फिर एक युग का इंतज़ार
रविवार, 20 फ़रवरी 2011
खबर क्या आई
'कृष्ण आ रहे हैं .....'
अल्हड़ उम्र सी निकल पड़ी थी राधा
बृज की गलियों में
पायल पहन छम छम
बिखरा बिखरा रूप
पसीने की कुछ बूंदें चेहरे पर
सुधबुध खोयी , बावली सी
....
आज भी कुछ आँखें थीं साथ
बातें थीं ज़ुबान में
ठिठकी थी राधा
लौटी वर्तमान में .....
संभाला खुद को
अपने मान के सर पे आँचल रखा
खामोश सी धूल उड़ते रास्ते के किनारे
वृक्ष की ओट लिए खड़ी हो गई ....
...
'मुझसे मिले बगैर कृष्ण की यात्रा अधूरी होगी'
सोचकर आँखें मूंद लीं
प्रतीक्षा के पल पलकों का कम्पन बन गए
कृष्ण के नाम के पूर्व अपने नाम को रटती
प्रेममई राधा कैसे विश्वास तजती
.....
किसी सहेली ने झकझोरा ...
'कृष्ण मथुरा लौट रहे ;'
सन्नाटे सी चित्रलिखित राधा ने
पलकें उठाईं
भरमाई सी
खुद में बिखरती हुई
' कान्हा'
बस यही तो कह पाई ,
कृष्ण की एक झलक ...एक पल
और फिर एक युग का इंतज़ार
....
10 comments:
सचमुच राधा से मिले बगैर कृष्ण की यात्रा अधूरी होगी'
यह शाश्वत सत्य है और यही सच्चे प्रेम की पराकाष्ठा भी है, आपकी लालित्यपूर्ण अभिव्यक्ति को मेरा प्रणाम !
एक प्रभाव पूर्ण अविरल काव्य
आभार
prabhavsali kavita
ye to satye hai
radha bin shyam hi adhure
..
मैं कष्ण तू राधा सजनी
तेरी मेरी प्रीत अमर है
दूर गगन में पहेली लाली
हम दोनों की प्रेम डगर है |
बहुत प्यारी रचना |
pic is also beautiful
मैं कष्ण तू राधा सजनी
तेरी मेरी प्रीत अमर है
दूर गगन में फेली लाली
हम दोनों की प्रेम डगर है |
बहुत प्यारी रचना |
प्रेम की शाश्वत अभिव्यक्ति , बार-बार पढ़ने को विवश कराती हुयी !
प्रेम की शाश्वत अभिव्यक्ति , बार-बार पढ़ने को विवश करती हुयी !
बहुत सुन्दर और सार्थक !
राधा और श्याम तो स्वयं में प्रेम का पर्याय है, अच्छी रचना ....बधाई !
राधा से मिले बिना कृष्ण की यात्रा पूर्ण नहीं और राधा तो युगों तक इंतज़ार करती रहीं कृष्ण का ...बहुत भावमयी रचना
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