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क्या यही माँ का सम्मान है ............?

शनिवार, 7 मई 2011

क्या यही माँ का सम्मान है ............?

दोस्तों कल मातृत्व दिवस हिंदी में और अंग्रेजी में मदर्स डे की नोटंकी की जायेगी में ,आप और सभी इस नोटंकी में शामिल होने लगे हैं खुद को माँ का  सबसे बढा भगत सबसे बढा प्रेमी साबित करने की होड़ लग गयी है ......और इस मदर डे और हिंदी के मात्रत्व  दिवस पर अख़बार विज्ञापनों से ..लेखों से कविताओं से मन लुभावनी तस्वीरों से भर जायेंगे टी वी पर खबरें और रिपोर्टिंग होगी ,ब्लोगिंग में हर कोई ब्लोगर इस पर लेख लिखेगा लेकिन दोस्तों एक सच यही है के कुछ अपवादों को छोड़ कर जरा हम अपने गिरेबान में झाँक कर तो देखें हम इस कसोटी पर कितना खरा उतारते हैं .जी हा दोस्तों एक हकीक़त जो आज मेरे सामने से गुजरी है मेरे रोंगटे खड़े हो गए हमारे पडोस में खुद को कोंग्रेस और भाजपा का नेता कहने वाले चार भाई जिनमे से एक करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक है भाजपा का नेता खुद को कहता है ...एक भाई कोंग्रेस का नेता खुद को कहता है और उसके पास भी नोटों की कमी नहीं है खुद हाजी है खुद को समाज सेवक कहते हैं नेताओं के मान सम्मान के नाम पर हजारों के विज्ञापन बधाइयों के नाम पर छपवाते है ..दो और भाई है यानी चार बच्चों की एक ह्ज्जानी माँ अचानक बीमार हुई ..सीने में दर्द से तड़पती रही और बच्चे एक दुसरे को फोन पर माँ को अस्पताल ले जाने के लियें कहते रहे उनका कहना था के तू ज्यादा कमाता है इसलियें माँ को तू ही अस्पताल लेकर जा .
खेर इस बीमार माँ को पड़ोसी लोग एक निजी अस्पताल में ले गए दो भाई तो मोबाईल का स्विच ऑफ़ कर सो गए एक कोंग्रेस का नेता बेटा जिसे मोहल्ले वालों ने लानतें मलामते दी तो यह जनाब एक विजिटर के रूप में अस्पताल अपनी माँ को देखने पहुंचे अस्पताल का बिल एक दिन का छ हजार रूपये देखकर घबरा गए और फिर जेब से मोबाईल निकाल कर अपने भाइयों को फोन मिलाने लगे रिश्तेदारों से खर्चा गिनाने लगे माँ अस्पताल में तड़प रही थी साँस लेने में उसे तकलीफ नहीं हो रही थी  लेकिन माँ के पास बेटे नहीं थे पड़ोसी थे उनके दुसरे रिश्तेदार थे ..में सोचने लगा क्या ऐसे बेटे होते हैं में अस्पताल से बाहर जाता इसी बीच एक लडका अपनी माँ को कंधे पर उठाकर आता हुआ नज़र आया वोह बेटा अपनी मोटर साइकल बेचकर माँ का इलाज करवाने आया था इस देहाती भाई को देख कर एक बार फिर मेरा विश्वास जागा के नहीं इंसानियत और रिश्ते आज भी इस दुनिया में ज़िंदा है ..................... अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 comments:

दिवस 7 मई 2011 को 11:36 pm बजे  

आदरणीय बंधू...दिल को छू लेने वाला लेख...सच ही कहा आपने...क्या माँ के लिए साल में केवल एक दिन आरक्षित कर देना उसका अपमान नहीं है? फिर हम इसे सम्मान की बात कैसे समझ सकते हाँ...इस देश के बच्चों का तो हर दिन माँ से ही शुरू होता है, जब माँ सुबह बच्चों को उठाती है...और हर दिन माँ पर ही ख़त्म होता है, जब माँ प्यार से अपने बच्चों को लोरी सुनाती है...तो हम केवल एक दिन के लिए क्यों मोहताज़ रहें?

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