इतने जतन से खरीदा गया एक मकान
बुधवार, 2 मार्च 2011
मेरे एक खासमखास दोस्त जो बहुत जल्दी किसी पर भी भरोसा कर लेते हें जज्बाती हे प्यारे हें सभी से मोहब्बत करते हें और इसीलियें वोह कई बार लोगों के झासे में आ जाते हें हम उन्हें समझाते हें तो बस वोह अब हमसे कई बातें छुपाने लगे हें ।
मेरे यह दोस्त मेरे साथ ही पड़े लिखे हें साथ रहे हें शरारती भी हें जिद्दी भी हे नाम हे सय्यद मोहम्मद अली इनका निजी स्कुल हे और यह वकालत भी कर रहे हें निजी स्कुल का यह विस्तार करना चाहते थे इसलियें इन्हें नजदीक ही एक बिकने वाली काका जी की बिल्डिंग खरीदना थी बिल्डिंग पर बिकाऊ हे का बोर्ड लगा था इन जनाब ने जब बिल्डिंग खरीद की बात कही तो काका जी ने साफ़ शब्दों में कहा के भाई यह बिल्डिंग में किसी भी मुस्लिम को नहीं बेचूंगा लेकिन इस बिल्डिंग की स्कुल के विस्तार के लियें पडोस में होने जरूरत थी इसलियें वोह इसका मुह माँगा दाम देने को तय्यार थे लेकिन जब काका जी का फरमान सुना तो फिर मेरे इन दोस्त ने अपने हिदू भाई जांबाज़ दोस्तों को मकान खरीदने भेजा जिस मकान को वोह ५ लाख रूपये में बेच रहे थे अब वोह ६ से १२ फिर १८ फिर २१ लाख की कीमत मागी जाने लगी लेकिन पोल खुल गयी मकान की रजिस्ट्री जब मेरे मित्र की राखी बहन जीजी बाई के नाम करवाई जाना थी तब ऍन वक्त पर मकान बेचने वाले ने मकान बेचने से इंकार करते हुए साईं की रकम लोटा दी ।
अब मेरे यह जज्बाती दोस्त जिद पर अड़ गये उन्हें एक तात्रिक मिले तांत्रिक इस लियें मिले के वोह तन्त्र मन्त्र विद्या पर ज्यादा ही विश्वास करते हें और बस यह जनाब तांत्रिक के पास जा पहुंचे तांत्रिक जी का कहना था दस हजार का खर्चा हे ऐसा मन्त्र दूंगा के मकान मालिक खुद तुम्हारे घर मकान बेच कर जायेंगे तात्रिक को दस हजार रूपये दिए गये लेकिन तांत्रिक जी ने कब्रिस्तान और श्मशान की मिटटी मिलाकर मंगवाई अब कब्रिस्तान की मिटटी तो आसानी से मिल गयी लेकिन मेरे यह दोस्त अपने हिदू भाई दोस्तों के साथ श्मशान पहुंचे तो एक श्मशान में तो ताला लगा था फिर दुसरे श्मशान में पहुंचे जहां कुछ शवों को ताज़ा जलाया गया था सभी दोस्त जब श्मशान में मिटटी लेने घुसे तो लोगों ने इन्हें हड्डियां चोरने वाला समझ लिया और यह सभी लोग बढ़ी मुश्किल में श्मशान से अपनी जान बचाकर भागे फिर शहर से दूर एक श्मशान से इन जनाब ने मिटटी लाकर तत्न्रिक जी को दी तांत्रिक जी ने जाप किया और मिटटी जिस मकान को खरीदना चाहते थे उसकी छत पर डालने के निर्देश दिए गये किराये के आदमी से छत पर मिटटी डलवाई गयी लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला फिर तांत्रिक ने कहा के जनाब यह बढ़ी सख्त जान हे इसके पेरों के नीचे की मिटटी लादो बस फिर कम हो जाएगा ।
अब काका जी के पैर के नीचे की मिटटी केसे लें एक तो सडक पक्की दुसरे काका जी के जुटे केसे उतरवाएँ खेर एक चाल चली गयी काका जी को फर्जी सालगिरह का कार्यक्रम बुलाया गया कच्चा खाना रखा गया और एक कच्ची जमीन वाले पार्क पर काका जी को खाना खिलने बताया यकीन काकाजी तो मोज़े पहन कर बेठे थे खेर काका जी के मोजों पर दाल गिराई गयी और फिर काका जी ने मोज़े उतारे फिर उनके पाँव के नीचे की मिटटी तांत्रिक जी को ले जाकर दी मिटटी फिर पढ़ी गयी और काका जी के घर पर डालने का हुक्म हुआ मिटटी भी डल गयी लेकिन काका जी मकान बेचें को तय्यार नहीं हुए आखिर तांत्रिक ने काका जी से हार मान ली और मेरे मित्र से हाथ जोड़ कर कहा के मेरा पहला केस ऐसा हे जो फेल हुआ हे आप रपये वापस ले लेना आज महाशिवरात्रि का अवकाश होने से में मेरे मित्र सय्यद मोहम्मद अली के घर उनसे मिलने गया था इसी बीच तांत्रिक जी रूपये देने आ गये वोह अनजान थे के मेरे दोस्त ने मुझ से सारी बातें छुपा रखी हे बस इसलियें उन्होंने सारी बात मेरे सामने ही बताना शुरू कर दी पहले तो मेरे मित्र ने उन्हें रोकना चाहा फिर बस मेरे मित्र ने खुद ही सारी बात मुझे बताई काका जी का मुकदमा हमारे पास था इसलियें हमने काका जी से फोन पर बात की और मकान खरीदने की पेशकश की काका जी ने कहा किसे चाहिए मेने कहा मेरे खास दोस्त मोहम्मद अली का स्कुल पास में हे उन्हें खरीदना हे काका जी ने पहले तो सोचा फिर कहा के ठीक हे मकान आपका हे जब चाहो ले लो ताज्जुब हे इतने झंझट के बाद जो मकान काका जी बेचने को तय्यार नहीं थे उसे बेचने के लियें वोह एक मिनट में राज़ी हो गये में और मेरे दोस्त काका जी के घर पहुंचे काका जी ने सत्कार किया साईं वापस ली और मकान की लिखा पढ़ी हो गयी ना मेने उनसे पूंछा के पहले इस मकान को बेचें से इनकार करते हुए साईं क्यूँ लोटा दी थी ना उन्होंने इस बारे में मुझ से कोई बात की अब मकान मेरे दोस्त के पास कल से आ जाएगा और काका जी ही खुद स्कुल से जुड़ा हुआ मकान होने से अपनी देख रेख में मकान का पुनर निर्माण करवाने का वायदा क्या हे और काका जी अब मोहम्मद अली मेरे दोस्त के परम मित्र बन गये हें यह सब केसे हुआ एक संयोग था या भाग्य कुछ कह नहीं सकते लेकिन कहानी कुछ ऐसी अप्रत्याशित बनी के में आप सभी भाइयों से शेयर कर रहा हूँ .................. ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
1 comments:
शर्म की बात है वैज्ञानिक युग में भी अन्धविश्वास जिन्दा है !
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