पत्थरों की जगह मिठाइयों की वारिश
शनिवार, 26 मार्च 2011
ख़ूबसूरत व्यक्तित्व के धनी एक नौजवान जिनका नाम है अरमान अश्क़ (शक्ल से फ़रहा ख़ान के भाई लगते हैं ), कराची के निवासी हैं. इन दिनों भारत की ही तरह पाकिस्तान में भी क्रिकेट के बुख़ार से लोग पीड़ित हैं. मुक़ाबला दोनों परम्परागत मुक़ाबलेवाजों का जो ठहरा. मैंने आज सुबह ही अरमान को मोहाली आने का न्योता भेजा और शर्त रख दी कि जो हारेगा वह जीतने वाले को मिठाई खिलाएगा. अरमान ने बड़े प्यारे अंदाज़ में मेरा न्योता तो स्वीकार किया पर शर्त मानने से इनकार कर दिया .....यह कहते हुए कि जीते कोई भी ...हम दोनों ही एक-दूसरे को मिठाई खिलाएंगे. अरमान का प्रस्ताव भावुक कर देने वाला है ...खासकर इसलिए कि हमारे मुल्क एक-दूसरे के दुश्मन हैं. यह किसी से भी छिपा नहीं है. आप ज़रा सोचिये, दो पड़ोसी दुश्मन मुल्कों के दो वाशिंदे एक-दूसरे के लिए दिल खोलकर खड़े हैं. प्रेम में कहीं कोई दिखावा नहीं ...कोई छल नहीं .....कोई आश्वासन नहीं .....कोई करार नहीं .......फिर ये दुश्मनी की घोषणा किसने कर दी .........क्यों कर दी ?
अरमान को फूलों का शौक़ है ...मुझे भी ......और दोनों को ही गुलाब पसंद हैं. अरमान मुझे गुलाब भेजते रहते हैं .....और मैं बड़े प्यार से कराची की मोहब्बत को सहेजता रहता हूँ. मैं हैरान हूँ कि दोनों मुल्कों के हुक्मरानों ने दुश्मनी का ऐलान करते वक़्त हम से क्यों नहीं पूछा ? उन्हें क्या हक बनता है ऐसा करने का ?
बस तसल्ली इतनी है कि हम दोनों दुश्मन एक-दूसरे के घर में पत्थरों की जगह मिठाइयों की वारिश करने वाले हैं....फूलों की वारिश तो अरमान पहले से कर ही रहे हैं. काश हमारे हुक्मरान भी शामिल हो पाते इस वारिश में !
बस तसल्ली इतनी है कि हम दोनों दुश्मन एक-दूसरे के घर में पत्थरों की जगह मिठाइयों की वारिश करने वाले हैं....फूलों की वारिश तो अरमान पहले से कर ही रहे हैं. काश हमारे हुक्मरान भी शामिल हो पाते इस वारिश में !
3 comments:
आपकी यह तमन्ना सच हो जाए मैं यही दुआ करता हूँ
क्या आपने अपने ब्लॉग में "LinkWithin" विजेट लगाया ?
काश, ऐसा हो पाता !
लोगों को तो कोई दिक़्क़्त नहीं. राजनीतिज्ञों की वे जाने.
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