सिर्फ सपने !
रविवार, 6 मार्च 2011
वह लड़की सिर्फ सपने देखती थी
कभी कई सीढ़ियाँ लगा आकाश को छूती
कभी क्षितिज को मुठ्ठी में भर लेती
कभी अलादीन का चिराग मिलता
कभी अलीबाबा के साथ गुफा तक पहुँच जाती
कभी बन जाती भारत की प्रधानमंत्री
कभी चाँद पर उतरती
कभी किरण बेदी
कभी पी.टी उषा ....
सपनों की उड़ान में वह हर खेल की खिलाडी होती !
हकीकत की धरती उसे अच्छी नहीं लगती थी
छल नफरत .... उसे लगता वह कैक्टस के बीच फंस गई है !
चक्रव्यूह से वह बारीक लकीरों सी निकलती
पर फिर एक चक्रव्यूह ...
तंग आ जाती
और सपने देखने लगती ...
सपने उसकी मर्ज़ी से चलते थे
कुछ भी बुरा होता तो उसे मिटा देती
रास्ते बदल देती
...
गर सिन्ड्रेला को लाल परी मिल सकती है
तो उसे क्यूँ नहीं !
जूते को उठाकर राजकुमार
सिन्ड्रेला को ढूंढ सकता है
तो उसे क्यूँ नहीं !
और राजकुमार की संरचना भी तो वही करती थी
....
हकीकत में न कोई राजकुमार होता है
ना सिन्ड्रेला जादू से राजकुमारी बनती है ...
तभी तो हकीकत उसे रास नहीं आती थी !
...
सपने में वह विरक्त भिक्षुणी भी बनती
बुद्ध के शरण जाती
कैलाश पर्वत पर शिव से बातें करती
कभी पार्वती बन
हकीकत की बंजर धरती को हरा भरा बनाती
कभी सीता बन राम के संग वन जाती
कभी सिम्सन बन एडवर्ड को इंग्लैण्ड का राज्य त्यागते देखती ....
....
सपने देखते देखते .... मनचाहे सपने !
वह उम्र की कई सीढ़ियाँ चढ़ गई...
आज भी हकीकत के अंगारे दहकते हैं
पर सपने आज भी उसका मनोबल हैं
उसके घर से कोई खाली हाथ नहीं जाता
कहीं न कहीं से
कुछ न कुछ देकर
वह कर्ण की भूमिका निभा ही लेती है
....
हकीकत में वह लड़की
सपनों सी ही लगती है
जागी आँखों सिर्फ सपने देखती है
सिर्फ सपने !
6 comments:
अच्छी रचना।
सच में सपनों की दुनिया कितनी प्यारी होती है।
न कोई बंधन और न कोई सीमा।
शुभकामनाएं आपको।
हकीकत में वह लड़की
सपनों सी ही लगती है
जागी आँखों सिर्फ सपने देखती है
सिर्फ सपने
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
bhtrin rchna mubark ho. akhtar khan akela kota rajsthan
बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति.!
बहुत सुन्दर. लड़की के हिसी में ख्वाब ही अधिक हैं.
सपने आज भी उसका मनोबल हैं
उसके घर से कोई खाली हाथ नहीं जाता
कहीं न कहीं से
कुछ न कुछ देकर
वह कर्ण की भूमिका निभा ही लेती है....
जिसने हमेशा देना सीखा हो उसके घर से कोई खाली हाथ कैसे जा सकता है ...एक सच है यह ...बहुत खूबसूरत भाव ...।
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