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आज पृथ्वी दिवस है !

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2011



आज पृथ्वी दिवस है - २२ अप्रैल ! ये जीवन दायिनी धरती माँ हमें सब कुछ देती रही है और आज भी दे रही है. लेकिन जब हम उसके पास कुछ बचने दें. उसके श्रृंगार वृक्षों को हमने उजाड़ दिया, उसके जल स्रोतों को हमने इसतरह से दुहा है कि वे भी अब जलविहीन हो चले हैं. इसके गर्भ में इतने परीक्षण हम कर चुके हैं कि उसकी कोखअब बंजर हो चुकी है. अब भी हम उसके दोहन और शोषण से थके नहीं हैं. अब भी हम ये नहीं सोच पा रहे हैं किजब ये नहीं रहेगी तो क्या हम किसी नए ग्रह की खोज करके उसपर चले जायेंगे. जैसे की गाँव छोड़ कर शहर आगए. वहाँ अब कुछ भी नहीं रह गया है - खेतों को बेच कर मकान बनवा लिए. अब खाने की खोज में शहर आ गए. कुछ न कुछ करके गुजारा कर लेंगे.
हम क्यों रोते हैं कि अब मौसम बदल चुके हैं, तापमान निरंतर बढ़ता चला जा रहा है. इसके लिए कौन दोषी है? हमही न, फिर रोना किस बात का है? हमारी अर्थ की हवस ने , धरती जो कभी सोना उगला करती थी, केमिकल डालडाल कर बंजर बना लिया. फसल अच्छी लेने के लिए उसको बाँझ बना दिया. ये कृत्रिम साधनों से जो उसका दोहनहो रहा है उससे हमने गुणवत्ता खोयी है.
हर साल २२ अप्रैल को धरती को बचाने के लिए और उसके बचाव के प्रति लोगों कोजागरूक करने के लिए इस दिवस का आयोजन किया जाता है. पूरी दुनियाँ इसधरती को माँ नहीं कहती, कालांतर में आदमी सुबह उठकर उस पर पैर रखने सेपहले उसके स्पर्श को अपने मस्तक पर लगता था. ये मैंने अपने घर में ही देखा है. खेतों की पूजा होते देखी है. विश्व में इसको एक ग्रह ही माना जाता है और फिर भीविश्व के किसी और देशवासी ने इस ग्रह को बचाने के लिए ये मुहिम शुरू की थी. येव्यक्तित्व है जो अपनी दृढ इच्छाशक्ति के लिए विख्यात है - अमेरिका के पूर्वसीनेटर गेलार्ड नेल्सन.

इस दिवस के आरम्भ करने की मुहिम के पीछे क्या अवधारणा थी ? इस बारे में कुछ बातें उन्हीं की जुबानी मिलीहै, जो मैं दैनिक जागरण के साभार यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ.


" पृथ्वी दिवस का मकसद क्या था? कैसे हुई इसकी शुरुआत? ये प्रश्न हैं जिन्हें लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं. वास्तव में पृथ्वी दिवस का विचार मेरे दिमाग में १९६२ में आया और सात साल तक चलता रहा. मुझे इस बात सेपरेशानी थी की हमारे पर्यावरण संरक्षण हमारे राजनीतिक एजेंडे में शामिल नहीं है. नवम्बर १९६२ में मैंने इसविचार से राष्ट्रपति कैनेडी को अवगत करने और मुद्दे को उठाने के लिए उनको राष्ट्रीय संरक्षण यात्रा करने के लिएमनाने की सोची. एटार्नी जनरल राबर्ट कैनेडी से इस प्रस्ताव के बारे में बात करने के लिए मैं वाशिंगटन गया. विचार उनको पसंद आया. राष्ट्रपति को भी यह पहल पसंद आई . सितम्बर १९६३ में राष्ट्रपति ने ग्यारह प्रान्तों कीअपनी पांच दिवसीय संरक्षण यात्रा शुरू की. लेकिन कई कारणों से इसके बाद भी मुद्दा राष्ट्रीय एजेंडा नहीं बन सका. इस बीच मैं पर्यावरणीय मुद्दों पर लगातार जनता के बीच आवाज उठाता रहा. पूरे देश में पर्यावरण में होने वालेनुकसान को स्पष्ट देखा जा सकता था. लोग पर्यावरण सबंधी मुद्दों पर चिंतित थे लेकिन राजनीतिज्ञों के कानों परजून नहीं रेंग रही थी. १९६९ की गर्मियों के दौरान वियतनाम युद्ध के खिलाफ प्रदर्शन कालेजों के कैम्पस तक पहुँचचुका था. यही मेरे जेहन में यह ख्याल आया कि क्यों न पर्यावरण को हो रहे नुकसान के विरोध के लिए व्यापकजमीनी आधार तैयार क्या जाए. सितम्बर १९६९ में सिएटल में एक जनसभा में मैंने घोषित किया की १९७० केवसंत ऋतू में पर्यावरण मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक प्रदर्शन किया जाएगा. भागीदार बनाने के लिए सबकाआह्वान किया. अख़बारों में इस खबर को अच्छी तरीके से कवर किया गया. इसके बाद खबर फैलते देर नहीं लगी . टेलीग्राम, पत्र और टेलीफ़ोन के माध्यम से इस विषय में अधिक जानकारी के लिए देश भर से तांता लगा गया. जन-जागरण शुरू हो चुका था. मैं अपने मिशन में कामयाबी की ओर बढ़ रहा था अंततः २२ अप्रैल १९७० को २करोड़ के विशाल जाना समुदाय के बीच पहला पृथ्वी दिवस मनाया गया."
जब ये काम ४० वर्षों से चल रहा है तब हमारी पृथ्वी की ये हालत है अगर हम अब भी नहीं चेते तो ये ज्वालामुखी, भूकंप , सुनामी और भूस्खलन - जो इस पृथ्वी के पीड़ा के प्रतीक हैं, इस पृथ्वी को नेस्तनाबूद कर देंगे. ये मानवजाति जो अपने शोधों पर इतरा रही है, कुछ भी शेष नहीं रहेगा. इस लिए आज ही और इसी वक्त संकल्प लें किपृथ्वी को संरक्षण देने के लिए जो हम कर सकेंगे करेंगे और जो नहीं जानते उन्हें इससे अवगत कराएँगे या फिरअपने परिवेश में इसके विषय में जागरूकता फैलाने के लिए प्रयास करेंगे. जब धरती माँ नहीं रहेगी तो उसकी हमसंताने होंगे ही कहाँ? इस लिए हमें भी रहना है और इस माँ को भी हरा भरा रखना है ताकि वह खुश रहे और हम भीखुश रहें.

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