ग़ज़लगंगा.dg: हमें इस दौर के एक एक लम्हे से.....
बुधवार, 15 जून 2011
हमें इस दौर के एक एक लम्हे से उलझना था.
मगर आखिर कभी तो एक न एक सांचे में ढलना था.
वहीं दोज़ख के शोलों में जलाकर रख कर देताख़ुशी का एक भी लम्हा अगर मुझको न देना था.न पूछो किस तरह गुजरी है अबतक जिंदगी अपनी कभी उनसे शिकायत और कभी अपने पे रोना था.मेरे चारो तरफ थे जाने पहचाने हुए चेहरे मगर उस भीड़ से मुझको जरा बचकर निकलना था.
2 comments:
खूबसूरत गज़ल ..
सुन्दर भावों से रची सुन्दर रचना|
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