अपना आकाश
मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011
सत्य बोलो प्रिय बोलो ...
जब समझाया था माता पिता ने
तो लगा था ,
धरती से ऊपर अपना वजूद होगा
....
उसी अबोध उम्र में देखा
'राजा हरिश्चंद्र 'की फिल्म
हर सत्य की कठिन से कठिन परीक्षा
आँखें फटी की फटी रह गईं !
ख़ास उम्र तो परीक्षा में ही चली गई -
राज्य गया , अपने गए , ....
जो स्वप्न में भी न आया हो
वह काम किया !... सत्य का फल यह होता है ?
मन भटकता रहा
पर 'मात पिता गुरु प्रभु के बानी बिनही बिचारी करिए शुभ जानी'
... यह भी सुना ... तो सत्य प्रिय की राह को अपनाया !
'किसी को कुछ कहने से पूर्व खुद को वहाँ रखो
जानो तुमको क्या लगेगा - फिर कहो '
माता पिता की यह सीख भी अपनाई
पर वही दुविधा सामने आई-
सामनेवाले को किसी ने सिखाया नहीं
या उसने सीखा नहीं !!!
जिसके दिल में जो आया कह गया
फिर झूठ की लम्बी दीवार इतिहास से परे बनाई
और प्रिय बोल तो सिर्फ सुनना चाहते रहे
खुद बादशाह बने हुकूमत दिखाते रहे ...
अपनी छोड़ो
अपने माता पिता को ही
हमेशा गर्म तेल की कढ़ाई में पकते देखा
.... जोड़ घटाव करते करते मन ने कहा
'अति सहनशीलता मन की कायरता है'
'सत्य का दामन कभी न छोड़ो
पर झूठ को दिखाने के लिए बस एक झूठ बोलो
फिर देखो नज़ारा'
'किसी को कुछ कहने में पहल ना करो
पर जिसकी जैसी बोली है उसके साथ एक बार ही सही - वैसा बोलो '
'अन्याय का विरोध न करना भी अन्याय होता है'
'गाली देना गलत है तो सुनकर चुप रहना ...
गलत व्यक्ति को बढ़ावा देना है ....'
गाली ना दो पर उसे रोको !
माता पिता ने जो सीख दी
वह बहुत अच्छी थी
माता पिता ने जो पाया
वह अनुभवों की सीढ़ी बनी
और अपनी अपनी सीढ़ियाँ ही
अपना आकाश चुनती हैं !
8 comments:
माता पिता ने जो सीख दी
वह बहुत अच्छी थी
माता पिता ने जो पाया
वह अनुभवों की सीढ़ी बनी
और अपनी अपनी सीढ़ियाँ ही
अपना आकाश चुनती हैं !
यह अक्षरश: सही है, कहा भी गया है कि व्यक्ति के तीन संस्कार होते हैं, पहला जन्मजात संस्कार , दूसरा सामाजिक संस्कार और तीसरा जो सबसे अहम् होता है वह है रोपित संस्कार यानी व्यक्ति अपने अनुभवों से अपने संस्कार को उत्कृष्ट करता चला जाता, गढ़ता है प्रगति की नयी परिभाषा और चुनता है अपने लिए अपना एक नया आकाश !
रवीन्द्र जी,
आपने तो पूरी कविता की व्याख्या ही कर दी चंद शब्दों में, कुछ भी शेष नहीं रहा ......अब मैं क्या बोलूँ , बस इतना ही कह सकता हूँ कि बहुत बढ़िया है जी, सार्थक सन्देश देती हुयी सशक्त और सार्थक अभिव्यक्ति !
सार्थक सन्देश देती हुयी सशक्त और सार्थक अभिव्यक्ति|
स्वाभिमान से जीवन जीने के लिए मनुष्यों के लिए इन मानकों का पालन आवश्यक है !
सार्थक चिंतन !
दरअसल जीवन में कई बार हमारे सामने दुविधा की स्थिति उत्पन्न होती है ... हम अक्सर खुदको दोराहे पे खड़ा महसूस करते हैं ...
ऐसे में हमारा चरित्र ही है जो हमें सही मार्ग दिखाता है
और अपनी अपनी सीढ़ियाँ ही
अपना आकाश चुनती हैं !
बिलकुल सच कहा। सुन्दर रचना के लिये बधाई।
bahut khubsurat rachna .
कहना शेष नहीं आभार!
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