यानी प्रब्लेस, जहां न क्षेत्र की बंदिशें, न जाति और धर्म की....केवल एक बिरादरी प्रगतिशील ब्लॉग लेखक संघ की, आईए खुलकर कीजिए बात जैसे अपने घर में करते हैं !
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2 comments:
एक इंजीनियर की ब्यथा को एक इंजीनियर ही समझ सकता है|
बहुत सही लिखा आपने।
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काले साए, आत्माएं, टोने-टोटके, काला जादू।
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