बादलों सी लड़की
सोमवार, 21 फ़रवरी 2011
कब देखा था उसे याद नहीं
पर जब - जब देखा
वह उड़ते बादलों सी लगी
जब तक ऊपर दृष्टि जाती
तब तक वो नीचे लहरा जाती
शोख गुनगुनाती हवाओं के संग
बांधती थी अपने आँचल का छोर
और मुझे एक गीत लिखने को बाध्य कर जाती
पर लिख ना सका कोई गीत
कुछ शब्द ही उकेरे थे
कि जाने वह कहाँ खो गई
दी थी आवाज़ उन जगहों पर
जहाँ झुकी आँखों से उसने अधिकार दिया था
लगता रहा
हो गया सब ख़त्म !
मेरी पुकार प्रतिध्वनि बन मेरे ही पास लौट आई
...........
पर नहीं , जो भी पुकार लौटी
वह बाद्लोंवाली उस लड़की की थी
हर बार उसकी सिसकियाँ कहती रहीं
'आऊँगी एक दिन'
पर -
मेरे अन्दर की जिजीविषा मिटने लगी
रिश्तों से बू आने लगी
अपनी पहचान भी गुम होने लगी
तभी एक आवाज़ चिर पहचानी सी आई ...
झटके में सारी स्मृतियों ने सर उठाया
उम्र के झरोखे से वही चेहरा नज़र आया
खोने और खो जाने की कशमकश से अलग
वह वही बादल लगी और ...
इस बार मैंने आकाश बनने में देर नहीं की
धरती से आकाश तक
अपने प्यार की प्रत्यंचा पर
उसकी उड़ान को गति दी
.....
उसकी आँखों से बहते स्नेह निर्झर में
मैंने तैरना सीख लिया है
जो गीत अधूरे रह गए थे
उन्हें लिखता जा रहा हूँ
तुम नहीं समझोगे
नहीं मानोगे
कोई लड़की बादल हो सकती है
धरती पर उतर कर भी
वह आकाश को ही छूती है !
मुश्किल है तुम्हें समझाना
तुम्हें बताना
कि कुछ रिश्ते दैविक होते हैं
भोर की पहली किरण
गठबंधन करती है
कोयल की कूक मंगलाचार गाती है
संध्या की लाली मांग का सिंदूर बन जाती है
रात गए चांदनी उसका चेहरा देखने आती है
तुम नहीं मानोगे
पर जानोगे एक दिन
ऐसे रिश्ते ईश्वर का वरदान होते हैं
हर नाम से अलग एक ख़ास पहचान होते हैं
.....!!!
20 comments:
बहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना के लिए बधाईयाँ !
कुछ रिश्ते दैविक होते हैं
भोर की पहली किरण
गठबंधन करती है
कोयल की कूक मंगलाचार गाती है
संध्या की लाली मांग का सिंदूर बन जाती है
रात गए चांदनी उसका चेहरा देखने आती है
तुम नहीं मानोगे
पर जानोगे एक दिन
ऐसे रिश्ते ईश्वर का वरदान होते हैं
वाह ....प्रत्येक शब्द जीवंत हो गया है इस पवित्र रिश्ते के साथ, बहुत-बहुत बधाई हृदय की गहराईयों से निकली इस बेहतरीन रचना के लिये ।
तुम नहीं समझोगे
नहीं मानोगे
कोई लड़की बादल हो सकती है
धरती पर उतर कर भी
वह आकाश को ही छूती है !
प्रस्तुत चित्र भी सजीव हो उठा है पंक्तियों की तरह अद्भुत ।
कोई लडकी बादल हो या न हो पर ऐसी कल्पना में तस्वीर उभर आई ...अच्छी प्रस्तुति
pranam !
kavita padhte samay aisa laga jaise main koi aadyatmil rachna padh raha hoo . bead sunder ,
saadar
vaah vaaah bhyi vaah kyaa khub likhaa he mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan
संध्या की लाली मांग का सिंदूर बन जाती है
रात गए चांदनी उसका चेहरा देखने आती है
वाह दीदी कितनी सुन्दर पंक्तियाँ हैं ! गजब !
बहुत बढ़िया.
बहुत-बहुत बधाई हृदय की गहराईयों से निकली इस बेहतरीन रचना के लिये ।
yesa lga jese sach mai koi badlo vali ladki aa gyi ho
bahut sunder rachna
.
वैरी ब्यूटिफ़ुल पोयम।
..बहुत सुंदर...बादलों si लड़की......
बहुत बढ़िया.
बहुत खुबसूरत रचना !
बहुत उम्दा
तुम नहीं मानोगे पर जानोगे एक दिन की ऐसे रिश्ते दैवीय होते हैं ..
बादलों वाली लड़की से रिश्ता तो ईश्वरीय ही हो सकता है ..
बहुत खूब !
मुश्किल है तुम्हें समझाना
तुम्हें बताना
कि कुछ रिश्ते दैविक होते हैं
भोर की पहली किरण
गठबंधन करती है
कोयल की कूक मंगलाचार गाती है
संध्या की लाली मांग का सिंदूर बन जाती है
रात गए चांदनी उसका चेहरा देखने आती है
दिव्य प्रेम की सुन्दर अनुभूति। बधाई।
''उसकी आँखों से बहते स्नेह निर्झर में
मैंने तैरना सीख लिया है''
अच्छी रचना।
बधाई हो आपको।
bahut sundar abhivyakti, badhai.
कुछ रिश्ते दैविक होते हैं
भोर की पहली किरण
गठबंधन करती है
कोयल की कूक मंगलाचार गाती है
संध्या की लाली मांग का सिंदूर बन जाती है
रात गए चांदनी उसका चेहरा देखने आती है
तुम नहीं मानोगे
पर जानोगे एक दिन
ऐसे रिश्ते ईश्वर का वरदान होते हैं
.......बेहतरीन रचना ....दिल को छू गई!
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