रविवार, 21 अगस्त 2011
हंसी बेशर्म है उनकी,
करम बेशर्म है उनका
वतन को बेचते हैं वो,
धरम बेशर्म है उनका
खुदी में डूब कर खुद को,
खुदा ही मान बैठे जो
बता औकात उन्हें उनकी
कि नहीं अब वक्त है उनका
यानी प्रब्लेस, जहां न क्षेत्र की बंदिशें, न जाति और धर्म की....केवल एक बिरादरी प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ की, आईए खुलकर कीजिए बात जैसे अपने घर में करते हैं !
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4 comments:
सशक्त बिंबों से सधी हुई सुंदर कविता,आपको कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
mujhe ise istemaal karne ki ijazat dijiye,,,,,
भावों और शब्दों का सुंदर संयोजन....
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