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त्रिनेत्र का प्रतिरूप गंगा

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011




तुम्हें हमेशा से त्रिवेणी की तलाश रही
सही भी है
पर तुमने समझा ही नहीं
कि गंगा की धाराओं के बगैर
त्रिवेणी भी अपूर्ण है !
दरअसल तुम्हारे पास संभावनाओं का
वृहद् इतिहास रहा
मुझे अपने हर कदम पर विश्वास रहा
क्योंकि -
मैं शिव की जटा से निकली गंगा हूँ
यदि शिव ने मुझे अपनी जटा का आधार न दिया होता
तो क्या होता...
इसे बताना कैसा !
मुझे सिर्फ शिव की जटा में ही
अपना वजूद मिलना था
और तुम्हें त्रिवेणी के मध्य
उसी गंगा का सामना करना था
जो शिव के त्रिनेत्र का प्रतिरूप है
!

13 comments:

रवीन्द्र प्रभात 15 फ़रवरी 2011 को 10:57 am बजे  

सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति, गंगा हमारी सांस्कतिक विरासत का जिवंत प्रतीक है ....बहुत ही सुन्दर तरीके से आपने इसे व्याख्यायित किया है !

मनोज पाण्डेय 15 फ़रवरी 2011 को 11:14 am बजे  

आपकी कविता बार-बार पढ़ने को उत्प्रेरित कर रही है, बहुत बढ़िया प्रस्तुति, आभार !

प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ 15 फ़रवरी 2011 को 12:04 pm बजे  

खुलकर कीजिए बात जैसे अपने घर में करते हैं !

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" 15 फ़रवरी 2011 को 12:13 pm बजे  

कि गंगा की धाराओं के बगैर
त्रिवेणी भी अपूर्ण है !

सही है, दोनों एक दुसरे के पूरक हैं ...

सदा 15 फ़रवरी 2011 को 12:30 pm बजे  

दरअसल तुम्हारे पास संभावनाओं का
वृहद् इतिहास रहा
मुझे अपने हर कदम पर विश्वास रहा
क्योंकि -
मैं शिव की जटा से निकली गंगा हूँ
विश्‍वास की इस जीवटता को सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोती यह अभिव्‍यक्ति गहन भावों का संगम है ...।

अरुण चन्द्र रॉय 15 फ़रवरी 2011 को 1:18 pm बजे  

सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति, गंगा हमारी सांस्कतिक विरासत का जिवंत प्रतीक है ....बहुत ही सुन्दर तरीके से आपने इसे व्याख्यायित किया है !

रेखा श्रीवास्तव 15 फ़रवरी 2011 को 1:38 pm बजे  

ganga kee pavitrata aur usaka hamari virasat hona isa baat ka jeevant prateek hai ki hamari asthaon se judi ganga ka udgam kahan hai?

गीतेश 15 फ़रवरी 2011 को 2:32 pm बजे  

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति,बधाई।

Atul Shrivastava 15 फ़रवरी 2011 को 11:53 pm बजे  

गंगा की धारा और त्रिवेणी। दोनों एक दूसरे के बगैर अधूरे हैं, सच लिखा है आपने। अच्‍छी रचना। गहरी बातें हैं इस रचना में। बधाई हो आपको।

Sunita Sharma Khatri 18 फ़रवरी 2011 को 8:28 pm बजे  

बहुत ही अच्छी रचना है क्या इसे मेरे बलाग पर जगह दी जा सकती यदि अनुमति हो तो।
Ganga Ke Kareeb
http://sunitakhatri.blogspot.com

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