तबादलों की पावन-सरिता
सोमवार, 13 जून 2011
![]() |

इस तो भय से मोहतर्मा नें कुर्सी-टेबल हटवा दिये. बहुत अच्छा हुआ वरना दो तलवारें एक म्यान में..?
तबादलों का एक और पक्ष होता है जिसका तबादला कर दिया जाता है उसे लगता है जैसे वो बेचारा या बेचारी अंधेरी गली से हनुमान चालीसा बांचता या ताबीज़ के सहारे
निकल रहा/रही था और कोई उसे लप्पड़ मार के निकल गया. अकबकाया सा ऐसा सरकारी जीव फौरी राहत की व्यवस्था में लग जाता है.
तबादलों को निश्तेज़ करने वाले संयंत्र का निर्माण भारत की अदालतों में क़ानून नामक रसायन से वक़ील नामक वैज्ञानिक किया करते हैं. इस संयंत्र को स्टे कहा जाता है. जिस पर सारे सरकारी जीवों की गहन आस्था है. वकील नामक वैज्ञानिक कोर्ट कचैरी के रुख से भली प्रकार वाकिफ होते हैं.
इन सब में केवल सामर्थ्य हीन ही मारा जाता है. समर्थ तो कदापि नहीं. इसके आगे मैं कुछ भी न लिखूंगा वरना ....
भरे पेट वाले मेरे जैसे सरकारी जंतु क्या जानें कि देश की ग़रीब जनता खुद अपना तबादला कर लेती है दो जून की रोटी के जुगाड़ में.बिच्छू की तरह पीठ पे डेरा लेकर निकल पड़ता है. यू पी बिहार का मजूरा निकल पड़ता है आजीविका के लिये महानगरीयों में. उधर वीर सिपाही बर्फ़ के ग्लेशियर पर सीमित साधनों के साथ तबादला आदेश का पालन करता देश के हम जैसे सुविधा भोगियों को बेफ़िक्री की नींद सुलाता है रात-दिन जाग जाग के.भूखा भी रहता ही होगा कभी कभार कौन जाने.
नोट:- इस आलेख में प्रयुक्त तस्वीरें गूगल के साभार प्राप्त की गईं हैं जिस किसी को आपत्ती हो मुझे सूचित कर सकता है ताकि चित्र हटा सकूं
1 comments:
bahut badhiyaa vyangya hai, badhayiyan !
एक टिप्पणी भेजें