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अतिक्रमण करो..भूस्वामी बनो

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011


भूमिहीनों और गृहविहीनों के लिए खुशखबरी है. अब उन्हें न तो इंदिरा आवास के लिए अफसरों की खुशामद करनी है, न दलालों के चक्कर में पड़ना है, न किसी को रिश्वत देनी है. बस सरकारी जमीन के किसी टुकड़े पर कब्ज़ा जमाकर बैठ जाना है. पहले बांस-फूस की झोपडी बनाकर रहना शुरू करना है फिर धीरे-धीरे उसे पक्का करवा देना है. जबतक कोई पूछता नहीं ठाट से रहना है. जब अतिक्रमण हटाओ अभियान चलेगा तो आप पुनर्वास के अधिकारी हो जायेंगे. सरकार आपको ज़मीन आवंटित करेगी. है न सीधा सरल रास्ता. झारखंड में इन दिनों चल रहे अतिक्रमण हटाओ अभियान का यही संदेश है. हाईकोर्ट के आदेश पर सख्ती के साथ यह अभियान चलाया गया 60 -70 साल तक से अतिक्रमित इलाकों को खाली करा दिया गया. उनमें रह रहे हजारों परिवार बेघर हो गए. सबसे ज्यादा बवाल 60 वर्षों से अतिक्रमित नागा बाबा खटाल की ५.५ एकड़ भूमि को खाली करने पर मचा.  इसमें डेढ़ दर्जन खटाल चल रहे थे और कई दर्ज़न कच्चे-पक्के  मकान बने हुए थे. एक नेताजी ने तो तीनमंजिला मकान बनवा रखा था. अब विधानसभा अध्यक्ष समेत सभी दलों के विधायक उजाड़े गए परिवारों के पुनर्वास की मांग कर रहे हैं. इस अभियान को अविलंब बंद कराने की ताईद कर रहे हैं. जमशेदपुर में तो स्वयं मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने ही अभियान रुकवा दिया. स्थानीय अख़बारों में उजाड़े गए लोगों की करुण गाथा छापने की होड़ लगी हुई है. झारखंड में अतिक्रमण हटाओ अभियान के कारण विधायिका और न्यायपालिका के बीच शीतयुद्ध छिड़ गया है. कार्यपालिका दोनों के बीच सैंडविच की भूमिका में है. मामला कहीं न कहीं वोट बैंक से जुड़ जा रहा है. यदि न्यायधीशों को अपने पद पर बने रहने के लिए चुनाव लड़ना पड़ता तो शायद उनकी भी राय नेताओं जैसी होती. नेताओं की तो मजबूरी है इसलिए गरीबों के प्रति हमदर्दी जताने के इस स्वर्णिम अवसर का पूरा लाभ उठा लेना चाहते हैं. पूर्व मुख्य मंत्री बाबूलाल मरांडी ने तो नागा बाबा खटाल के उजाड़े गए लोगों को लेकर राजभवन का घेराव किया और पुनर्वास की व्यवस्था होने तक उन्हें वहीँ रहने का निर्देश दिया. अब राजनेताओं से कोई यह पूछे कि क्या जिन्होंने सरकारी ज़मीन का अतिक्रमण नहीं किया वे गरीब नहीं हैं. जिन्होंने अतिक्रमण कर तीनमंजिला मकान खड़ा कर लिया वे गरीब हैं और जिनके पास सर छुपाने की भी जगह नहीं वे अमीर हैं ? आखिर अमीरी-गरीबी का मापदंड क्या है. ज़मीन का अतिक्रमण हमेशा दबंग और प्रभावशाली लोग करते हैं. नागा बाबा खटाल के कब्जाधारियों में कई लोग दुकानों का निर्माण कर उसे किराये पर चला रहे थे. एडवांस और पगड़ी भी वसूल कर चुके थे. अतिक्रमण हटाओ अभियान तो महीने भर से चल रहा था. वे निश्चिंत थे कि हर बार की तरह इस बार भी उनपर हाथ नहीं डाला जायेगा. इसीलिए कोई वैकल्पिक व्यस्था करने की ज़रूरत नहीं समझी. कोर्ट का कड़ा आदेश नहीं होता तो शायद ही प्रशासन उनपर हाथ डालता. अब वोट की राजनीति के तहत इस मुद्दे को मानवाधिकार हनन का रूप देकर कोर्ट को ही कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की जा रही है. इसके दूरगामी प्रभावों की किसी को चिंता नहीं है. यदि विधायिका का यही रुख रहा तो अतिक्रमण सरकारी ज़मीन प्राप्त करने का आसान रास्ता बन जायेगा. फिर इसे नियंत्रित करना मुश्किल हो जायेगा.

-------देवेंद्र गौतम  

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