साझा-संसार: बच्चियों का घर (चम्पानगर, भागलपुर) - 1
मंगलवार, 8 मार्च 2011
3 साल की बच्ची सलवार कुर्ती पहने और सिर पर दुपट्टा डाले हुए मेरे सामने से दौड़ते हुए गई| कमरे के भीतर से दो तीन औरतों को वो बाहर लेकर आई और उनमें से किसी एक स्त्री की साड़ी का पल्लू पकड़े रही| काफी जर्ज़र हालत में वो मकान था, दरवाज़े में घुसते हीं सामने मोहम्मद मुन्ना साहब से मुलाक़ात हुई जो इस यतीमखाना के संचालक हैं| हमने उन्हें बताया कि हम आपका यतीमखाना देखना चाहते हैं| हम जानना चाहते हैं कि बच्चियाँ कैसे रहती हैं और क्या क्या करती हैं| बेहद तंग गली में ये मकान है और हर मकान एक दूसरे से सटा हुआ है| आसपास के मकानों से लोग देखने लगे कि क्या हुआ| कौन लोग हैं और क्यों आये हैं? कौतूहलवश थोड़ी भीड़ सी इकठ्ठी हो गई|
मुन्ना साहब ने बताया कि यहाँ जन्मजात कन्या से लेकर 12 साल तक की बच्ची रहती है, उसके बाद उन्हें बड़ी लड़कियों के यतीमखाने में भेज देते हैं| अभी तकरीबन 25 लड़कियाँ यहाँ रह रही है| 4-5 को छोड़कर बाकी सभी बच्चियाँ दावत खाने कहीं गई हुई थी| एक बच्ची जो करीब 5 साल की थी छत पर बने ओसारे में दो अन्य बच्ची के साथ पढ़ने बैठी थी| उससे नाम पूछने पर भी कोई जवाब न दे पाई| मैं उससे उसकी किताब मांगी कि दिखाओ क्या पढ़ रही हो, चुपचाप उसने अपनी किताब मुझे लाकर दे दी|
मुन्ना साहब ने बताया कि यहाँ जन्मजात कन्या से लेकर 12 साल तक की बच्ची रहती है, उसके बाद उन्हें बड़ी लड़कियों के यतीमखाने में भेज देते हैं| अभी तकरीबन 25 लड़कियाँ यहाँ रह रही है| 4-5 को छोड़कर बाकी सभी बच्चियाँ दावत खाने कहीं गई हुई थी| एक बच्ची जो करीब 5 साल की थी छत पर बने ओसारे में दो अन्य बच्ची के साथ पढ़ने बैठी थी| उससे नाम पूछने पर भी कोई जवाब न दे पाई| मैं उससे उसकी किताब मांगी कि दिखाओ क्या पढ़ रही हो, चुपचाप उसने अपनी किताब मुझे लाकर दे दी|
जेन्नी शबनम की इस मार्मिक अभिव्यक्ति को पढ़ने के लिए निचे दिए लिंक पर किलिक करें
1 comments:
बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिए बधाईयाँ !
एक टिप्पणी भेजें