एक चिडिया जो करती है पढाई
शनिवार, 26 मार्च 2011
उसका नाम है रमली। वह कक्षा चार में पढती है। रोज सुबह स्कूल जाती है। पहले प्रार्थना के दौरान कतार में खडी होती है और फिर कक्षा में गिनती, पहाडा, अक्षर ज्ञान। इसके बाद मध्यान्ह भोजन बकायदा थाली में करती है। फिर और बच्चों के साथ मध्यांतर की मस्ती और फिर कक्षा में। स्कूल में वह किसी दिन नागा नहीं करती। रविवार या छुटटी के दिन स्कूल नहीं जाती, पता नहीं कैसे उसे स्कूल की छुटटी की जानकारी हो जाती है। रमली का मन पढाई में पूरी तरह लग गया है और अब उसने काफी कुछ सीख लिया है।
आप सोच रहे होंगे और बच्चे स्कूल जाते हैं, तो रमली भी जाती है। इसमें ऐसा क्या खास है कि यह पोस्ट रमली के स्कूल जाने, पढने पर लिखना पडा। दरअसल में रमली है ही खास। जानकर आश्चर्य होगा कि रमली कोई छात्रा नहीं एक चिडिया है। देखने में तो रमली पहाडी मैना जैसी है लेकिन वह वास्तव में किस प्रजाति की है इसे लेकर कौतूहल बना हुआ है। नक्सल उत्पात के नाम से प्रदेश और देश भर में चर्चित राजनांदगांव जिले के वनांचल मानपुर क्षेत्र के औंधी इलाके के घोडाझरी गांव में यह अदभुद नजारा रोज देखने में आता है।
इस गांव की प्राथमिक शाला में एक चिडिया की मौजूदगी, न सिर्फ मौजूदगी बल्कि शाला की हर गतिविधि में उसके शामिल होने ने इस गांव को चर्चा में ला दिया है। इस गांव के स्कूल में एक चिडिया न सिर्फ प्रार्थना में शामिल होती है बल्कि वह चौथी की कक्षा में जाकर बैठती है। अक्षर ज्ञान, अंक ज्ञान हासिल करती है और फिर जब मध्यान्ह भोजन का समय होता है तो बकायदा उसके लिए भी एक थाली लगाई जाती है। इसके बाद बच्चों के साथ खेलना और फिर पढाई। यह चिडिया खुद तो पढाई करती ही है, कक्षा में शरारत करने वाले बच्चों को भी सजा देती है। मसलन, बच्चों को चोंच मारकर पढाई में ध्यान देने की हिदायद देती है। अब इस चिडिया की मौजूदगी ही मानें कि इस स्कूल के कक्षा चौथी में बच्चे अब पढाई में पूरी रूचि लेने लगे हैं और बच्चे स्कूल से गैर हाजिर नहीं रहते।
इस चिडिया का नाम स्कूल के हाजिरी रजिस्टर में तो दर्ज नहीं है लेकिन इसे स्कूल के बच्चों ने नाम दिया है, रमली। रमली हर दिन स्कूल पहुंचती है और पूरे समय कक्षा के भीतर और कक्षा के आसपास ही रहती है। स्कूल की छुटटी होने के बाद रमली कहां जाती है किसी को नहीं पता लेकिन दूसरे दिन सुबह वह फिर स्कूल पहुंच जाती है। हां, रविवार या स्कूल की छुटटी के दिन वह स्कूल के आसपास भी नहीं नजर आती, मानो उसे मालूम हो कि आज छुटटी है।
इस स्कूल की कक्षा चौथी की छात्रा सुखरी से रमली का सबसे ज्यादा लगाव है। सुखरी बताती है कि रमली प्रार्थना के दौरान उसके आसपास ही खडी होती है और कक्षा के भीतर भी उसी के कंधे में सवार होकर पहुंचती है। उसका कहना है कि उन्हें यह अहसास ही नहीं होता कि रमली कोई चिडिया है, ऐसा लगता है मानों रमली भी उनकी सहपाठी है। शिक्षक जितेन्द्र मंडावी का कहना है कि एक चिडिया का कक्षा में आकर पढाई में दिलचस्पी लेना आश्चर्य का विषय तो है पर यह हकीकत है और अब उन्हें भी आदत हो गई है, अन्य बच्चों के साथ रमली को पढाने की। वे बताते हैं कि यदि कभी रमली की ओर देखकर डांट दिया जाए तो रमली रोने लगती है। घोडाझरी के प्राथमिक स्कूल में कुल दर्ज संख्या 29 है जिसमें 13 बालक और 16 बालिकाएं हैं, लेकिन रमली के आने से कक्षा में पढने वालों की संख्या 30 हो गई है।
बहरहाल, रमली इन दिनों आश्चर्य का विषय बनी हुई है। जिला मुख्यालय तक उसके चर्चे हैं और इन चर्चाओं को सुनने के बाद जब हमने जिला मुख्यालय से करीब पौने दो सौ किलोमीटर दूर के इस स्कूल का दौरा किया तो हमें भी अचरज हुआ। पहाडी मैना जिसके बारे में कहा जाता है कि वह इंसानों की तरह बोल सकती है, उसी की तर्ज में रमली भी बोलने की कोशिश करती है, हालांकि उसके बोल स्पष्ट नहीं होते लेकिन ध्यान देकर सुना जाए तो यह जरूर समझ आ जाता है कि रमली क्या बोलना चाह रही है। रमली के बारे में स्कूल में पढने वाली उसकी 'सहेलियां' बताती हैं कि पिछले करीब डेढ दो माह से रमली बराबर स्कूल पहुंच रही है और अब तक उसने गिनती, अक्षर ज्ञान और पहाडा सीख लिया है। वे बताती हैं कि रमली जब 'मूड' में होती है तो वह गिनती भी बोलती है और पहाडा भी सुनाती है। उसकी सहेलियां दावा करती हैं कि रमली की बोली स्पष्ट होती है और वह वैसे ही बोलती है जैसे हम और आप बोलते हैं। हालांकि हमसे रमली ने खुलकर बात नहीं की, शायद अनजान चेहरा देखकर। फिर भी रमली है बडी कमाल आप भी तस्वीरों में रमली को देखिए।
छत्तीसगढ में पहाडी मैना बस्तर के कुछ इलाकों में ही मिलती है और अब उसकी संख्या भी कम होती जा रही है। राज्य के राजकीय पक्षी घोषित किए गए पहाडी मैना को संरक्षित करने के लिए राज्य सरकार की ओर से काफी प्रयास किए जा रहे हैं, ऐसे में राजनांदगांव जिले के वनांचल में पहाडी मैना जैसी दिखाई देने वाली और उसी की तरह बोलने की कोशिश करने वाली इस चिडिया की प्रजाति को लेकर शोध की आवश्यकता है। खैर यह हो प्रशासनिक काम हो गया लेकिन फिलहाल इस चिडिया ने वनांचल में पढने वाले बच्चों में शिक्षा को लेकर एक माहौल बनाने का काम कर दिया है।
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4 comments:
सच को बयान कराती हुयी प्रस्तुति !
अतुल जी ! आपकी पौने दो सौ किलोमीटर की यात्रा का परिणाम अद्भुत रहा. कान के पास बिना पीले पट्टे वाली, पर मैना जैसी दिखने वाली ऐसी चिड़िया कांकेर और जगदलपुर में भी देखने को मिलती है ...पहले मैं भी दूर से देख कर भ्रमित हो गया था. पर रमली की कहानी में मज़ा आ गया. अगली साल वह भी ५ वीं में पहुँच जायेगी. रमली के ये चित्र एक दस्तावेज़ हो गए हैं. अमूल्य निधि लगी है आपके हाथ.......बधाई हो !
रविन्द्र जी, कौशलेन्द्र जी आपका धन्यवाद कि आपने पोस्ट पर अपने विचार व्यक्त किए।
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जानकारी भरी पोस्ट
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