देख लो
आज में
फिर दर्द से
छटपटा रहा हूँ
मझे मेरे अपने
लूट रहे हें
बस इसी दर्द से
कराह रहा हूँ में
रोज़ रोज़ की
इन भ्रस्ताचार की शिकायतों से
तडपने लगा हूँ में
नेत्ताओं के महमूद गजनवी बनकर
रोज़ मुझे लुटने से
घबरा गया हूँ में
जिसे अपना बनाया
जिसके हाथ में दोर दी मेने
वोह भी देखो
खुद मजबूर लाचार बन कर
मेरी लूट में शामिल होकर
समझोतों में लगा हे
इतना होता तो ठीक था
बस अब बेशर्मों की
तरह से
इस कहानी को गढ़ कर
खुद को
बेहिसाब अपराधों से
बचाने में लगा हे
मुझे बताओं
में अब क्या करूं
में इतना बेबस ,इतना लाचार
इतिहास गवाह हे
कभी नहीं रहा
लेकिन आज
में चुप खामोश
सब सह रहा हूँ क्योंकि
मुझ में करोड़ों करोड़
लोग बसते हें
और यह सभी लोग
मुझे
तू हे हिन्दुस्तान
तू हे मेरा भारत महान
कह कह कर हंसते हें
क्या
तुम देख सकोगे
क्या तुम बाँट सकोगे
मेरा यह दर्द
क्या तुम
कोई मरहम लगाकर
कोई अलादीन का चिराग जलाकर
दूर कर सकोंगे मेरा यह दर्द
अगर हाँ तो उठों ना
उठो बदल दो
यह सत्ता बदल दो यह रस्मो रिवाज
खुदा के लियें
पोंछ दो मेरे आंसू
बना दो मुझे फिर से
१९४७ माँ भारत आज़ाद
ताकि में गर्व से कह सकूं
में हिंदुस्तान हूँ
में मेरे करोड़ों करोड़ लोगों का
भारत महान हूँ
क्या कर सकोंगे ऐसा ........ ?
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
9 comments:
bahut khub.....
एक जबरदस्त आह्वान ...
क्या कर सकोंगे ऐसा ?
prashn bahut nushkil hai aapka hal nikala jayega ...
बहुत सार्थक आह्वान ...काश इस दर्द को दूर किया जा सके ..
बहुत सुन्दर और सार्थक सन्देश दिया है आपने,बधाईयाँ!
very nic
अख्तर भाई, बहुत गहरी बात कह दी आपने। बधाई।
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ब्लॉगवाणी: ब्लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।
देश की पीड़ा की सही प्रस्तुति
यही आह्वान होना चाहिये हर भारतीय का यदि वो खुद को भारतीय महसूस करता है…………हिन्दुस्तान के दर्द को बखूबी उकेरा है।
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