अंदाज ए मेरा: रमन सिंह के हम्माम में नेता पत्रकार सब नंगे...!
शनिवार, 26 फ़रवरी 2011
छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री और राजनांदगांव के विधायक डा रमन सिंह का पिछले कुछ सालों पहले लिया इंटरव्यू मुझे खूब याद आ रहा है। मुझे याद आ रहा है, उस वक्त डाक्टर साहब ने केन्द्र में मंत्री पद से इस्तीफा दिया था और छत्तीसगढ में ‘कोमा’ की हालत में आ चुकी पार्टी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का पद संभाला था। एक ‘डाक्टर’ के अध्यक्ष बनने के बाद कोमा में जा चुकी पार्टी में जान आने लगी और इसके बाद इस पार्टी ने प्रदेश में सरकार बनाई और यही डाक्टर सरकार का मुखिया बना।
खैर मैं बात कर रहा हूं, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और सांसद डाक्टर रमन सिंह से लिए एक इंटरव्यू का। मुझे जहां तक याद है एक सवाल के जवाब में डाक्टर साहब ने कहा था, ‘मैं इकलौता ऐसा दुस्साहसी सांसद हूं, जो अपनी निधि के वितरण की सूची पुस्तक के रूप में प्रकाशित करता हूं।’(यह इंटरव्यू 3 अगस्त 2003 को हरिभूमि अखबार में प्रकाशित हुआ है और वर्ष 2004 में डाक्टर साहब पर लिखी मेरी किताब ‘मेरी स्याही में डाक्टर रमन’ में भी शामिल है।) इस इंटरव्यू को याद मैंने इसलिए किया क्योंकि अब यदि मुख्यमंत्री बनने के साढे सात साल बाद यदि डाक्टर साहब अपने मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान के वितरण को लेकर यदि पुस्तक के रूप में प्रकाशित करते तो शायद इस पुस्तक का नाम ‘डा. रमन के हम्माम में नेता पत्रकार सब नंगे’ ही होता।
सूचना के अधिकार के तहत मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान के बंटवारे की जानकारी जब मैंने निकाली और इस सूची का अवलोकन किया तो मुझे डाक्टर साहब का बरसों पुराना इंटरव्यू याद आ गया और साथ ही जेहन में इसका शीर्षक भी आ गया। मैं बता दूं कि मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान की जो सूची मेरे पास है उसमें वर्ष 2003 से लेकर 2009 तक के वितरण की जानकारी है। पूरे प्रदेश भर की जानकारी है लेकिन उसमें से मैंने राजनांदगांव जिले के कुछ प्रमुख और चर्चितनेताओं और पत्रकारों की सूची को ही छांटी है। शेष प्रदेश की सूची भी यदि यहां मैं दे दूं तो कई पन्ने भर जाएंगे और इसमें एक दिक्कत यह भी है कि प्रदेश भर के लोगों में कौन किस पार्टी का है, किस पद पर है इस पर काफी ‘होमवर्क’ करना पडेगा। पत्रकारों के अखबारों को लेकर भी तगडा होमवर्क करना पडेगा। इस लिए मैंने सिर्फ ‘ट्रेलर’ के तौर पर सिर्फ राजनांदगांव के पत्रकारों, नेताओं की सूची तैयार की है। अब ट्रेलर देखकर ही पूरी फिल्म का अंदाजा लगा लिया जाए।
जहां तक मेरी समझ है, किसी भी मंत्री या मुख्यमंत्री को ‘स्चेच्छानुदान’ का अधिकार दिया जाता है, क्षेत्र की जनता की मदद के लिए। चाहे वह इलाज के लिए हो या जीविकोपार्जन के लिए। जनता भी ऐसी जो सक्षम न हो, गरीब हो, जिसे वास्तव में मदद की दरकार हो। पर मुख्यमंत्री साहब की निधि के वितरण को देखकर ऐसा कतई नहीं लगता। मालदार नेता जिनमें कुछ तो दो तीन हजार रूपए की मदद लेने के बाद अब विधायक भी बन गए हैं। लालबत्ती धारी हो गए हैं। पत्रकार भी ऐसे जो सक्षम हैं। जिनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि आर्थिक रूप से मजबूत है।
2 comments:
बधाई ,अच्छी खबर !
धन्यवाद मनोज जी।
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