इन दिनों में केवल गरीबों को ही दावत देकर खाना खिलाते हें
सोमवार, 28 मार्च 2011
पीराने पीर दस्तगीर या गोस पाक की फातिहा का महीना हे
दोस्तों हमारा देश गंगा जमनी संस्क्रती की बेमिसाल संस्क्रति हे इसीलियें सभी को एक दुसरे के धर्म के बारे में जानकारियाँ होना चाहिए ताके एक दुसरे से मिलकर सभी देशवासी आपस में प्रेम सद्भावना और भाईचारे का हाथ बढ़ाएं .
अभी मुसलमानों के लियें फातिहा ख्वानी का महीना ग्यारवीं के नयाज़ का महीना चल रहा हे इस महीने को आम तोर पर ग्यारवीं के महीने के नाम से ही जाना जाने लगा हे वेसे इस्लाम में इस महीने को रबीउल सानी का महीना कहते हें जो रबीउल अव्वल के बाद आता हे , दोस्तों इस महीने में पीराने पीर दस्तगीर या गोस पाक अब्दुल कादर जिलानी को भी याद किया जाता हे और उनकी याद में ही फातिहा का दोर चलाया जाता हे , इस्लामिक इतिहास के अनुसार लगभग सातवीं सदी में इराक के बगदाद के पास एक गाव जिलानी में अब्दुल कादर जिलानी ने जन्म लिया और इन्होने माँ के पेट में ही कुरान शरीफ हिफ्ज़ कर लिया यानि माँ के पेट में ही इनकी इस्लामिक तालीम पूरी हो चुकी थी और इसीलियें यह जन्म से ही बालपन में सत्य ,अह्निसा और इमानदारी का पाठ पढाने निकल चले थे इनकी इस शोहरत को देख कर सभी पीरों ने इन्हें अपना पीर यानि पिराने पीर दस्तगीर मान लिया था , एक बार बालपन में जब इनकी माँ ने इन्हें इनके कम्बल और कमरी में पढाई के खर्चे के लियें दीनारें सीकर काफिले के साथ भेजा तो रास्ते में काफिले को लुटेरों ने लुट लिया सभी की तलाशी लेकर उनके सामान लुट लिए तब यह खुद लुटेरों के सरदार के पास गए और उन्होंने कहा के मुझे भी मेरी माँ ने कमरी और कम्बल में दीनारें सीकर दी हें लुटेरों के सरदार ने तलाशी ली और दीनारें देखकर कहा के तुम तो यह बचा सकते थे फिर खुद क्यूँ यह राज़ बताया तब या गोज़ पाक ने कहा के यह मेरी माँ और इस्लाम की शिक्षा हे के जाना चली जाये लेकिन सच नहीं जाना चाहिए बस उस लुटेरों के कबीलों ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया .
पिराने पीर दस्तगीर गरीबों के हमदर्द और इनको खुदा ने इल्म बख्शा था के यह अपनी ठोकर से मुर्दों को ज़िंदा कर दिया करते थे यह बारह माह रोज़े रखा करते थे और इबादत ऐसी के रात को इशां की नमाज़ के वुजू से सुबह फज्र की नमाज़ पढ़ लिया करते थे इनकी इसी इबादत पाकीजगी की वजह थी के हर रोज़ रोज़े अफ्तार के वक्त बादशाह, अमीर और गरीब इनके आगे लज्जतदार पकवान सजा कर रखते थे लेकिन यह सिर्फ किसी गरीब की दी हुई पिन खजूर से रोजा अफ्तारते थे एक दिन एक बादशाह ने झल्लाकर उनसे इस उपेक्षा का कारण जानना चाहा तो या गोस पाक ने एक हाथ में बादशाह की रोटी और एक हाथ में गरीब की रोटी लेकर उसे जोर से रस निकलने के लियें दबा दिया तब बादशाह की रोटी में से तो खून रिसने लगा और गरीब की रोटी से पानी बह रहा था बस बादशाह समझ गया और उस दिन से उसने गरीबों पर ज़ुल्म करना बंद कर दिया ऐसे पाक गोस पाक की याद में इस माह को पर्यायवाची के रूप में ग्यारहवीं के महीने के नाम से भी जाना जाता हे इस महीने में सभी लोग फातिहा दिलाकर गरीबों को अच्छा खाना बना कर खिलते हें वोह बात और हे के इस रिवाज को इस फातिहा को अमीरों ने इन दिनों आपस में एक दुसरे अमीर और रिश्तेदारों को दावत देने और खाना खिलाने का फेशन बना लिया हे लेकिन फिर भी कई लोग ऐसे हें जो इन दिनों में केवल गरीबों को ही दावत देकर खाना खिलाते हें . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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:)
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