अंदाज़ अपना - अपना
मंगलवार, 8 मार्च 2011
क्यु हरदम टूट जाने की बात करती हो |
नारी हो इसलिए बेचारगी की बात करती हो |
क्या नारी का अपना कोई आस्तिव नहीं ?
एसा कह कर खुद को नीचे गिराने की बात करती हो |
खुद को खुद ही कमजोर बना , ओरों पर क्यु
इल्ज़ाम लगाने जैसी बात कहती हो ?
खुद को परखने की हिम्मत तो करो |
कोंन कहता ही की तुम ओरों से कम हो ?
एसे तो खुद ही खुद को कमजोर
बनाने की बात कहती हो |
नारी की हिम्मत तो कभी कमजोर थी ही नहीं |
ये तो इतिहास के पन्नों में सीता , अहिल्ल्या
सती सावित्री की जुबानी में भी है |
फिर क्यु घबरा कर कदम रोक लेती हो ?
अपनी हिम्मत को ओरों से कम क्यु
समझती हो |
अपना सम्मान चाहती हो तो पीछे हरगिज़
न तू हटना |
पर किसी को दबाकर उपर उठाना एसा भी
तू हरगिज न करना |
इस सारी सृष्टि में सबका अपना बराबर
का हक है |
खुद के हक को पाने के लिए किसी को भी
तिरस्कृत तू हरगिज़ न करना |
ये नारी तू प्यार की देवी है |
इस नाम को भी कलंकित तू
कभी न करना |
प्यार से अपने हिस्से की गुहार
तू हर दम करना |
अपने साथ जोड़ना ... किसी को
तोड़कर आगे कभी मत बढ़ना |
साथ लेकर चलने का नाम ही समर्पण है |
नारी के इसी प्यार पर टिका सृष्टि
का ये नियम भी है |
इसको बचा कर रखना इसमें तेरा ,
मेरा और सबका हित भी है |
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