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ग़ज़लगंगा.dg: रास्ते में कहीं उतर जाऊं?

रविवार, 20 मई 2012

रास्ते में कहीं उतर जाऊं?
 घर से निकला तो हूं, किधर जाऊं?

पेड़ की छांव में ठहर जाऊं?
धूप ढल जाये तो मैं घर जाऊं?

हर हकीकत बयान कर जाऊं?
सबकी नज़रों से मैं उतर जाऊं?

जो मेरा  जिस्मो-जान था इक दिन
उसके साये से आज डर जाऊं?

जाने वो मुझसे क्या सवाल करे
हर खबर से मैं बाखबर जाऊं.

जिसने  रुसवा किया कभी मुझको
फिर उसी दर पे लौटकर जाऊं?

क्या पता वो दिखाई दे जाये
दो घडी के लिए ठहर जाऊं.

वो भी फूलों की राह पर निकले
मैं भी खुशबू से तर-ब -तर जाऊं.

अपना चेहरा बिगाड़ रक्खा है
उसने चाहा था मैं संवर जाऊं.

मैंने आवारगी बहुत कर ली
सोचता हूं कि अब सुधर जाऊं.

----देवेंद्र गौतम


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6 comments:

ANULATA RAJ NAIR 20 मई 2012 को 8:50 am बजे  

वाह वाह..............

बेहतरीन गज़ल...

जो मेरा जिस्मो-जान था इक दिन
उसके साये से आज डर जाऊं?
बहुत अच्छे शेर ....

सादर.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून 23 मई 2012 को 4:26 pm बजे  

वाह भई देवेन्‍द्र जी बहुत बढ़ि‍या

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" 24 मई 2012 को 7:52 pm बजे  

मैंने आवारगी बहुत कर ली
सोचता हूं कि अब सुधर जाऊं.

bahut khoob!!!

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" 24 मई 2012 को 7:52 pm बजे  

मैंने आवारगी बहुत कर ली
सोचता हूं कि अब सुधर जाऊं.

bahut khoob!!!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' 26 मई 2012 को 8:37 pm बजे  

उम्दा शेर... बहुत अच्छी ग़ज़ल...बहुत बहुत बधाई...

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