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हिंदी अपने देश में

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस  २१ फरवरी को मनाया गया किन्तु मातृभाषा के प्रति अनुराग की बात की जाये तो वह कम से कम हम भारतीयों में तो मिलना मुश्किल है.
सभी कहते हैं कि अंग्रेज गए अंग्रेजी छोड़ गए और यह केवल कथन थोड़े ही है ये तो आम चलन है.न केवल पढ़े लिखे बुद्धिजीवी वर्ग में अपितु मात्र दो चार कक्षा पढ़े लोग भी अंग्रेज बनने के ही प्रति अग्रसर हैं .हमारे एक जानकार हैं जो स्वयं को चौथी ''फेल''कहते हैं और अपने को अंग्रेज दिखाने से बाज नहीं आते .अस्पताल को हॉस्पिटल कहते हैं,अदालत को कोर्ट कहते हैं और यदि इन शब्दों की  हिंदी पूछी जाये तो बगलें झांकते हैं.ये तो मात्र एक उदाहरण है और वह भी केवल इसलिए कि मैं ये कहना चाहती हूँ कि अंग्रेजी हमारे वतन की हवा में घुल चुकी है.और हम न चाहते हुए भी इसका प्रयोग करते हैं.अब यदि ''प्रयोग ''शब्द को ही लें तो कितने लोग इसका इस्तेमाल करते हैं गिनती  शून्य ही होगी क्योंकि लगभग सभी ''यूज '' शब्द इस्तेमाल करते हैं.''शून्य ''शून्य  ''को जानने वाले भी कम होंगे अब लगभग सभी ''जीरो ''को जानते हैं.हम हो या और कोई कितनी बार अपने को औरों से श्रेष्ठ दिखाने हेतु भी अंग्रेजी बोलते हैं क्योंकि एक आम सोच बन चुकी है कि हिंदी बोलने वाले पिछड़े हुए हैं.


    आप रूसियों को देखिये वे हर देश में अपनी भाषा बोलते हैं हमें उनसे सीख लेनी चाहिए और अपनी भाषा को उसका सम्माननीय स्थान देते हुए अपनाना चाहिए .भाषा संपर्क का साधन है .अंत में चेतन आनंद जी के शब्दों का प्रयोग करते हुए मैं केवल यही कहूँगी कि वही सफलता मायने रखती है जो अपनों को साथ रखते हुए मिले ,अपनों के साथ रहते हुए मिले और हिंदी हमारी अपनी है,हमारी मातृभाषा है-

''मैंने देखो आज नए अंदाज के पंछी छोड़े हैं,
ख़ामोशी के फलक में कुछ आवाज के पंछी छोड़े हैं,
अब इनकी किस्मत है चाहे कितनी दूर तलक जाये
मैंने कोरे कागज पर अल्फाज के पंछी छोड़े हैं.''

6 comments:

वाणी गीत 22 फ़रवरी 2011 को 2:44 am बजे  

अंग्रेजी के कई शब्दों के हीनी में सरल अर्थ होने के बावजूद हम उन्हें ही प्रयोग करते हैं क्यूंकि ये आदत में शामिल हो गए हैं ...ऐसा हम जानबूझ कर नहीं करते !

मनोज पाण्डेय 22 फ़रवरी 2011 को 11:35 am बजे  

आपने विल्कुल सही कहा है हिंदी के सन्दर्भ में, आपसे सहमत हूँ मैं !

ब्रजेश सिन्हा 22 फ़रवरी 2011 को 11:44 am बजे  

अच्छा लगा, आभार इस प्रखर चिंतन के लिए !

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