बाज़ार
बुधवार, 27 अप्रैल 2011
जिन्हें
कभी घास नहीं डाली किसी ने
वे ही आवारे
अब अनायास
बहुत महंगे हो गए हैं.
हवा का रुख माफ़िक देख कर
हम भी अपने उत्पाद
एक 'सुनिश्चित बाज़ार' में ला रहे हैं
हमारा सेल्स मैन
हर भावी मुख्यमंत्री की गली में जाकर चिल्लाएगा -
एम.एल.ए. ले लो ...... एम.एल.ए..........
एक से बढ़कर एक .......क्रिमिनल एम.एल.ए.
पाँच एक साथ लेने पर एक पुरौनी में मिलेगा .
जो अकेले ही
जयललिता और ममता के काम
एक साथ करेगा.
छः महीने तक
दल बदल न करने की गारंटी है
आपकी सुविधा के लिए
आसान किश्तों में भी उपलब्ध है.
पूरी तरह भारत में निर्मित
कुछ स्वदेशी माल भी है
जो इशारा पाते ही
अच्छी-खासी सरकार
पल भर में गिराएगा
एक बार आज़माके देख लो
पसंद न आये
तो बदल कर दूसरा दे देंगे
मगर ध्यान रखना
बिका हुआ माल वापस नहीं लेंगे
हम एम. एल. ए. बेचते हैं
समर्थन नहीं
जो कभी भी वापस ले लेंगे.
1 comments:
यह कविता नि:संदेह श्रेष्ठता की परिधि में है जो तीक्ष्ण व्यंग्य के साथ चिंतन की पराकाष्ठा से गुजर कर मन को आंदोलित कर रही है, पढ़कर मन प्रसन्न हो गया , बधाई !
एक टिप्पणी भेजें