मती निशा मिश्रा, डॉ प्रतिमा वर्मा, डॉ बालकृष्ण पांडेय, श्री मती नम्रता मिश्रा, डॉ प्रमिला उपाध्याय और श्री मती सरोज सिंह को अंगवस्त्र, रजत पदक, मोमेंटो एवं मानपत्र के साथ परिकल्पना रजत जयंती सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पच्चीस हजार नकद सम्मान राशि एवं अंगवस्त्र, रजत पदक, मोमेंटो एवं मानपत्र के साथ परिकल्पना सम्मान प्रदान किया गया। 


साथ हीं हिंदी पत्रिका रेवांत की ओर से परिकल्पना परिवार को विशेष रूप से इस उपलब्धि के लिए प्रशंसित किया गया।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रवीन्द्र प्रभात ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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वैदिक ग्रंथ और मनुवाद

बुधवार, 13 मई 2020


वेदानुराग हो या वेदविद्वेष कुछ भी बलात् उत्पन्न नहीं किया जा सकता । आज कठोपनिषद् पढ़ते समय याद हो आया कि कुछ समूह वैदिकादि आर्ष ग्रंथों को मनुवाद रचित षड्यंत्र मानते हैं । मुझे आश्चर्य है कि वैदिक ग्रंथों के अध्ययन-मनन के बाद कोई समूह इतना वेदविद्वेषी कैसे हो सकता है जबकि वैदिक संदेश उनके हित में कहीं अधिक हैं । किंतु यदि अध्ययन किए बिना ही वे इतने बड़े निश्चय तक पहुँचे हैं तो उन्हें आर्षग्रंथों का अध्ययन कर लेना चाइए ।  

अपनी वाम विचारधारा को परिमार्जित करने के लिए वामपंथियों को भी वेदाध्ययन करना चाहिए, कम से कम वामपंथियों के गुरु शोपेन हॉर का तो यही मानना है । शोपेन हॉर की प्रस्तावित सूची में मैं मनुस्मृति को भी जोड़ना चाहूँगा, यह सब उनके लिए प्रस्तावित है जो वेद और मनु के प्रति घोर विद्वेषभाव रखने वाले हैं । मेरा विश्वास है कि अध्ययन के बाद वे लोग भी इन ग्रंथों के प्रशंसक तो हो ही जायेंगे, बहुत अच्छे वामपंथी भी हो जायेंगे ।  
  
वैदिक ग्रंथ तो परम्परा से समृद्ध होते रहे ज्ञान के परिणाम हैं । ज्ञान को एक झटके में ख़ारिज़ नहीं किया जा सकता । जानने योग्य ज्ञान को विद्या कहते हैं, वेद विद्या के आदिभण्डार हैं । सूचना को हम ज्ञान नहीं कह सकते, ज्ञान के साथ सर्व कल्याणकारी भाव भी जुड़ा हुआ है । बम बनाने या भ्रष्टाचरण में निपुणता जानकारी है ज्ञान नहीं और इसीलिए वह सर्वकल्याणकारी नहीं है । कृषि आदि की जानकारी सर्वकल्याणकारी है जबकि तत्वज्ञान आत्मकल्याणकारी ।

उपनिषद् पढ़ते समय कुछ बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए –
1-  प्राच्य साहित्य तत्कालीन समाज की अच्छाइयों-बुराइयों और विसंगतियों के चित्रण से मुक्त नहीं है । इसका अर्थ यह नहीं है कि वेद और उपनिषद् आदि बुराइयों और विसंगतियों का उपदेश देते हैं बल्कि यह है कि बुराइयों और विसंगतियों से जूझते हुये जीवन को किस तरह उत्कृष्ट बनाया जाय । चिकित्सक के लिए आवश्यक है कि उसे शरीर की नॉर्मल और एबनॉर्मल दोनों ही स्थितियों का अच्छी तरह ज्ञान हो । किसी भी एक स्थिति का ज्ञान होने से न तो निदान सम्भव है और न चिकित्सा । भारत का प्राच्य साहित्य एक चिकित्सक और उपदेशक की भूमिका में है जिसका उद्देश्य समाज को स्वस्थ बनाए रखना तो है ही रुग्ण होने पर उसकी चिकित्सा करना भी है ।  
2-  चतुर्युगों की अवधारणा तत्कालीन समाज के गुणों-अवगुणों के आनुपातिक प्रतिनिधित्व को ज्ञापित करती है, यहाँ कोई शार्प डिमार्केशन नहीं है ।
3-  हर युग के चार प्रमुख गुणात्मक स्तम्भ होते हैं, जिनका निरंतर क्षरण होता रहता है । निरंतर क्षरित होते रहने वाले गुणों-अवगुणों का स्थान दूसरे गुणों-अवगुणों से पूरित होता रहता है । जब किसी युग के चारों गुणात्मक स्तम्भों का पूरी तरह क्षरण हो जाता है तब एक नया युग अपने पूर्ण बालस्वरूप के साथ प्रकट होता है । इसका अर्थ यह हुआ कि सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलि युगों के गुण आनुपातिक प्रवर्द्धता के साथ सभी युगों में वर्तमान रहते हैं ।
4-  चतुर्युगीन अवधारणा प्रकृति की एक जटिल व्यवस्था को समझने में सहयोग करती है, ठीक उस बॉडी-फ़्ल्युड की तरह जिसमें सीरम-प्लाज़्मा-ब्लडसेल्स और माइक्रोन्यूट्रींट्स आदि निरंतर परिवर्तनशील स्थिति में होते हैं । जब तक हम बॉडी फ़्ल्युड के कण्टेन का एक निश्चित् थ्रेश-होल्ड तक सम्मान करते हैं, तब तक हम स्वस्थ रहते हैं, थ्रेश-होल्ड का अपमान एक ऐसी पैथोलॉज़िकल प्रोसेज़ को उत्पन्न करता है जिससे हम रुग्ण हो जाते हैं । शरीर की नॉर्मल फ़िज़ियोलॉज़िकल प्रोसेज़ हो या पैथोलॉज़िकल प्रोसेज़, सब कुछ आनुपातिक होती है ।
5-  गुणांतर क्षरण प्रकृति की अपरिहार्य व्यवस्था है, जन्म लेने के क्षण से ही हम मृत्यु की ओर चल पड़ते हैं, यानी जन्म की यात्रा मृत्यु की ओर ही होती है, सृजन की यात्रा क्षरण की ओर ही होती है । यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही एक जटिल आनुपातिक व्यवस्था का परिणाम है ।           

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प्रकृति विषय पर आधारित हाइगा कार्यशाला संपन्न

मंगलवार, 12 मई 2020

भारत ऋतुओं का देश है, जहां प्रकृति का वैविध्यपूर्ण सौंदर्य बिखरा पड़ा है। यही कारण है, कि फूलों का देश जापान को छोड़कर आने की दु: खद स्मृति हाइकु काव्य को कभी अक्रांत नहीं कर पाई। वह इस देश को भी  अपने घर की मानिंद महसूस करती रही। यही कारण है कि हिन्दी साहित्य जगत के समस्त हाइकु प्रेमी और हाइकु सेवी यही शुभेच्छा करते हैं कि हाइकु काव्य को प्रकृति के क्रीड़ांगन में खेलने -  फलने - फूलने का पूरा पूरा अवसर मिलता रहे। डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने भारत में इस हाइकु काव्य को एक क्रांति की प्रस्तावना के रूप में देखा है और इस काव्य को एक अभियान के माध्यम से गति प्रदान की है। डॉ. मिथिलेश जी ने हाइकु गंगा पटल के माध्यम से नए व पुराने सृजन धर्मियों का एक ऐसा मंच तैयार किया है जो हिन्दी पट्टी में हाइकु काव्य हेतु एक वृहद वातावरण तैयार करने का काम कर रहा है, जो अपने आप में अविस्मरणीय है और स्तुत्य भी।
हाइकु का मूलाधार प्रकृति होने के कारण कुछ विद्वानों ने इसे "प्रकृति काव्य" कहा, किन्तु हाइकु में प्रकृति का पर्यवेक्षण उसके गतिमान रूप पर केंद्रित रहता है। हाइकु कवि जीवन की क्षण - भंगुरता को प्रकृति के गतिमान, निरंतर परिवर्तनशील रूप में देखता है।
हाइगा हाइकु का हीं एक अलग रूप है, जिसमें चित्र को केंद्र में रखकर हाइकु काव्य का सृजन किया जाता है। इस काव्य को सबसे ज्यादा प्रश्रय देने का महत्वपूर्ण कार्य किया है सरस्वती की परम साधिका डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने। प्रकृति के प्रति अपना आंतरिक सहज लगाव प्रमाणित करते हुए उन्होंने हाईकु गंगा पटल पर हाइगा की कई कार्यशालाओं का आयोजन कर इस काव्य शैली को हिन्दी के पटल पर प्रतिष्ठापित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है, जो उनकी इस काव्य शैली के प्रति आकर्षण को दर्शाता है।  इस पटल से कई दिग्गज व नए सृजन धर्मी जुड़े हैं जो हाइकु जगत के परिदृश्य को बदल कर रखने की पूरी क्षमता रखते हैं। यही इस पटल की बड़ी विशेषता है।
दिनांक 10. 05. 2020 को सुबह आठ बजे हाइकु गंगा पटल पर धरती के सौंदर्य के विविध रूप और प्रकृति के अनुपम सौंदर्य की ऑन लाइन कव्यमय प्रस्तुति से पूरा वातावरण प्रकंपित हो गया। अर्थवान, गुण समृद्ध हाइगा कार्यशाला तृतीय की शुरुआत आकाशवाणी बरेली की निर्देशिका सुश्री मीनू खरे जी के उद्बोधन, सरस्वती वंदना और खूबसूरत हाइगा की बेहतरीन प्रस्तुति से हुई। सबसे सारगर्भित बात तो यह रही कि उनकी सरस्वती बंदना भी कतिपय हाइकु श्रृखंला की मोतियों से सुसज्जित थीं।
भारत एक ऐसा देश है, जहां प्रकृति के विविध रूपों की पूजा होती है। उगते हुए सूर्य के साथ डूबते हुए सूर्य की भी पूजा होती है। इसे छठ पूजा कहा जाता है यह भारत का सबसे बड़ा लोक पर्व भी है, जिसे रुपायित करते हुए मीनू खरे जी ने बहुत ही सारगर्भित हाइगा प्रस्तुत किया है, जैसे "सूर्य को अर्घ्य/आस्था के कलश की/अटूट धार"
डॉ. मधु चतुर्वेदी जी की पंक्तियां "ऊर्जा के तार/प्रकृति समन्वित/शक्ति संचार"  प्रकृति की उपयोगिता और शक्ति समन्वय का एक अनोखा अनुभव है। वहीं प्रकृति के अनिवर्चनीय सौंदर्य को रेखांकित करते हुए लवलेश दत्त जी*कहते हैं कि " यादों के गांव/खेत, नहर, बाग/ठंडी सी छांव।"
यह मेरी भी खुशकिस्मती थी कि इस  हाइगा कार्यशाला में प्रकृति पर आधारित कुछ हाइगा मुझे भी प्रस्तुत करने का सुअवसर प्राप्त हुआ, जिसके लिए मैं मंच की अध्यक्षा के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करता हूं।
निवेदिता श्री जी की पंक्तियां "बहती नदी/कल कल करती/बदली सदी" और पुष्पा सिंघी जी की पंक्तियां "बिखरी पांखे/सूखती महानदी/ भीगती आंखें" हाईगा के सुखद भविष्य के प्रति आश्वस्त करती है।
विष्णुकांता के ताजे फूलों की तरह, कुंद सी सुगंधित कुछ बेहतरीन पंक्तियां प्रस्तुत करने में सफल रहीं डॉ. सुरांगमा यादव जी की "विज्ञप्ति लेके/आया है पतझड़/ नई भर्ती की।" , सरस दरवारी जी की पंक्तियां "नन्हा दीपक/डूबते सूरज का/ संवल बने।", अंजु निगम जी की पंक्तियां " उगला धुआं/प्रदूषित है हवा/ मौत का कुआं।" और डॉ सुभाषिनी शर्मा जी की पंक्तियां  "धूप ने खोली/ कोहरे की गिरह/फैला उजाला ।" आदि।
ऐसी बात नहीं है, कि हाइकु या हाइगा की निंदा नहीं हो रही है या इसका विरोध नहीं हो रहा है। खूब हो रहा है। मेरे पास विरोध तथा भर्त्सना के बहुत सारे लिखित परिपत्र है। किन्तु विरोध से कोई सत्य कभी रुक नहीं जाता, बल्कि दुगुने वेग से आगे बढ़ता है। हाइकु या हाइगा का सत्य वैसे हीं एक ओजस्वी, तेजस्वी दुर्निवार वाग्धारा है। इसी वाग्धारा की एक कड़ी है सत्या सिंह जी  कीपंक्तियां "फूलों के झूले/मस्त पवन संग/आसमां छूले।"
इस पटल पर तीन ऐसे रचनाकारों का मैं विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगा जिन्होंने अपने कुछ टटके हाइगा चित्रों से हाइकु जगत को श्री वृद्धि किया है। प्रकृति के प्रति अपना आंतरिक सहज लगाव प्रमाणित करते हुए मनोरम छवि चित्र उकेरे है। पहला नाम है कल्पना दुबे जी का जिनकी पंक्तियां "अमृत रस/झरते झर झर/शान्त निर्झर।", डॉ आनंद प्रकाश शाक्य जी का जिनकी पंक्तियां "वन संपदा/ जीवन मूल स्त्रोत/ हो संरक्षित" और इंदिरा किसलय जी जिनकी पंक्तियां "अहा जिंदगी/ चट्टानों से जूझती/ पहाड़ी नदी ।" मन मुग्ध कर गई।
इस पटल पर कुछ रचनाकार हाइकु काव्य की शालीनता व गरिमा बनाए रखने की दिशा में कृत संकल्प दिखे, जिनमें प्रमुखता के साथ  डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' जी के  हाइगा को स्थान दिया जा सकता है। जैसे -"जब बचेंगे/जंगल जलाशय/ बचेंगे हम।" वस्तु एवं शिल्प दोनों दृष्टि से उनके हाइगा प्रस्तुत हुए। इस पटल पर पेंडों से छनकर आती धूप का स्पर्शविंब साफ दिखाई देता है, जो इस कार्यशाला की उपादेयता को प्रदर्शित करता है।
वर्षाअग्रवाल जी की पंक्तियां यहां विशेष रूप से उल्लिखित करना चाहूंगा, जिसमें उन्होंने अपनी पंक्तियों "मलिन नित्य/संजीवनी व्यक्ति/ मनुज कृत्य।" गहरे भाव छोड़ने में सफल रही।
इस अवसर पर डॉ. सुषमा सिंह जी और डॉ सुकेश शर्मा जी के हा इगा को भी काफी पसंद किया गया। डॉ सुषमा सिंह जी ने अपनी पंक्तियों में कहा कि  "नव कोंपले/ बुलाती पंछियों को/कलरव को"  तथा  डॉ सुकेश शर्मा जी अपनी पंक्तियों में कहा कि "वसुंधरा मां/देती शष्य संपदा/आशीष सम।" में प्रकृति के कोमल छवि को स्पर्श किया है।"
प्रकृति मानव की चिर सहचरी है जो ऋतुओं के द्वारा उसका पालन, अनुरंजन और प्रसाधन करती है। परस्पर एकनिष्ठ रहते हुए दोनों अपने अपने क्रिया - कलाप से एक - दूसरे को प्रभावित करते हैं। उनका यह भाव इस पटल पर परिलक्षित होना स्वाभाविक ही है, क्योंकि साहित्य समाज से पृथक नहीं। इस कार्यशाला में प्रकृति के अद्भुत रूप को आयामित किया गया है कार्यशाला की अध्यक्षा डॉ मिथिलेश दीक्षित जी के द्वारा, जिन्होंने अपनी पंक्तियों क्रमश: "तुलसी चौरा/जलाती दिया - बाती/ मां याद आती।" और "धूप बीनती/ मृदुल फूल पर/बिखरे मोती।" के माध्यम से प्रकृति के कोमल सौंदर्य को रेखांकित किया है।
कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है, कि यह कार्यशाला अपने आप में अनुपम व अद्वितीय है। कहा गया है, कि प्रकृति के दृश्य हाइगा की पहचान है और ये कुदरत के नजारों को देखने का झरोखा भी माना जाता है। ऐसे लगता है जैसे अम्बर, तारे, चांद, सूर्य, वृक्ष, फूल, टहनियां, घास, ओस की बूंदें, वर्षा तथा हवाओं ने इस पटल पर कोई जादू भरा राग छेड़ रखा हो। 
प्रस्तुति: रवीन्द्र प्रभात

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कश्मीर के ध्वस्त होते सामाजिक तानेबाने पर आई है एक नई पुस्तक

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019


यह मेरा पाँचवाँ उपन्यास है, जो कश्मीर के सामाजिक तानेबाने को समय के साथ ध्वस्त होने की कहानी बयान करता है। साथ ही कश्मीर के शर्मनाक और दहशतनाक ऐतिहासिक पहलूओं की गहन पड़ताल भी करता है। किस्सागोई शैली में लिखा गया यह उपन्यास आम पाठक के लिए काफी रोचक और पठनीय है। कश्मीर जैसे ज्वलंत विषय पर बिना किसी पूर्वाग्रह और बोझिल विश्लेषण से बचते हुए  मैंने पुस्तक की जानकारियों को स्वाभाविक अंदाज में संप्रेषित किया है। 

कश्मीर पर आधारित यह उपन्यास ऐसे समय में आया है जब भारत सरकार ने ऐतिहासिक फैसला करते हुए कश्मीर से धारा 370 को समाप्त कर जम्मू कश्मीर को दो भागों में बाँट दिया है और इसको लेकर भारत पाकिस्तान के बीच एक बार फिर संवादहीनता की स्थिति बनी है। सत्य घटनाओं पर आधारित यह उपन्यास इंसानी जूझारूपन की एक ऐसी कहानी है जो हर भारतीय के दिल में शांति इंसानियत और न्याय के सहअस्तित्व के प्रति विश्वास को बल प्रदान करता है, वहीं कश्मीरी हिन्दुओं की व्यथा को औपन्यासिक कलेवर में बांधकर प्रस्तुत भी करता है। कश्मीर के मसले को देखने–समझने वाली एक पीढी जब लगभग समाप्त हो चुकी है तब नई पीढी के लिए इस वक्त में इस उपन्यास का आना काफी प्रासंगिक है ।

इन वेबसाइटों पर जाकर इस उपन्यास को खरीदा जा सकता है- 
प्रकाशक की वेबसाईट- https://notionpress.com/read/kashmir-370-kilometer
फ्लिपकार्ट पर-
https://www.flipkart.com/kashmir-370-kilometer/p/itm66fd24029a1e3?pid=9781647609320&affid=editornoti

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,,अल्लाह करे वोह कामयाब हो ,चाँद पर गए यान से टूटे सम्पर्क फिर से स्थापित हों ,हमारे देश के वेज्ञानिकों की मेहनत रंग लाये ,कामयाब हो

रविवार, 8 सितंबर 2019

जो भी आस्तिक है ,सभी जानते है ,अल्लाह की मर्ज़ी के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता ,,ईश्वर को ,भगवान को ,जीसस को जो मानते है ,वोह भी जानते है ,के ईश्वरीय शक्ति के बगैर ,एक पत्ता भी नहीं हिल सकता ,,लेकिन अगर कोई गुरुर करे ,तकब्बुर करे ,में ही इसे,,, सब कुछ कर रहा हूँ ,में ही ऐसा करूँगा ,,का उसे गुरुर हो ,,तो टूटकर बिखरता ज़रूर है ,,दोस्तों में इसरो वैज्ञानिको की गुणवत्ता पर गर्व करता हूँ ,उनकी पीठ थपथाता हूँ , अल्लाह के करम से ,भगवान की मर्ज़ी से ,इन वैज्ञानिकों ने देश में ,एक ऐसे यान को बनाकर ,चाँद पर भेजने की कामयाब कोशिश की जिसे देश ने ही नहीं ,,,विश्व ने भी देखा है ,लेकिन दोस्तों,, आखरी में अचानक ,हमारे वैज्ञानिको की इन कोशिशों पर ब्रेक लग गया ,अल्लाह से ,भगवान से दुआ है , के हमारे देश के स्वाभिमान ,अभिमान बने इन इसरो वैज्ञानिकों की कोशिश ,,हौसला असफल न हो , वोह जल्दी कामयाब हों ,अल्लाह ,भगवान ,,इस अभियान में हमे कामयाब करे ,इस अभियान में ही नहीं,, हर अभियान में ,,हमे कामयाब करे ,,,दोस्तों छोटा मुंह बढ़ी बात ,जिस देश में आस्थाओं के नाम पर वाद विवाद हो ,जिस देश में सबकी अपनी अपनी आस्थाये हो ,जिस देश के लोग ईश्वरीय शक्ति ,अल्लाह ,भगवान ,जीसस ,,वाहेगुरु की शक्ति से ही सभी कुछ अच्छा बुरा होना स्वीकार करते है ,पूजते है ,,पाठ पढ़ते है ,,नमाज़ पढ़ते है ,उस देश में इतने बढे अभियान में ,,मीडिया ने जो गुरुर ,,जो तकब्बुर दिखाया ,,मीडिया ने जो में ,,में,, करके ,ईश्वरीय शक्ति का अपमान किया ,भगवान की मर्ज़ी से ,ईश्वर की मर्ज़ी से ,,अल्लाह की मर्ज़ी से इंशाअल्लाह चाँद पर हमारी फतह होगी ,इन अल्फ़ाज़ों को हमारे मिडिया ने गायब कर ,,एक गुरुर ,एक तकब्बुर ,एक रावण सोच ,एक फिरओन की सोच ,,बताने की कोशिश की , मुझे पता नहीं इसरो के वैज्ञानिकों की तकनीक में क्या कमी रही ,,अल्लाह करे वोह कामयाब हो ,चाँद पर गए यान से टूटे सम्पर्क फिर से स्थापित हों ,हमारे देश के वेज्ञानिकों की मेहनत रंग लाये ,कामयाब हो ,,, हम विश्व के वैज्ञानिक गुरु बने ,,हमारे देश में जितनी भी आस्थाये है , इबादत घर है ,वहां दुआएं होना चाहिए मस्जिदों में इस कामयाबी के थोड़ी दूर नाकामयाब हो जाने को फिर से कमयाबी की दुआओं के साथ ,,मस्जिदों में इबादत हो ,, मंदिरों में विशिष्ठ पूजा हो ,,गिरजाघरों में जीसस से दुआ हो ,वाहे गुरु से दुआओं की दरख्वास्त हो ,पीर ,,फ़क़ीर ,क़ाज़ी ,,मुफ्ती ,,साधु ,संत ,पुजारी ,पादरी ,,गुरुग्रंथ साहिब जो भी हो सभी इस देश की कामयाबी के लिए गुरुर को ,अहंकार को एक तरफ रखकर दिल से दुआएं करे ,मीडिया के अहंकार ,,में में ,जो अललाह ,ईश्वर को हमेशा बुरा लगा है ,इस अहंकार ,इस में में ,,रावण जैसा महाज्ञानी ,,फिरओन जैसा बादशाह खत्म हो गया ,उनका अहंकार खत्म हो गया ,तो फिर मिडिया ने कैसे सोच लिया के ईश्वर ,,अल्लाह जो देश की ही नहीं विश्व की आस्थाओं की ऐसी ताक़त यही , जहाँ यह मानयता है ,ईश्वर ,अल्लाह की मर्ज़ी के बगैर कुछ भी सम्भवं नहीं तो फिर ,यह सब में में ,में में के अहंकार से कैसे सम्भव हो सकता था , जो होता है , ईश्वर , अल्लाह की मर्ज़ी से होता है ,हम लोग तो सिर्फ एक माध्यम है , अल्लाह ,ईश्वर के फैसलों को लागू करने वाले तो फिर जनाब ,यह कैसे सोच लिया के अल्लाह ईश्वर के फरमान का तिरस्कार करके हम यह कामयाबी हांसिल कर लेंगे ,लेकिन इंशा अल्लाह ,, अल्लाह के हुक्म से ,भगवान की मर्ज़ी से हम इबादत करे ,,कोशिश करे ,,दुआ करे ,, हम जहाँ भटके है ,वहीँ से फिर कामयाब होंगे ,जल्दी ही अल्लाह ,भगवान हमे अच्छी खबर देगा ऐसी दुआए ,ऐसी उम्मीद हमे रखना ही होगी ,,अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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हमने जिन्हें पुस्तक प्रदान की है और उसे वैसे पढ़ते हैं, जैसे पढ़ना चाहिये,

121 ﴿ और हमने जिन्हें पुस्तक प्रदान की है और उसे वैसे पढ़ते हैं, जैसे पढ़ना चाहिये, वही उसपर ईमान रखते हैं और जो उसे नकारते हैं, वही क्षतिग्रस्तों में से हैं।
122 ﴿ हे बनी इस्राईल! मेरे उस पुरस्कार को याद करो, जो मैंने तुमपर किया है और ये कि तुम्हें (अपने युग के) संसार-वसियों पर प्रधानता दी थी।
123 ﴿ तथा उस दिन से डरो, जब कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति के कुछ काम नहीं आयेगा और न उससे कोई अर्थदण्ड स्वीकार किया जायेगा और न उसे कोई अनुशंसा (सिफ़ारिश) लाभ पहुँचायेगी और न उनकी कोई सहायता की जायेगी।
124 ﴿ और (याद करो) जब इब्राहीम की उसके पालनहार ने कुछ बातों से परीक्षा ली और वह उसमें पूरा उतरा, तो उसने कहा कि मैं तुम्हें सब इन्सानों का इमाम (धर्मगुरु) बनाने वाला हूँ। (इब्राहीम ने) कहाः तथा मेरी संतान से भी। (अल्लाह ने कहाः) मेरा वचन उनके लिए नहीं, जो अत्याचारी[1] हैं।
1. आयत में अत्याचार से अभिप्रेत केवल मानव पर अत्याचार नहीं, बल्कि सत्य को नकारना तथा शिर्क करना भी अत्याचार में सम्मिलित है।
125 ﴿ और (याद करो) जब हमने इस घर (अर्थातःकाबा) को लोगों के लिए बार-बार आने का केंद्र तथा शांति स्थल निर्धारित कर दिया तथा ये आदेश दे दिया कि ‘मक़ामे इब्राहीम’ को नमाज़ का स्थान[1] बना लो तथा इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर को तवाफ़ (परिक्रमा) तथा एतिकाफ़[2] करने वालों और सज्दा तथा रुकू करने वालों के लिए पवित्र रखो।
1. “मक़ामे इब्राहीम” से तात्पर्य वह पत्थर है, जिस पर खड़े हो कर उन्हों ने काबा का निर्माण किया। जिस पर उन के पदचिन्ह आज भी सुरक्षित हैं। तथा तवाफ़ के पश्चात् वहाँ दो रकअत नमाज़ पढ़नी सुन्नत है। 2. “एतिकाफ़” का अर्थ किसी मस्जिद में एकांत में हो कर अल्लाह की इबादत करना है।
126 ﴿ और (याद करो) जब इब्राहीम ने अपने पालनहार से प्रार्थना कीः हे मेरे पालनहार! इस छेत्र को शांति का नगर बना दे तथा इसके वासियों को, जो उनमें से अल्लाह और अंतिम दिन (प्रलय) पर ईमान रखे, विभिन्न प्रकार की उपज (फलों) से आजीविका प्रदान कर। (अल्लाह ने) कहाः तथा जो काफ़िर है, उसे भी मैं थोड़ा लाभ दूंगा, फिर उसे नरक की यातना की ओर बाध्य कर दूँगा और वह बहुत बुरा स्थान है।
127 ﴿ और (याद करो) जब इब्राहीम और इस्माईल इस घर की नींव ऊँची कर रहे थे तथा प्रार्थना कर रहे थेः हे हमारे पालनहार! हमसे ये सेवा स्वीकार कर ले। तू ही सब कुछ सुनता और जानता है।
128 ﴿ हे हमारे पालनहार! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना तथा हमारी संतान से एक ऐसा समुदाय बना दे, जो तेरा आज्ञाकारी हो और हमें हमारे (हज्ज की) विधियाँ बता दे तथा हमें क्षमा कर। वास्तव में, तू अति क्षमी, दयावान् है।
129 ﴿ हे हमारे पालनहार! उनके बीच उन्हीं में से एक रसूल भेज, जो उन्हें तेरी आयतें सुनाये और उन्हें पुस्तक (क़ुर्आन) तथा ह़िक्मत (सुन्नत) की शिक्षा दे और उन्हें शुध्द तथा आज्ञाकारी बना दे। वास्तव में, तू ही प्रभुत्वशाली तत्वज्ञ[1] है।
1. यह इब्राहीम तथा इस्माईल अलैहिमस्सलाम की प्रार्थना का अंत है। एकरसूल से अभिप्रेत मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। क्यों कि इस्माईल अलैहिस्सलाम की संतान में आप के सिवा कोई दूसरा रसूल नहीं हुआ। ह़दीस में है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः मैं अपने पिता इब्राहीम की प्रार्थना, ईसा की शुभ सूचना, तथा अपनी माता का स्वप्न हूँ। आप की माता आमिना ने गर्भ अवस्था में एक स्वप्न देखा कि मुझ से एक प्रकाश निकला, जिस से शाम (देश) के भवन प्रकाशमान हो गये। (देखियेः ह़ाकिमः2600) इस को उन्हों ने सह़ीह़ कहा है। और इमान ज़हबी ने इस की पुष्टि की है।
130 ﴿ तथा कौन होगा, जो ईब्राहीम के धर्म से विमुख हो जाये, परन्तु वही जो स्वयं को मूर्ख बना ले? जबकि हमने उसे संसार में चुन[1] लिया तथा आख़िरत (परलोक) में उसकी गणना सदाचारियों में होगी।
1. अर्थात मार्गदर्शन देने तथा नबी बनाने के लिये निर्वाचित कर लिया।

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