बाजारवाद के इस दौर में हिंदी ब्लॉगिंग की भूमिका
रविवार, 6 मार्च 2011

बाजारवाद के कारण ही आज का पत्रकार निष्पक्ष नहीं रह पाता। लेकिन आम आदमी की इस पत्रकारिता के क्षरण होने के साथ-साथ उसके लिए वैकल्पिक मीडिया के लिए हिन्दी ब्लॉगिंग ने बेहतर माध्यम के तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। ब्लॉगिंग ने आम आदमी की संवेदनाओं और भावनाओं के सुख को फिर से जागृत किया है। मीडिया ने अपनी ताकत नहीं खोई बल्कि ब्लॉग के कारण पुन: संजोई है और अब नया मीडिया और आम आदमी दोनों ही ताकतवर होते जा रहे हैं। ग्लोबल मीडिया ने हमारी ज़िन्दगी को बदल दिया है और बाज़ार के दबाव में राष्ट्र में असहमति की आवाज़ को दबाने के लिए ही पत्रकारिता का चरित्र बदलकर हाजिर हुआ है।
आज़ादी से पहले जिन मूल्यों की तलाश में आम आदमी ने संघर्ष किया, वही मूल्य आज़ादी के बाद और अधिक विघटित हो गए हैं। ऐसे में आम आदमी के पास अपनी बात को कहने के विकल्प नहीं रहा था परंतु अब आम आदमी के पास तकनीक आने के बाद उसने अपने लिए विकल्पों की स्वयं ही खोज कर ली है । उसने तकनीक को ही अपनी आवाज़ और अभिव्यक्ति का हथियार बनाया है ।ब्लॉगिंग इसी का एक वृहद् रूप है, जिसकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती जा रही है और यह आम आदमी के सर चढ़ कर बोल रही है !
भारत में आज भी बाज़ार के छद्म यथार्थ के हिन्दी पत्रकारिता पर प्रभाव के कारण ही नहीं। कहीं न कहीं बाज़ार के अलावा कुछ युवा पत्रकार भी इस हिन्दी पत्रकारिता को संवेदनहीन बनाने के दोषी हैं लेकिन इसके बावजूद भी यह नया माध्यम जिसे हम ब्लॉग कहते हें, मूल्यों को बचाए रखने वाली पत्रकारिता का हिस्सा बना हुआ हैं। ब्लॉगिंग ने सामाजिक मुद्दों और अन्य वैचारिकों विषयों पर विमर्श के लिए वातावरण के अनेक कार्यक्रमों का निर्माण किया है और आज भी कराती जा रही है। जरूरत है कि समाज अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को इस नए माध्यम के साथ जोड़े और नए भविष्य के निर्माण में बाज़ारवाद के आगे नत मीडिया से बचकर मूल्यवादी पत्रकारिता के मीडिया का आधार दे सकें। पेड न्यूज़ बाज़ारवाद और भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है। अखबार के अंतकरण का स्वामी, आज पैसे लेकर खबर छापता हैए केवट पैसे लेकर पार उतारता हैए यह बाज़ारीकरण की पराकाष्ठा है। हिन्दी पत्रकारिता कभी व्रत हुआ करती थीए अब वह वृत्ति बन गई है और इसमें वृत्ति की विकृतियाँ भी आ रही हैं। ऐसे में ब्लॉग का समानांतर मीडिया के रूप में प्रतिष्ठापित होना एक नयी सामाजिक क्रान्ति का सूचक है !
बाज़ार के इस दौर में हिन्दी पत्रकारिता को यदि अन्य भाषाओं की पत्रकारिता का मुकाबला करना है तो निश्चित रूप से उसे ब्लॉगिंग के माध्यम से आम आदमी की भाषा में अपनी बात कहनी होगी।
एडवोकेट रणधीर सिंह सुमन
2 comments:
blogig men agr bazaarvad aaya yani vigyaapn aaye to fir to bloging gai kama se lekin agr nigraani kaa baazaarvad rha to baazar sntulit rhegaa. akhtar khan akela kota rajssthan
इसमें कोई संदेह नहीं , बहुत बढ़िया !
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