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ऐसी सोच भी है !

बुधवार, 9 मार्च 2011

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस गुजर गया और छोड़ गया कुछ प्रश्न चिह्न कि ये आधी आबादी आज भी दोयम दर्जे की समझी जाती है। इस दिन कुछ तो होना ही था अच्छा भी गुजरा और अब विधायिका की भूमिका भी देख लें।

महिला आरक्षण विधेयक जिस दिन राज्यसभा में पारित होकर आगे बढ़ा - सबने बहुत खुशियाँ मनायीं और हमारे ब्लॉग भी ख़ुशी से भर गए थे लेकिन फिर सत्तारूढ़ गठबंधन सरकार की सिरमौर कांग्रेस इतना साहस नहीं कर सकी या कहें कि सहमति नहीं जुटा सकी कि वह लोकसभा के पटल पर ला सके क्योंकि उसके सहयोगी क्षेत्रीय दल इतनी पिछली विचारधारा के हैं कि वे इक्कीसवीं सदी में नहीं जी रहे हैं वे तो उन्नीसवीं सदी के प्राणी लग रहे हैं। वे पुरुष सत्ता को आज भी सर्वोपरि मानते हैं। एक तरफ वे भारत कि प्रथम नागरिक महामहिम प्रतिभा पाटिल को नकार नहीं पा रहे हैं, सत्तादल की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गाँधी के नेतृत्व को सर झुका कर स्वीकार करने के लिए मजबूर हैं। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के कार्यों के प्रति आपत्ति कर नहीं सकते हैं। वे संतुलन बनाकर चलने वाली महिला हैं।
महिला आरक्षण को लेकर लगभग डेढ़ दशक से चल रहे विवाद और मतभेद को आजतक खत्म नहीं किया जा सका है क्यों? क्योंकि जहाँ हम रोज पढ़ते हैं कि इस आधी आबादी के प्रति लोगों की विचारधारा बदल रही है। वहाँ से हम देखना शुरू करते हैं। सपा प्रमुख लोकसभा में महिला आरक्षण को सहन ही नहीं कर सकते हैं इसके बदले वे अपनी पार्टी में २० प्रतिशत आरक्षण देने को राजी हैं क्योंकि उनके दल में कुछ कठपुतलियाँ भर्ती कर ली जाएँगी और फिर चुनाव भी जीत जाएँगी। लेकिन इस आतंरिक आरक्षण में कोई नेत्री जन्म नहीं ले सकती है। पार्टी के अन्दर तो सब मोहरे भर होते हैं और उनके कंधे पर बन्दूक रख कर चलाता कोई और है। ये सिर्फ भरमाने वाला वक्तव्य ही हो सकता है । उनकी जैसी पिछड़ी विचारधारा वाला व्यक्ति अपने सामने किसी महिला कि सत्ता को कैसे स्वीकार कर सकता है।
दूसरे हैं जदयू के अध्यक्ष दूसरे यादव शरद यादव जिन्होंने चेताया है कि पिछड़ी जातियों की महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान चाहिए। अगर वे पिछड़ी जाती को चाहते हैं तो मानी हुई बात है कि वे खुद पिछड़ी हुई जाति के हैं और अपनी ही जाति का उत्थान चाहते हैं जो कि मात्र दिखावा है क्योंकि वे उतना ही बोल सकेंगी जितनी उन गुड़ियों में चाबी भरी जाएगी। निधि उनके नाम पर होगी और उसको खर्च करेंगे पार्टी के चमचे। सिर्फ महिला आरक्षण के नाम पर कई तमाशे उजागर हो चुके हैं। पिछड़ी जाती वाले दल अपनी पिछड़ी मानसिकता से मुक्त कभी नहीं हो सकते हैं।
यहाँ तक कह डाला है कि वर्तमान विधेयक पार्टी करने का प्रयास किया गया तो संग्राम होगा।
इस तरह से हमें आरक्षण नहीं चाहिए । अब हमें अपनी जगह खुद बनानी होगी। हम दया के पात्र तो कतई नहीं है और जब अपनी जगह बना लेंगे तो बाकी बहनों को भी इसके लिए तैयार कर लेंगे। अब आधी आबादी को इन पिछड़ी मानसिकता वाले दलों से निपटने के लिए महिला मोर्चा ही खोलना होगा और आधी आबादी के अधिकारों और उनकी शक्ति को जगाना होगा। ये आधी आबादी का किसी से बैर नहीं है क्योंकि वह तो जगत प्रसूता और उसको पालने वाली है। उसे सिर्फ स्वस्थ शासन और न्यायसंगत आचरण पर चलने वाले एक दल कि नींव रखनी होगी तभी १०-२० साल बाद ये आधी आबादी देश में अपने होने का अहसास दे पायेगी।

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