ग़ज़ल
रविवार, 6 मार्च 2011
मेरी छत पर देर तक बैठा रहा.
इक कबूतर खौफ में डूबा हुआ.
हमने दरिया से किनारा कर लिया.
अब कोई कश्ती न कोई नाखुदा.
झूट के पहलू में हम बैठे हुए
सुन रहे हैं सत्यनारायण कथा.
देर तक बाहर न रहिये, आजकल
शह्र का माहौल है बदला हुआ.
ऐसी तनहाई कभी देखी न थी
इतना सन्नाटा कभी छाया न था.
पांचतारा जिंदगी जीते हैं वो
आमलोगों से उन्हें क्या वास्ता.
ख्वाब में जो बन गए थे दफअतन
पूछ मत अब उन घरौंदों का पता.
-----देवेन्द्र गौतम
इक कबूतर खौफ में डूबा हुआ.
हमने दरिया से किनारा कर लिया.
अब कोई कश्ती न कोई नाखुदा.
झूट के पहलू में हम बैठे हुए
सुन रहे हैं सत्यनारायण कथा.
देर तक बाहर न रहिये, आजकल
शह्र का माहौल है बदला हुआ.
ऐसी तनहाई कभी देखी न थी
इतना सन्नाटा कभी छाया न था.
पांचतारा जिंदगी जीते हैं वो
आमलोगों से उन्हें क्या वास्ता.
ख्वाब में जो बन गए थे दफअतन
पूछ मत अब उन घरौंदों का पता.
-----देवेन्द्र गौतम
5 comments:
vaah bhaai vaah behtrin gzl behtrin rchnaa . akhtar khan akela kota rajsthan
झूट के पहलू में हम बैठे हुए
सुन रहे हैं सत्यनारायण कथा....
वह कमाल की ग़ज़ल है साहब ... लाजवाब ..
बढ़िया है..
पांचतारा जिंदगी जीते हैं वो
आमलोगों से उन्हें क्या वास्ता.
लाजवाब ....
बढ़िया है....
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