सादर अभिवादन ! ! !
मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011
प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ के इस मंच से अपने देश के भाइयों और बहनों का सादर अभिवादन करते हुए हर्षित हूँ. .....भाई पाण्डेय जी का ह्रदय से आभारी हूँ जिन्होंने देश की सेवा के लिए इस महत्वपूर्ण मंच का साझेदार बनने का सुअवसर प्रदान किया .
मैं अमीर धरती के गरीब लोगों के बीच का एक आम आदमी हूँ ........जी हाँ ! बात छत्तीसगढ़ की है ........यहाँ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सर्वाधिक संवेदन शील क्षेत्र है बस्तर जहां का मैं निवासी हूँ. प्राकृतिक संपदाओं को अपने गर्भ में संजोये यहाँ की धरती अपने वासियों की खुशहाली के लिए न जाने कब से प्रतीक्षा कर रही है. समय ने करवट ली ...कुछ राजनैतिक परिवर्तन हुए ...और लगा कि अब खुशहाली का समय आ गया ..... पर वह भी छलावा ही सिद्ध हुआ .....ब्यूरोक्रेसी की मजबूत रस्सियों की जकड़न, दृढ राजनैतिक शक्ति की अनिच्छा और संवेदनशील जन नेतृत्व के अभाव में यहाँ का गरीब आज भी गरीब है .....अमीर और भी अमीर होता जा रहा है. ...उस पर यहाँ की नक्सली समस्या. .....नक्सलियों के आदर्श भी अब पक्षपातपूर्ण हो गए हैं, उनकी परिभाषाएं बदल गयी हैं ...कार्य के तरीके बदल गए हैं ...साध्य और साधन ...सब कुछ बदल गए हैं. वैश्वीकरण के इस युग में ...जब कि प्रतिस्पर्धाएं जान लेवा होती जा रही हैं ......हमें अपने समाज ....अपने प्रांत ...अपने देश .....और अपने सीमान्त पड़ोसियों के बारे में अपनी सक्रिय भूमिका तय करनी है. आज जो परिदृश्य है हमारे सामने उसमें हम क्या कर सकते हैं ...यह सोचने का समय आ चुका है. अभी तो हम बस्तर की एक हकीकत से आपको रू-ब-रू कराना चाहते हैं ......पेश है यह गीत -
बीजिंग से
माओवाद के सुर में जहां रोकर भी है गाना
पता बारूद की दुर्गन्ध से तुम पूछकर आना .
बिना दीवारों का कोई किला ग़र देखना चाहो
तो बस्तर के घने जंगल में चुपके से चले आना.
धुआँ बस्तर में उठता है तो बीजिंग से नज़र आता
हमारे खून से लिखते हैं माओ का वे अफ़साना.
वे लिख दें लाल स्याही से तो ट्रेनें भी नहीं चलतीं
कटीले तार के भीतर डरा-सहमा पुलिस थाना .
यहाँ इस देश की कोई हुकूमत है नहीं चलती
कि बंदूकों से उगला हर हुकुम सरकार ने माना .
जो रखवाले थे हम सबके वे अब केवल उन्हीं के हैं
नूरा कुश्तियों में ही ये बंटते अब खजाने हैं .
हमने ज़िंदगी खुद की खरीदी तो बुरा क्या है
यहाँ सरकार भी उनको नज़र करती है नज़राना .
6 comments:
वाह
जंगल में घमासान तबाही का मंजर नजर आ रहा है कविता में !
अच्छी कविता, अच्छी सोच, बधाईयाँ !
आपने विल्कुल सही कहा है, आपसे सहमत हूँ मैं !
अच्छा लगा, आभार इस प्रखर चिंतन के लिए !
आभार ! ....आप सबका .....विचारों से सहमति के लिए.
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